कर्नाटक के नाटक से भले ही पर्दा उठ गया हो, लेकिन ये राजनीतिक नाटक किसी महाभारत से कम नहीं था. कर्नाटक में कांग्रेस के बनाए चक्रव्यूह में बीजेपी ऐसी फंसी कि बीएस येदियुरप्पा को 55 घंटे में इस्तीफा देना पड़ा.
लेकिन जिस चक्रव्यूह में फंसकर बीजेपी की सरकार कर्नाटक विधानसभा में बेबस हो गई उस चक्रव्यूह को रचने वाला 10 जनपथ में उठने बैठने वाला कांग्रेस का कोई दिग्गज नेता नहीं, बल्कि कर्नाटक में कांग्रेस का एक विधायक डोडदलाहल्ली केम्पेगौड़ा शिवकुमार है. हां वही डी के शिवकुमार जिसने इससे पहले भी अपनी समझदारी से पार्टी को मुसीबत से उबारा है.
डीके शिवकुमार कर्नाटक के कनकपुरा विधानसभा से विधायक हैं. वो सिद्धारमैया सरकार में शिवकुमार ऊर्जा मंत्री भी रह चुके हैं.
कांग्रेस के ‘मांझी’
ये पहली बार नहीं है जब शिवकुमार ने कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगाया है.
इससे पहले गुजरात राज्यसभा चुनाव के दौरान जब अहमद पटेल की जीत के लिए कांग्रेस को अपने विधायकों को हॉर्स ट्रेडिंग से बचाना था. तब भी कांग्रेस विधायकों को एक जुट रखने की जिम्मेवारी डी. के. शिवकुमार ने ही निभाई थी. उन्होंने गुजरात से सभी 44 एमएलए को बेंगलुरु के इग्लेटन गोल्फ रिसॉर्ट में रखा था, ताकि बीजेपी किसी तरह से उनसे संपर्क न कर पाए और विधायक टूटने से बच जाए.
हालांकि, इस दौरान शिवकुमार के 64 जगहों पर इनकम टैक्स की रेड भी पड़ी थी.
यही नहीं साल 2002 में महाराष्ट्र की विलासराव देशमुख सरकार को गिरने से बचाने के लिए भी कांग्रेस ने डीके शिवकुमार पर भरोसा जताया था. और महाराष्ट्र के 40 कांग्रेसी विधायक को डी के शिवकुमार की देखरेख में बेंगलुरु भेजा गया था.
कैसे कर्नाटक में बीजेपी को डीके ने दी मात
दरअसल, कर्नाटक चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी को 104 सीटें हासिल हुई, वहीं कांग्रेस को 78 और जेडीएस को 38 सीटों पर जीत मिली थी. मतलब किसी भी पार्टी के पास सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं थी. लेकिन कांग्रेस और जेडीएस ने चुनाव के रिजल्ट आते आते ही गठबंधन का ऐलान कर दिया और सरकार बनाने का दावा भी पेश किया. लेकिन सबसे ज्यादा सीटें जीतने का हवाला देते हुए राजयपाल वजुभाई वाला ने बीएस येदियुरप्पा को सीएम बनाया.
लेकिन येदियुरप्पा को विधानसभा में बहुमत साबित करना था. बहुमत के लिए बीजेपी के पास 7 विधायक कम थे. अब यहीं से डीके शिवकुमार का असली काम शुरू होता है.
कांग्रेस के पास अपने विधायकों को बचाना सबसे बड़ा मकसद था. और इन विधायकों को बीजेपी के संपर्क से बचाना और एक जुट रखने की जिम्मेदारी डीके शिवकुमार के कंधों पर थी.
डीके शिवकुमार ने कांग्रेस के साथ-साथ जेडीएस के विधायकों को बेंगलुरु से हैदराबाद शिफ्ट किया. और फिर वापस फ्लोर टेस्ट के लिए सभी विधायकों को विधानसभा में पेश भी किया.
थोड़ी परेशानी भी आई, लेकिन जंग जीत लिया
फ्लोर टेस्ट से एक दिन पहले अचानक कांग्रेस के दो विधायक गायब हो गए. शिवकुमार की गेम प्लान कमजोर होता दिखा. लेकिन फ्लोर टेस्ट से ठीक पहले कांग्रेस के गायब हुए दो विधायक प्रताप गौड़ा पाटिल और आनंद सिंह वापस आ गए. और शिवकुमार ने इस बात की भी गारंटी ली की वापस आए एमएलए अपनी पार्टी से दगाबाजी नहीं करेंगे.
बता दें कि मीडिया से लेकर राजनीतिक जगत में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को चुनाव जीताऊ मशीन से लेकर चाणक्य तक कहा जाता है, लेकिन डीके शिवकुमार ने इस बार चाणक्य का टाइटल अपने नाम कर लिया.
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