फरीदाबाद में कथित रूप से दलित परिवार को जिंदा जलाए जाने के मामले में फॉरेंसिक जांच के प्रारंभिक नतीजे पीड़ित परिवार के दावों पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार फॉरेंसिक टीम शुरूआती जांच में इस नतीजे पर पहुंची है कि घटनास्थल पर आग बाहर से नहीं लगी थी. जांच में पाया गया कि ज्वलनशील पदार्थ भी बाहर से नहीं फेंका गया.
जांचकर्ताओं को घटनास्थल से मिट्टी के तेल की एक अधजली बोतल और खिड़की के बगल में बनी स्लैब पर जली हुई माचिस की तीली भी मिली है.
जांचकर्ताओं का तर्क है कि ज्वलनशील पदार्थ को गोलाकार आकार में फेंका गया है जो सिर्फ कमरे के अंदर से ही फेंका जा सकता है.
फरीदाबाद में 20 अक्टूबर को इस मामले के सामने आने के बाद जमकर विरोध-प्रदर्शन हुए थे जिसके बाद ये मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था.
इस कथित हमले में गंभीर रूप से जली हुईं जितेंद्र की पत्नी रेखा फिलहाल दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती हैं और उनके दोनों बच्चों की मौत हो चुकी है.
इस मामले में अब तक 11 में से 7 आरोपियों को पकड़ा जा चुका है.
गलत साबित होते पीड़ित परिवार के दावे
फॉरेंसिक टीम की शुरुआती जांच में सामने आए नतीजे ऊंची जाति के लोगों द्वारा दलित परिवार पर कथित हमले की बात को गलत साबित कर रहे हैं.
जांचकर्ताओं के अनुसार घर में बाहर से किसी तरह के प्रवेश के निशान नहीं हैं. इसके साथ ही कमरे का दरवाजा अंदर से लॉक था और खिड़की अंदर से बंद थी. हालांकि, खिड़की की कुंडी नहीं लगी हुई थी.
पीड़ित परिवार के सदस्य जितेंद्र के उस दावे को भी खारिज किया गया है जिसमें उसने कहा था कि आग लगने पर वह कमरे में मौजूद एक छेद से अपने बच्चों को दूसरे कमरे में ले गया.
जांचकर्ताओं के अनुसार जितेंद्र जिस कमरे की बात कर रहें हैं वहां एक छेद है जो उसे बगल वाले कमरे से जोड़ता है. लेकिन ये छेद इतना बड़ा नहीं है कि कोई इसमें से होकर दूसरे कमरे में जा सके.
फॉरेंसिक साइंस टीम इस मामले पर अपनी अंतिम रिपोर्ट इस हफ्ते के अंत तक सौंपेगी.
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