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प्रिय हिंदुस्तान, तुम इश्क हो, तुम नाम हो तुम खुदा हो, तुम राम हो!

रीत पुरानी हो, गंगा-जमुनी पानी हो...तुम हिंदुस्तानी हो...तुम हिंदुस्तानी हो

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तुम हिंदुस्तानी हो

मैं जानता हूं तुम्हें

अच्छी तरह से

पहचानता हूं तुम्हें

जैसे मेरी ही परछाई हो

जैसे मेरी उंगलियों से लिपटी हो तुम

कि जिससे रोशन है मेरी रूह

जो मेरे वजूद का हिस्सा है

मेरे होने का किस्सा है

तुम हो तो हर एहसास में बात है

तुम हो तो कितने सारे जज्‍बात हैं

तुम सवेरा हो, तुम शाम हो

तुम इश्क हो, तुम नाम हो

तुम खुदा हो, तुम राम हो

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हो मक्का भी, तुम्ही धाम हो

तुम सलाम हो, तुम प्रणाम हो

सूखे हुए फूलों के साथ दिए थे जो कभी

उन खतों में भेजा पयाम हो

तुम चोट लगने पर 'ऊई मां' हो

तुम मां का 'राजा बेटा' हो

पापा के 'नालायक बेटे' भी तुम्हीं हो

तुम भैया का 'अबे घोंचू' हो

दीदी का 'मेरा भाई' भी तुम हो

दोस्तों का 'अबे साले' भी तुम

स्कूल की अंग्रेजी किताबों में डूबी दुनिया में

घर के अचार से महकता पन्ना हो तुम

तुम मेरे बचपन की वो अठन्नी हो

जिसके साथ चार तोतले शब्द बोलने पर

दुकानदार संतरे वाली पांच गोलियां

मेरी हथेली पर रख देता था

याद है तुम्हें

शायद...पांचवीं में...नहीं..चौथी में रहा होऊंगा मैं

ड्रॉइंग रूम में मेहमानों को कुछ सुनाना था मुझे

उस जुबां में जो पापा चाहते थे

पर मैंने सुना दिया वो जो तुमने सिखाया था मुझे

भरी दुपहरों में, जब सारी गलियां सो जाती थीं

पापा ने घूर के देखा था मुझे

मैं रसोई में आके अम्मा के पल्लू में दुबक गया था

सहमा सा, डरा सा, आंखों में दो...मोटे आंसू लिए

जो आंख की कोर पे अटके ही रह गए

पता है, तब के अटके आंसू अब बहते हैं

तुम इस मुल्क की मिट्टी में हो

सनी हुई, रची हुई, बसी हुई, पगी हुई

मैं जब भी घर पहुंचकर उतार देता हूं

सारी ओढ़ी हुई भाषाओं के कपड़े

तब तुम मुझसे आकर लिपट जाती हो

मेरी किताबों की अलमारी से झांकती हो

कितनी शिद्दत से यूं ताकती हो

कि उठाऊं मैं तुम्हें, पलटूं वो पन्ने

जिसमें हर्फ दर हर्फ, लफ्ज दर लफ्ज

मेरे गांव की, मेरे छोटे शहर की

कहानियां दर्ज हैं, मेरी कहानियां दर्ज हैं

पर तुम हिंदी तो नहीं कि

जिससे भागती हैं कॉलेज की सारी लड़कियां

न उर्दू ही हो तुम

कि राजनीति ने जिसे लिख दिया

एक मजहब के नाम

तुम वो हो जिससे मुझे मोहब्बत है

मैं जब भी लौटूंगा काम की जुबान से

तो तुम्हारे पास ही आऊंगा

तुम हिंदुस्तानी हो

वो भाषा जो मेरे घर में रहती है

मेरे दिल में धड़कती है

मेरी सांसों में महकती है

मेरी रगों में बहती है

जो मेरे गुजरे कल में थी

मेरे कल में भी होगी

जिससे रिश्ता है मेरा

जानती हो कितना पुराना

जब मैं मां की कोख में था

वो बुदबुदाती होगी अपने सारे सपने

जो उसने मेरे लिए देखे होंगे

वो मेरे कानों से होकर भी तो गुजरे होंगे

इसलिए तुम मेरे सपनों की जुबान भी हो

मेरे ख्‍वाबों का आसमान भी हो

रीत पुरानी हो, गंगा-जमुनी पानी हो

तुम हिंदुस्तानी हो...तुम हिंदुस्तानी हो

-----प्रबुद्ध जैन

( यह लेख प्रबुद्ध जैन ने क्विंट को हमारे स्वतंत्रता दिवस कैंपेन के लिए भेजा है, बोल - अपनी भाषा से प्यार करें.)

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