दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिक विवाह को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है. ये नोटिस दो अलग-अलग याचिकाओं पर जारी किया गया है, जिसमें स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की गई है. एक याचिका में मांग की गई है कि स्पेशल मैरिज एक्ट सभी लोगों पर लागू किया जाए. जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ और जस्टिस आशा मेनन की बेंच ने नोटिस जारी किया. इस मामले को अगली सुनवाई अगले साल 8 जनवरी को होगी.
केंद्र की तरफ से मौजूद एडवोकेट राजकुमार यादव ने कोर्ट में कहा कि ये एक अजीब स्थिति है और सनातन धर्म के 5,000 सालों में इस तरह की स्थिति का सामना नहीं किया गया है. इसपर बेंच ने कहा कि सालों पुरानी रुकावटों को अब खत्म करना होगा.
जस्टिस मेनन ने कहा, “हमें अपनी रुकावटों को खत्म करना होगा. कानून जेंडर न्यूट्रल है. आप प्लीज देश में सनातन धर्म के नागरिकों के लिए कानून को इंटरप्रेट करने की कोशिश करें. ये कोई आम याचिका नहीं है. ये देश के हर नागरिक के अधिकार के लिए है.”
हाईकोर्ट में दाखिल दो याचिकाओं में से एक याचिका मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल, कविता अरोड़ा और अंकिता खन्ना द्वारा दाखिल की गई है, जो पिछले 8 सालों से एक-दूसरे के साथ हैं, लेकिन दोनों शादी नहीं कर पा रही हैं. अपनी याचिका में उन्होंने लिखा, "याचिकाकर्ता किसी भी दूसरे कपल की तरह हैं, बस ये दोनों महिलाएं हैं."
याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर एडवोकेट मेनका गुरुस्वामी और अरुंधति काटजू मौजूद थीं, जिन्होंने भारत में समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने में लंबी लड़ाई लड़ी है. इस मामले पर मेनका गुरुस्वामी ने कहा, "शादी का उद्देश्य केवल बच्चे पैदा करना नहीं है. लोग इमोशनल सपोर्ट के लिए भी शादी करते हैं और याचिकाकर्ता आज अपने मूल अधिकारों की मांग कर रही हैं - इंश्योरेंस, लोन लेने में सक्षम होना, साथ में घर खरीदना - ऐसी चीजें जो शादी के बिना नहीं हो सकती."
दूसरी याचिका भारतीय नागरिक वैभव जैन और एनआरआई पराग विजय ने दाखिल की है, जिन्होंने 2017 में अमेरिका में शादी की थी. भारतीय दूतावास ने इस साल फॉरन मैरिज एक्ट, 2969 के तहत उनकी शादी को रजिस्टर करने से मना कर दिया. इस कारण वो कोरोना वायरस महामारी के दौरान एक शादीशुदा कपल की तरह भारत नहीं आ पाए.
याचिकाओं में कहा कि LGBTQ+ लोगों की शादी को मान्यता नहीं मिलना, उनके आजादी, समानता, जीवन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिसकी गारंटी सुप्रीम कोर्ट का फैसला देता है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में अपने ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर सेम सेक्स रिलेशनशिप को मान्यता दे दी थी.
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