दिल्ली हाईकोर्ट ने आम आदमी पार्टी की सरकार के ऑड-ईवन फॉर्मूले में दखल देने से इनकार कर दिया है. इसके साथ ही इस फॉर्मूले का 15 जनवरी तक जारी रहना तय हो गया है.
अदालत ने कहा कि इस तरह का फॉर्मूला एक नीतिगत निर्णय है और इसे विशेषज्ञों की राय के आधार पर लागू किया गया है.
मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी और न्यायाधीश जयंत नाथ की खंडपीठ ने कहा कि योजना के असंवैधानिक या कानूनी प्रावधानों के खिलाफ न होने तक अदालत इसमें कोई दखल नहीं देगी. पीठ ने कहा कि पायलट परियोजना 15 दिनों की अवधि के लिए है.
अदालत ने माना कि ऑड-ईवन प्लान में उसका हस्तक्षेप उचित नहीं है. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा,
दिल्ली हाईकोर्टअदालत इस राय पर बरकरार है कि कोर्ट योजना में तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगा, जब तक कि यह असंवैधानिक, कानूनी प्रावधानों के प्रतिकूल, तर्कहीन या सत्ता का दुरुपयोग करने वाली न हो, क्योंकि योजना से जुड़ा निर्णय संबंधित विशेषज्ञों की समझ के आधार पर लिया गया है. अदालतें सामान्य तौर पर एक नीतिगत निर्णय के औचित्य पर सवाल उठाने में समर्थ नहीं हैं.
हाईकोर्ट ने कहा, “यह देखते हुए कि 28 दिसंबर, 2015 की अधिसूचना के तहत प्रतिबंध सिर्फ 15 दिनों के लिए है और स्कीम को प्रदूषण के स्तर में कटौती करने के लिए एक पायलट परियोजना के रूप में लागू किया गया है, ऐसे में हमारी राय है कि इस अदालत का हस्तक्षेप न्यायसंगत नहीं है.”
याचिका में उठाए गए सवालों पर राय-मशविरा करे सरकार
हालांकि पीठ ने दिल्ली सरकार से कहा कि वह भविष्य में ऐसे प्रतिबंध या रोक लागू करने से पहले ऑड-ईवन फॉर्मूले को लेकर 12 से ज्यादा अलग-अलग याचिकाओं में उठाए गए सवालों पर राय-मशविरा कर ले.
गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने इस फॉर्मूले का यह कहते हुए बचाव किया था कि इससे वायु प्रदूषण रोकने में मदद मिली है. बहरहाल, बॉल अब फिर से प्रदेश सरकार के पाले में आ गई है. देखना है कि केजरीवाल सरकार 15 जनवरी के बाद इस प्लान पर क्या रुख अख्तियार करती है.
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