दिल्ली के लोग हैरान हैं क्योंकि मेट्रो अचानक उल्टी चल पड़ी. पूर्वी दिल्ली के वसुंधरा एनक्लेव में रहने वाले शक्ति सिंह ने इसी वजह से मेट्रो से दफ्तर जाना बंद कर दिया है. मजबूरी में उन्हें कार खरीदनी पड़ी. बात सुनने में अजीब है लेकिन कई दिल्ली वाले मेट्रो की वजह से अपनी खुद की कार या बाइक लेने की तैयारी कर रहे हैं. दिल्ली शायद ये अपने आप में अनोखा मामला होगा जहां मेट्रो के ताजे फैसले से शायद ऑटो कंपनियों की लॉटरी निकल पड़े.
दिल्ली मेट्रो का अर्थशास्त्र
- दिल्ली गरीब लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट महंगा
- दिल्ली मेट्रो का किराया 5 माह में दोगुना
- दिल्ली में रोजाना मिनिमम मजदूरी औसतन 300 रु
- सालाना ऑपरेशन की लागत (2015-16) 2199 करोड़ रु
- सालाना आय करीब (2015-16) 1491 करोड़
- नुकसान 708 करोड़ रु
- औसतन रोजाना यात्री संख्या करीब 28 लाख
दिल्ली में सफर का हिसाब किताब
शक्ति बताते हैं पांच महीने पहले पूर्वी दिल्ली के वसुंधरा एन्क्लेव से कनॉट प्लेस के पास जयसिंह रोड तक दफ्तर पहुंचने के लिए हर रोज 144 रुपए खर्च होते थे. लेकिन अब 180 रुपए खर्च करने पड़ते हैं. यानी हर दिन का ट्रांसपोर्ट खर्च में 36 रुपए बढ़ोतरी. वजह है मेट्रो के किरायों में भारी बढ़ोतरी. लेकिन शक्ति ने इस खर्च को कम करने की जो तरकीब निकाली है वो दिल्ली में रहने वाले हर किसी के लिए फिक्र की वजह बन गई है.
सड़कों पर बढ़ेगा ट्रैफिक
दुनियाभर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का मतलब ही है प्रदूषण और ट्रैफिक कम करना. लेकिन जानकारों के मुताबिक दिल्ली मेट्रो का उल्टा फैसला पहले से ही परेशान दिल्ली को और दमघोंटू बना देगा. शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का मुख्य मकसद ही इससे फेल हो सकता है. पांच माह में दिल्ली मेट्रो के किराए करीब दोगुने हो चुके हैं. ऐसे में लोगों को बाइक और कार का सफर सस्ता पड़ने लगा है.
दुनिया की सबसे महंगी मेट्रो!
कमाई के मामले में दिल्ली दुनिया के दिग्गज शहरों से बहुत पीछे है. लेकिन ट्रांसपोर्ट खर्च के मामले में सबसे आगे है. जब मध्यम वर्ग जब मेट्रो किरायों से इतना परेशान है तो गरीबों या उन लोगों की हालत क्या होगी जिनकी आमदनी 15 हजार रुपए के आसपास है उनकी कमाई का आधा हिस्सा तो आने-जाने में खर्च हो रहा है.
कमाई में कम, खर्च में निकला दम
दुनिया के 6 बड़े शहरों पेरिस, न्यूयॉर्क, बीजिंग, सिंगापुर और टोक्यो के मुकाबले दिल्ली में ट्रांसपोर्ट का खर्च सबसे ज्यादा है. पेरिस इस मामले में सबसे सस्ता है. पेरिस में न्यूनतम कमाई रोजाना 84 यूरो है और मेट्रो का अधिकतम किराया 3.8 यूरो है. यानी रोजाना कमाई का 4.5 परसेंट हिस्सा. जबकि दिल्ली में न्यूनतम कमाई का 21 परसेंट मेट्रो और ट्रांसपोर्ट में खर्च हो जाता है.
मेट्रो ने बड़ी पिक्चर नहीं देखी
पूरी दुनिया में सरकारें ज्यादा खर्च करके ये तरकीब निकालने में जुटी हैं कि कैसे लोगों को अपनी कार निकालने से रोका जाए, जिससे प्रदूषण भी कम हो और ट्रैफिक भी. सिंगापुर ने तो अगले दो साल के लिए गाड़ियों की संख्या फ्रीज करने का फैसला किया है. ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट एक साल में 11 परसेंट सस्ता हो गया है.
प्रदूषण से बेपरवाह दिल्ली
लेकिन दिल्ली की अलग ही दुनिया है, जहां 5 माह में मेट्रो का किराया करीब दोगुना हो गया है. यानी पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बेसिक सिद्धांत को ही खारिज कर दिया गया है. एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली मेट्रो की वजह से सड़कों में गाड़ियां कम होने से 2002 से 2014 के बीच करीब 30 लाख टन कार्बन डायआक्साइड को पर्यावरण में आने से रोका गया.
जानकारों के मुताबिक प्रदूषण कम करना और सड़कों पर प्राइवेट गाड़ियां कम से कम रखना सरकार की जिम्मेदारी है. अमेरिका के 20 बड़े शहरों में केंद्र और राज्य सरकार मिलकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट में 50 परसेंट सब्सिडी देती हैं. बीजिंग में भी मेट्रो सिस्टम के लिए सब्सिडी दी जाती है ताकि लोग कार लेकर ना निकलें. दिल्ली मेट्रो को करीब 700 करोड़ रुपए की भरपाई केंद्र और राज्य सरकार आसानी से कर सकती हैं. भारत में भी सरकारों को अमेरिका या चीन की तरह ऐसा तरीका निकालना पड़ेगा जिससे मेट्रो के किराए कम से कम रखे जाएं.
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