पीएम मोदी के नोटबंदी वाले फैसले से देश के बैंकिंग सिस्टम से 500 और 1000 रुपये के नोट बाहर हो गए हैं. भारतीय रिजर्व बैंक ने इन नोटों के बदले नए नोट जारी किए हैं. लेकिन सवाल ये है कि अगर नोटबंदी के बाद जितना कैश बाहर निकाला गया था उससे ज्यादा कैश पुराने नोटों के रूप में वापस बैंकों में आ गया तो क्या होगा?
वित्तीय क्षेत्र में इस बात पर जोर-शोर से चर्चा हो रही है. जानकारों का मानना है कि अगर ऐसा होता है तो यह इकोनॉमी के लिए बहुत बुरी खबर है. इससे बैंकों की बैलेंस शीट पर चोट पड़ेगी. बैंकों के कमजोर होने का सीधा असर अर्थव्यवस्था के बुरे हाल के रूप में दिखेगा.
क्या कहते हैं नोटबंदी से जुड़े आंकड़े
- 8 नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद करीब 15 लाख करोड़ रुपये लीगल टेंडर नहीं रहे.
- 6 दिसंबर तक इसमें से 11.55 लाख करोड़ रुपये बैंकों में वापस आ गए
- 10 दिसंबर तक आरबीआई के मुताबिक 12.44 लाख करोड़ रुपये बैंकों में पहुंच गए
आंकड़ों के मुताबिक, हर दिन 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम बैंकों में जमा हो रही है. अगर रफ्तार यही रही तो जल्द ही सिस्टम से बाहर किए गए 15 लाख करोड़ रुपये वापस आ जाएंगे. लेकिन अगर आखिरी दिनों में इस रफ्तार के बढ़ने पर 15 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जमा बैंकों में जमा हो गई तो क्या होगा?
बैंकों में पहुंचे जाली नोट?
नोटबंदी के बाद बैंकों में पहुंची रकम अगर सीमा से ज्यादा होती है तो इसका सीधा मतलब ये होगा कि बैंकों में जाली नोट पहुंचे हैं. अगर ऐसा होता है तो इसका सबसे बड़ा नुकसान बैंकों को होगा.
बैंकिंग सिस्टम के एक बड़े जानकार का कहना है कि बैंकों में जो रकम जमा होती है, वो वहां से रिजर्व बैंक के करेंसी चेस्ट में भेजी जाती है. करेंसी चेस्ट में जमा करते वक्त बैंक को यह बताना होता है कि अगर गिनती में कोई गड़बड़ी होती है या नकली नोट पाए जाते हैं तो बैंकों की जमा राशि में उतनी रकम घटा दी जाएगी. इसका मतलब यह हुआ कि अगर नकली नोट बैंकों में जमा हो गए तो इसका नुकसान बैंको को होगा.
बैंको से नोट बदलने की हड़बड़ी में हुई चूक?
नोटबंदी के ऐलान के बाद बैंकों के सामने में लंबी लाइन लगी हैं. किसी को पैसा जमा करना है तो कोई नए नोट निकालने के लिए मशक्कत कर रहा है. इसी भीड़ में जरूरी सावधानियों की अनदेखी की जाने की संभावना है. अगर ऐसा नहीं है तो ऐसा कैसे हो सकता है कि जाली नोट बैंकिंग सिस्टम में जमा हो जाए. एक बैंकर का कहना है कि हर बैंक की तकरीबन हर ब्रांच में जाली नोटों की पहचान करने वाली मशीन होती है.
क्या भीड़ के दबाव में इस प्रक्रिया की अनदेखी हो गई? अगर ऐसा हुआ है तो यह अच्छा संकेत नहीं है.
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