भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले पर अटॉर्नी जनरल (AG) केके वेणुगोपाल और केंद्र सरकार के बीच मतभेद बढ़ गए हैं. बताया जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में वेणुगोपाल अपने पद से इस्तीफा भी दे सकते हैं.
दरअसल इस मामले की सुनवाई के तरीके पर वेणुगोपाल ने अपनी राय सुप्रीम कोर्ट के जजों के सामने रखी थी. केंद्र उनकी इस राय से सहमत नहीं था.
न्यूज पोर्टल द वायर के मुताबिक, केके वेणुगोपाल ने इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के जजों को एक लेटर लिखा था. इस लेटर में उन्होंने लिखा था कि महिला के (यौन उत्पीड़न के) आरोपों पर सुनवाई करने वाली किसी भी कमेटी में बाहरी सदस्य होने चाहिए.
निष्पक्षता के सिद्धांत की वकालत करते हुए उन्होंने कहा था कि इन बाहरी सदस्यों में रिटायर्ड महिला जजों को वरीयता देनी चाहिए. जस्टिस चंद्रचूड़ के लेटर में भी इस बात को दोहराया गया था.
जजों को AG वेणुगोपाल के लेटर के बाद केंद्र ने उनके विचारों से असहमति जाहिर की थी. केंद्र ने AG पर दवाब डाला था कि वह अपने लेटर को व्यक्तिगत घोषित करें और साफ करें कि इसका सरकार से कोई लेना-देना नहीं है.
इसके बाद AG ने जजों को एक और लेटर लिखा और कहा है कि लेटर में लिखे गए विचार उनके निजी विचार हैं और इनका सरकार से कोई संबंध नहीं है.
इससे पहले अंग्रेजी अखबार द हिंदू में राफेल से संबंधित दस्तावेजों को लेकर छपी एक रिपोर्ट के मामले पर भी AG ने सफाई दी थी. पहले उन्होंने कहा था कि ये दस्तावेज चोरी हुए थे. हालांकि बाद में उन्होंने साफ किया था कि इन दस्तावेजों की फोटोकॉपी की गई थी.
द वायर ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि वेणुगोपाल अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने के लिए जल्द ही इस्तीफा दे सकते हैं. 88 साल के केके वेणुगोपाल लीगल प्रोफेशन में सुप्रीम कोर्ट के हर जज से 20 साल से ज्यादा सीनियर हैं.
CJI के खिलाफ मामले में लग रहा है कि केके वेणुगोपाल ने सरकार के पक्ष से अलग (अपने पक्ष पर) बने रहने का फैसला कर लिया है. ऐसे में अगर वेणुगोपाल अगले कुछ दिनों में इस्तीफा देते हैं तो इससे वह संदेश दे सकते हैं कि सरकार ने इस मामले को जिस तरह से लिया, उसमें सब कुछ सही नहीं था.
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