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भारत में सबसे ज्यादा तलाक मुस्लिमों में नहीं इस धर्म में होता है

तलाक और अलगाव के मामले सबसे कम सिख और जैन समुदाय में

Published
भारत
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देशभर में इन आजकल तीन तलाक पर रोक लगाने की चर्चा जोरों पर है. मुस्लिम समाज में मौजूद 'तलाक ए बिद्दत' के खिलाफ लोकसभा में बिल भी पास किया जा चुका है. तीन तलाक पर हो रही इस चर्चा को देखकर आपको भले ही ऐसा लगता हो कि सबसे ज्यादा तलाक के मामले मुस्लिम समुदाय में होते हैं. लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है. तलाक और अलगाव की दर सबसे ज्यादा मुस्लिमों में नहीं बल्कि ईसाईयों और बौद्धों में है.

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तलाक और अलगाव के मामले सबसे कम सिख और जैन समुदाय में

बौद्ध में सबसे ज्यादा दर

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बाकी धर्मों की तुलना में बौद्ध धर्म के लोगों में तलाक और अलगाव की दर सबसे ज्यादा ज्यादा है. बौद्ध में प्रति हजार जोड़ों में 17.6 लोगों को तलाक और अलगाव का सामना करना पड़ता है. दरअसल बौद्धों में साथी की मौत के कारण अलगाव सबसे ज्यादा है.

बौद्ध धर्म के बाद तलाक और अलगाव के मामले में ईसाई धर्म दूसरे पायदान पर है. ईसाई धर्म में ये दर प्रति हजार जोड़ों में 16.6 है.

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मुस्लिम तीसरे पायदान पर

तीन तलाक की वजह से मुस्लिम समुदाय में तलाक की खबरें ज्यादा आती हैं. लेकिन मुस्लिमों में तलाकशुदा महिलाओं की तादाद प्रति 1000 जोड़ों पर 5 है. वहीं अगर अलगाव की बात करें तो प्रति हजार जोड़ों पर 6.7 फीसदी है.

अगर कुल मिलाकर तलाक और अलगाव की दर पर गौर करें तो मुस्लिमों में ये प्रति हजार 11.7 है. जो बौद्ध और ईसाई से कम है. हालांकि ये दर हिंदू से ज्यादा है.

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मुस्लिम और बौद्ध से कम दर हिंदुओं में

जनसंख्या के लिहाज से देश में हिंदुओं की आबादी सबसे अधिक है. लेकिन अगर बात तलाक और अलगाव की करें तो हिंदुओं में ये दर प्रति हजार जोड़ों पर 9.1 है, जो बौद्ध, ईसाई और मुसलमानों से कम है.

हिंदुओं में कानूनी तौर पर तलाक लेने की इजाजत है, लेकिन धार्मिक नजरिए से हिंदू समाज आज भी तलाक को सही नहीं मानता. शायद यही कारण है कि कि हिंदुओं में तलाक के मामले कम आते हैं, लेकिन इस समुदाय में अलगाव के मामले ज्यादा हैं. मुसलमानों की अपेक्षा हिंदुओं और सिखों में साथी की मौत की दर मुसलमानों की अपेक्षा अधिक है. शायद इस वजह से अलगाव के मामले ज्यादा हैं.

सबसे कम सिख और जैन में

भारत में मौजूद छह प्रमुख धार्मिक समुदायों में तलाक और अलगाव के सबसे कम मामले सिख और जैन धर्म में है. इन धर्मों में ये आकंड़ा प्रति हजार 6.3 है.

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