तमिलनाडु के पूर्व सीएम और DMK चीफ मुत्तुवेल करुणानिधि नहीं रहे. 94 साल की उम्र में करुणानिधि ने अपनी आखिरी सांस ली. साहित्य, सिनेमा से होते हुए राजनीति में बुलंदियों पर पहुंचने वाले करुणानिधि काफी दिनों से बीमार चल रहे थे और चेन्नई के कावेरी अस्पताल में भर्ती थे. शाम 6 बजकर 10 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली. दक्षिण भारत की राजनीति के सबसे बड़े चेहरों में शुमार करुणानिधि 5 बार तमिलनाडु के सीएम रह चुके हैं. उनके निधन के बाद तमिलनाडु समेत पूरे देश में मातम पसरा है.
करुणानिधि 27 जुलाई, 1969 को डीएमके के अध्यक्ष बने थे. ऐसे में वो भारतीय राजनीति में किसी भी पार्टी के पहले ऐसे अध्यक्ष रहे जिन्होंने इस पद पर 50 साल गुजारे.
महज 14 साल में राजनीति में एंट्री
3 जून 1924 को जन्मे करुणानिधि ऐसी उम्र में ही राजनीति में आ गए थे जब बच्चे खेलकूद में लगे रहते हैं. साल 1938 में हिंदी विरोधी प्रदर्शनों के साथ ही करुणानिधि ने राजनीति की शुरुआत की. तब वो सिर्फ 14 साल के थे. बाद में ई वी रामसामी ‘पेरियार' और डीएमके चीफ सी एन अन्नादुरई की विचारधारा से बेहद प्रभावित करुणानिधि द्रविड़ आंदोलन के सबसे भरोसेमंद चेहरा बन गए. करुणानिधि की भाषण शैली भी कमाल की थी.
दक्षिण भारत की कम से कम 50 फिल्मों की कहानियां और डायलॉग लिखने वाले करुणानिधि पहली बार 1957 में विधायक चुने गए.
1969 में पहली बार बने मुख्यमंत्री
डीएमके संस्थापक अन्नादुरई के निधन के बाद साल 1969 में वो पहली बार तमिलनाडु के सीएम बने. अगले ही विधानसभा चुनाव में उन्हें भारी बहुमत हासिल हुआ. अभी डीएमके के अध्यक्ष के तौर पर करुणानिधि को कुछ ही वक्त हुआ था कि एमजीआर और उनके बीच मतभेद की खबरें आने लगीं.
साल 1972 में एमजीआर ने DMK से अलग होकर AIADMK बना ली. इसके बाद से ही डीएमके की पूरी कमान करुणानिधि के हाथ में रही. बीच-बीच में उनके बेटों के बीच मतभेद की खबरें आईं, लेकिन इसे सुलझा लिया गया.
तीन शादियां, विरासत स्टालिन के हाथ
करुणानिधि की विरासत फिलहाल एमके स्टालिन के हाथों में है. स्टालिन के बड़े भाई एमके अलागिरी ने इसका विरोध किया था, लेकिन करुणानिधि ने विवाद को समय रहते सुलझा लिया. वो अपने सबसे बड़े बेटे एमके मुथू और अलागिरी को एक बार पार्टी से भी निकाल चुके हैं. उनकी तीसरी पत्नी से हुई बेटी कनिमोझी भी डीएमके की कद्दावर सांसद हैं. उन पर वंशवाद के भी आरोप लगते रहे हैं.
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