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Electoral Bonds: घोटाला या इत्तेफाक? इलेक्टोरल बॉन्ड से वोटर की जिंदगी पर क्या असर?

Electoral Bonds: ब्लैकमनी को हटाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड आया था, लेकिन काले गाउन पहने सुप्रीम कोर्ट के जजों ने इस स्कीम को असंवैधानिक बताया.

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भारत
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मान लाजिए आप महीने में 50 हजार रुपए कमाते हैं, जिससे आपके घर का खर्च चलता है. बिजली-पानी का बिल, राशन, सिलेंडर. इन सब के लिए पैसे देने पड़ते हैं. अब इस हालत में क्या आप किसी को 2 लाख रुपए या 3 लाख रुपए ऐसे ही दे सकते हैं?

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इसके तीन जवाब हैं कि अगर आपको किसी बात का डर है कि पैसे नहीं दिए तो मुश्किल हो जाएगी, परेशान किया जाएगा. समझ लीजिए जैसे अंग्रेजों को लगान देना पड़ता था वैसे ही...या फिर आप किसी से बेइंतहा प्यार करते हैं और उसे जरूरत है तो फिर आप कैसे भी कर के कर्जा उधार कुछ भी करके अपनी कमाई से दोगुने-तीगुने पैसे दे देंगे. लेकिन दूसरा जवाब है कि बिल्कुल नहीं दे सकता.. मेरे बस का नहीं है या कहेंगे मेरे मेहनत की कमाई है.

दरअसल, चुनावी चंदा (Electoral Bonds) का डेटा पब्लिक डोमेन में आने के बाद कुछ ऐसी ही कहानी सामने आई है.. अब सवाल है कि इन चंदों से आपका क्या लेना देना है? इस वीडियो में हम आपको यही बताएंगे कि कैसे चुनावी चंदे राजनीतिक दल और कंपनियां ही नहीं आपके भविष्य का भी फैसला करती है. इसलिए हम पूछते हैं जनाब ऐसे कैसे?

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सरकार कह रही है कि ब्लैक मनी को हटाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड आया था, लेकिन काले गाउन पहने सुप्रीम कोर्ट के जजों ने इस स्कीम को असंवैधानिक बताया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड बेचने वाले इकलौते बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड का सब डेटा सामने रख दो. एसबीआई का लंच टाइम वाला बहाना भी काम नहीं आया, और डेटा सामने रखना पड़ा.

डिटेल में जाने से पहले आपको बता दें कि किस पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कितना चंदा मिला है.

  • बीजेपी 8,718.85 करोड़ रुपये

  • कांग्रेस 1,864.45 करोड़ रुपये

  • टीएमसी 1,494.28 करोड़ रुपये

  • बीजेडी 1,183.5 करोड़ रुपये

*2018 से 2024 तक के आंकड़े

कई लोग कहेंगे कि राजनीतिक दल को चंदा नहीं मिलेगा तो पार्टी चलेगी कैसे, चुनाव लड़ना होता है, नेताओं की रैली का खर्चा, गाड़ी का खर्चा, खाने का खर्चा, पोस्टर, प्रचार का खर्चा.

बात सही है.. लेकिन इससे भी बड़ा सवाल है कि क्या इस चंदे का असर आपकी जिंदगी पर पड़ता है?

आप एक और उदाहरण देखिए..

मान लीजिए एक मिडिल क्लास परिवार है. 50 हजार रुपए कमाता है. घर में 4-5 लोग हैं.. परिवार में अगर कोई बूढ़ा है या बीमार है तो उनकी कमाई का करीब 20 फीसदी हिस्सा दवा और इलाज में खर्च होता है.
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दवा टेस्ट में फेल हुई कंपनियों ने दिया चुनावी चंदा

ऐसे में अगर आपको पता चले कि ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, दिल की बीमारियों का इलाज करने वाली कई बड़ी दवा की कंपनी एक तरफ ड्रग टेस्ट में फेल हो रही हों, दवा की कीमत बढ़ रही हो और दूसरी तरफ यही कंपनियां राजनीतिक दलों को करोड़ों का चंदा दें, तो सवाल उठेगा कि इतनी कमाई हो रही है तो दवा के दाम में ही कुछ कमी कर देते..

बीबीसी हिंद पर राघवेंद्र राव और शादाब नज़्मी की रिपोर्ट आई है.. जिसमें उन फार्मा कंपनियों का जिक्र है जिन्होंने चुनावी चंदा दिया है और वो दवा टेस्ट में फेल हुई थीं. इनमें टोरेंट फार्मास्यूटिकल लिमिटेड, सिप्ला लिमिटेड, सन फार्मा लेबोरेटरीज लिमिटेड और जाइडस हेल्थकेयर लिमिटेड जैसी कई कंपनियां शामिल हैं.

  • टोरेंट फार्मास्यूटिकल लिमिटेड - ने 77.5 करोड़ का चंदा दिया

  • सबसे ज्यादा चंदा 61 करोड़ बीजेपी को मिला. कांग्रेस को 5 करोड़ का चंदा दिया.

  • सिप्ला - ने 39.2 करोड़ का चंदा राजनीतिक दलों को दिया

  • जिसमें सबसे ज्यादा 37 करोड़ बीजेपी को और फिर 2.2 करोड़ कांग्रेस को दिया.

  • सन फार्मा - ने 15 अप्रैल 2019 और 8 मई 2019 को कुल 31.5 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे

ये सारे चंदे कंपनी ने बीजेपी को दिए.

जाइडस हेल्थकेयर लिमिटेड - 10 अक्टूबर 2022 और 10 जुलाई 2023 के बीच इस कंपनी ने 29 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे.

इसमें से 18 करोड़ रुपए बीजेपी को, 8 करोड़ रुपए सिक्किम क्रान्तिकारी मोर्चा और 3 करोड़ रुपए कांग्रेस को दिए गए.

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क्विंट की टीम ने जब स्टेट बैंक के डेटा को खंगाला तो पता चला कि 20 से ज्यादा बड़ी फार्मा कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए करीब 500 करोड़ रुपए का चंदा राजनीतिक दलों को दिया.

इन डेटा को देखकर कुछ लोग तर्क देंगे कि राजनीतिक चंदा तो नेहरू के जमाने से लिए जा रहे हैं. कांग्रेस के जमाने में तो लाइसेंस राज सिस्टम था. कंपनियां चंदा देती थीं और लाइसेंस पाती थीं. सवाल यही है कि अगर तब वो गलत था तो अब सही कैसे?

इत्तेफाक ये हैं कि चंदा देने वाली टॉप 30 में से 14 ऐसी कंपनियां हैं जिन्हें ईडी, सीबीआई, आईटी जैसी सरकारी जांच एजेंसियों का सामना करना पड़ा.

वहीं इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे याचिकाकर्ताओं का दावा है कि सीबीआई, ईडी और आईटी की जांच का सामना कर रही 41 कंपनियों ने चुनावी बॉन्ड के जरिए से बीजेपी को 2,471 करोड़ रुपये दिये और इनमें से 1,698 करोड़ रुपये इन एजेंसियों के छापों के बाद दिये गए.

इससे जुड़ा एक मामला देखिए, 10 नवंबर 2022 को ED ने केजरीवाल सरकार की शराब नीति से जुड़े कथित अनियमितताओं के मामले में ऑरोबिंदो फार्मा के डायरेक्टर सरथ रेड्डी को गिरफ्तार किया था. 5 दिन बाद 15 नवंबर को ऑरोबिंदो फार्मा ने बीजेपी को 5 करोड़ रुपये का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दिया.

यही नहीं जून 2023 में ED ने रेड्डी को माफी देने के लिए अदालत में अर्जी लगाई और 'सरकारी गवाह' बनाने का आग्रह किया. सरकारी गवाह बनने के बाद ऑरोबिंदो फार्मा ने नवंबर 2023 में 25 करोड़ रुपये का एक और चंदा दिया. इसी मामले में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल जेल में हैं.

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DLF के सारे चंदे बीजेपी ने भूनाए

एक और कंपनी है डीएलएफ..

जिसका नाम कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी के जीजा और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाडरा से जुड़ा था. डीएलएफ ने सीबीआई के एक्शन से पहले करीब जीरो रुपए का चंदा दिया था, कार्रवाई के बाद दिया 170 करोड़ रुपए का चंदा. ये सभी चंदा गया बीजेपी को.

अब कुछ और सवाल. क्या इलेक्टोरल बॉन्ड में ट्रांस्पैरेंसी थी? जवाब है नहीं.. अगर ट्रांस्पैरेंसी होती तो आम लोगों को पता चलता कि किसने किसे चंदा दिया है? अगर ट्रांस्पैरेंसी होती तो सुप्रीम कोर्ट इसे असंवैधानिक नहीं कहती.

दूसरा सवाल, ये घाटे वाली कंपनियां अचानक राजनीतिक दल को अपने प्रॉफिट से ज्यादा पैसे कैसे और क्यों दे रही थीं. दरअसल,मोदी सरकार ने किसी कंपनी के पिछले तीन सालों के औसत मुनाफे की 7.5 प्रतिशत की लीमिट को हटा दिया था और डोनर के दायरे और उनके दान के पैमाने का विस्तार करने के लिए घाटे में चल रही कंपनियों को भी दान देने की इजाजत दे दी थी. अब ये तो सरकार ही बता सकती है कि क्यों उसने घाटे वाली कंपनियों को भी चंदा देने का रास्ता खोल दिया?

अब आप खुद सोचिए कि चंदे का आपकी जिंदगी से कनेक्शन है या नहीं.. और पूछिए जनाब ऐसे कैसे?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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