ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब किसान Vs किसान और कोर्ट-कचहरी करेगी सरकार?

पांचवे, छठे, सातवें, आठवें अलग-अलग दौर की बैठक किसान-सरकार के बीच हो रही है लेकिन बैठकों का नतीजा क्या निकल रहा है?

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा

क्या सरकार अब किसान vs किसान कराने जा रही है? क्या किसान आंदोलन को कोर्ट कचहरी के चक्कर में फंसाने की कोशिश हो रही है? ऊपर से लगता है कि सरकार लगातार किसानों के साथ गतिरोध दूर करने की कोशिश में है. लेकिन करीब से देखेंगे तो इस कोशिश पर शक होने लगेगा. 8 जनवरी को आठवें दौर की बैठक भी बेनतीजा रही. लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है. ऐसा लग रहा है कि बात बनने के बजाय और बिगड़ती जा रही है. आठवें दौर की बातचीत में जो हुआ और बाहर आकर किसान नेताओं औऱ कृषि मंत्री ने जो कहा उससे तो यही लगता है.

सूत्र बताते हैं कि 8 जनवरी की बैठक में किसान मौन ही रहे. उनका कहना था कि जब कानून वापसी पर बात ही नहीं होनी तो क्या बात करनी है. समझ में ये नहीं आता कि जब सातवें दौर की बातचीत में भी बात यही पर अटकी थी तो फिर आठवें दौर की बातचीत की बुनियाद क्या थी?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या सरकार अब 'किसान vs किसान' कराने जा रही है?

कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच हजारों किसानों का एकजगह जमा होना, कंपकंपाती सर्दी में किसानों को खुले आसमान के नीचे रहना. इन सबके बीच ये आंदोलन खत्म कराने पर सरकार कितनी गंभीर है, ये सवाल है क्योंकि 8 जनवरी की बैठक में दोनों ही पक्षों का स्टैंड वही पुराना था. ऐसा लगता है कि सरकार थकाने की, टालमटोल करने की कोशिश में लग रही थी. वहीं किसान नेताओं का रुख साफ था- किसान कानूनों की पूरी तरह से वापसी.

अब देखिए बैठक के बाद क्या हुआ?

बैठक खत्म होने के बाद कृषि मंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि अभी तो हम उन किसानों से बात कर रहे हैं जो कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, कोई विचार नहीं है लेकिन जरूरत पड़ी तो कृषि कानूनों का समर्थन कर रहे किसान सगंठनों को भी बैठक में शामिल करने का सोचा जा सकता है.

केंद्रीय कृषि मंत्री का कहना है कि सरकार ने बार-बार कहा है कि किसान यूनियन अगर कानून वापस लेने के अलावा कोई विकल्प देंगे तो हम बात करने को तैयार हैं. आंदोलन कर रहे लोगों का मानना है कि इन कानूनों को वापस लिया जाए. लेकिन देश में बहुत से लोग इन कानूनों के पक्ष में हैं.

मतलब कि ये संभव है कि अगले कुछ दौर की बातचीत के बाद आपको बैठक में सिर्फ प्रदर्शनकारी किसान नहीं, सरकार के, किसान कानून के समर्थन वाले किसान भी दिख सकते हैं. प्रदर्शन में किसान Vs किसान वाली जो थ्योरी बड़े दिनों से दी जा रही थी, अब हो सकता है कि मीटिंग में उसका प्रैक्टिकल देखने को मिल जाए.

'सरकार ने कहा है कि कोर्ट में चलो'

मंत्री से मुलाकात के बाद अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव ने दावा किया था कि सरकार ने कहा है कि कोर्ट में चलो. इस बात पर किसानों की तरफ से कहा गया कि कोर्ट में जाने का तो सवाल ही नहीं उठता क्योंकि कोई ये नहीं कह रहा है कि नए किसान कानून गैर-कानूनी हैं. किसान तो ये कह रहे हैं कि वो इन कानूनों के खिलाफ हैं चाहे वो कानूनी हों या गैर-कानूनी और इन्हें वापस लिया जाए.

सरकार की तरफ से अगर कोर्ट में जाने की बात कही गई है तो इसका मतलब है कि सरकार इस बारे में भी सोच रही है कि इस किसान प्रदर्शन के खिलाफ अगर कोर्ट की तरफ से कोई कमेंट आ जाता है या कोई आदेश आ जाता है तो प्रदर्शन की धार को कमजोर किया जा सकता है. जैसा कि शाहीन बाग प्रदर्शन में देखा गया था.

सरकार और किसानों के बीच का ये गतिरोध अभी जारी रहेगा

अब कुल मिलाकर बात ये है कि सरकार और किसानों के बीच का ये गतिरोध जारी रहेगा. किसान 7 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च कर 26 जनवरी के ट्रैक्टर परेड का ट्रेलर दिखा चुके हैं. इस ट्रैक्टर मार्च में ही किसान नेता राकेश टिकैत ने क्विंट से बातचीत में कहा था कि ये तो रिहर्सल है और हम यानी किसान मई 2024 की तैयारी करके आए हैं.

इन सबके बीच किसान आंदोलन में हिस्सा ले रहे और मुखर रहे योगेंद्र यादव की एक बात जिसे वो चेतावनी कह रहे हैं वो जाननी चाहिए. वो कहते हैं कि अगर ये लड़ाई किसान नहीं जीते तो अगले 20 साल तक कोई किसान आंदोलन इस देश में नहीं होगा..हंसेगे लोग कि 2 लाख लोग कुछ नहीं कर सके तो ये 2 हजार या दो सौ लोग क्या कर लेंगे. शायद किसानों को ये बात पहले से पता है और वो अपनी मांगों पर पूरी तरह डटे हुए हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×