सिर्फ साढ़े चार साल का बच्चा क्या यौन उत्पीड़न मामले का आरोपी हो सकता है? बात गले नहीं उतरती, क्योंकि इस उम्र में तो ज्यादातर बच्चों को इनका मतलब ही नहीं मालूम होता. ये समस्या जितनी दिख रही है उससे कई गुना ज्यादा गंभीर है.
मामला दिल्ली एनसीआर क्षेत्र का है. जहां इसी हफ्ते साढ़े चार बरस के एक बच्चे पर अपनी क्लास की साथी लड़की के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप लगा है. मामला एक महंगे प्राइवेट स्कूल के अंदर का है. इस मामले ने उन दोनों बच्चों की मानसिक स्थिति पर फिक्र बढ़ा दी है.
जानकार अभी यही एनालिसिस करने में जुटे हैं कि अगर साढ़े चार साल के लड़के ने ऐसा किया है तो क्या उसको अंदाज भी होगा कि वो क्या कर रहा है? उसने ये सब कहां सीखा? ऐसे ढेरों सवाल हैं..
जानकारों के मुताबिक जरूरी है कि बच्चे के साथ अपराधी जैसा बर्ताव ना हो
महिलाओं और घरेलू यौन उत्पीड़न का शिकार बच्चों के लिए काम करने वाले एनजीओ राही की फाउंडर अनुजा गुप्ता के मुताबिक छोटे से लड़के को अपराधी के तौर पर देखना ही बहुत गलत है.
उनका मानना है कि हमें बच्चे को अलग नजरिए से देखना होगा. मुमकिन है कि उसके साथ यौन संबंधी बातों को लेकर कोई दिक्कत हो, लेकिन उसमें ये सब आईं कैसे? मुमकिन है या तो बच्चे के साथ यौन दुर्व्यहार हुआ हो या फिर उसने कहीं और ऐसा देखा हो और क्लास में वही दोहरा रहा हो
अनुजा गुप्ता ने द क्विंट को बताया कि दुर्व्यवहार मतलब है जबरदस्ती, यानी इरादा नुकसान पहुंचाना हो. यौन दुर्व्यवहार के मामले में इसका मकसद यौन संतुष्टि हासिल करना होता है. लेकिन इस उम्र का बच्चा आमतौर पर ऐसी किसी भी बात को समझने लायक नहीं होता.
उसे एक बच्चे की तरह देखिए जिसकी बीमारी को दूर करना जरूरी है. दोनों बच्चों का उपचार जरूरी है. जब कोई बच्चा सेक्सुअली आक्रामक होता है तब हमें हैरान परेशान होने के बजाए ऐसे हालात से निपटने के तरीके निकालना चाहिएअनुजा गुप्ता, फाउंडर राही
चाइल्ड एब्यूज रिव्यू के अध्ययन में भी अनुजा गुप्ता के सुझाव की पुष्टि होती है. जिसके मुताबिक
अगर कोई बच्चा यौन तौर तरीकों प्रदर्शित करता है तो इस बात का काफी खतरा है कि वो भी यौन उत्पीड़न का शिकार हुआ हो
यही नहीं एक बच्चे की मनोवैज्ञानिक दिक्कत किसीदूसरे बच्चे की खुशी छीन सकती है. इसलिए इस बात की पूरी आशंका रहती है कि दुर्व्यवहार का पीड़ित बच्चा अनजाने में दूसरों को दर्द या पीड़ा पहुंचाता है. इसलिए यह जरूरी है कि 4 और 5 साल की छोटी उम्र के बच्चों को दोषी ठहराने के बजाए इस समस्या पर जल्द से जल्द ध्यान देना चाहिए.
मुमकिन है बच्चे ने कुछ देखा हो और उसकी नकल कर रहा हो
फोर्टिस हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक और मानसिक रोग विभाग के डायरेक्टर डॉक्टर समीर पारिख के मुताबिक तीन से पांच और चार से छै साल की उम्र के बच्चों में आमतौर पर नकल या अनुकरण की आदत होती है.
डॉक्टर समीर पारिख कहते हैं कि बच्चों को सब कुछ समझ नहीं आता. इसलिए इस बात की पूरी गुंजाइश होती है कि अगर बच्चे कहीं कुछ देखते हैं उसे बाद में दोहराते हैं.
बच्चों के इस तरह के रवैये की वजह क्या है? डॉक्टर पारिख के मुताबिक हमें बच्चों में मीडिया में आने वाली बातों के बारे में समझाना होगा. बच्चे ऐसा कंटेंट भी देख रहे हैं उनके लायक नहीं है. इसलिए बड़ों को ध्यान देना होगा कि बच्चों को एक्सपोजर से बचाया जाए.
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