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1857 के सिपाही विद्रोह से WhatsApp अफवाहों तक,कुछ नई नसीहतें सीखें

मंगल पांडेय आज जिंदा होते तो 191 साल के होते. उनको आज हम किस तरह याद करते हैं?

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सन 1857 में, भारत एक विद्रोह का गवाह बना, जिसके बाद देश ने नई करवट ली. सिपाही विद्रोह ने पूरे देश को जैसे नींद से जगा दिया और इसके बाद घटनाओं का एक सिलसिला बना जो आने वाले समय में ब्रिटिश साम्राज्य से भारत की संपूर्ण आजादी पर खत्म होने वाला था. इस विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था? ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में तैनात सिपाहियों के बीच यह अफवाह फैल गई थी कि नई एनफील्ड राइफल्स के कारतूस बनाने में सुअर और गाय की चर्बी का भी इस्तेमाल किया जाता है.

इन राइफलों को चलाने के लिए सिपाहियों को कारतूस के सिरों को मुंह से काटना होगा. बाप रे! एक बार इस सांप्रदायिक रूप से दहकते मुद्दे को उभार देने के बाद, सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य एक कभी भी फट सकने वाले बम में बदल गया. इसके बाद किसी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. अफवाहों ने ब्रिटिश शासकों के खिलाफ भावनाओं को उबाल दिया था; हिंदुओं के लिए गाय अत्यंत पवित्र थी, और मुस्लिम सुअर के गोश्त के सख्त खिलाफ थे.

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मंगल पांडेय इतिहास के पन्नों में हमेशा उस शख्स के रूप में याद किए जाएंगे, जिसने 1857 के विद्रोह की घटनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्हें ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाएगा, जिसने जानवरों की चर्बी वाले कारतूस की अफवाह के बीच भारतीय सिपाहियों के विद्रोह का नेतृत्व किया था. तनाव जो तब तक केवल सौम्य था, तब घातक हो गया, जब उत्सुक नाक ने कुछ ऐसा सूंघ लिया, जो शायद सच भी हो सकता था.

इस तरह, मंगल पांडेय ने भारतीय भावनाओं के बड़े पैमाने पर संगठित होने की प्रक्रिया की शुरुआत की जो बाद के दिनों में ब्रिटिश शासकों को भारत से बाहर खदेड़ने वाले इस तरह के और भी विद्रोहों की अगुवाई करने वाली थी.

सिर्फ एक अफवाह, जो आज तक निश्चित रूप से पुष्ट नहीं की गई है, घटनाक्रम की शुरुआत के लिए पर्याप्त मात्रा में लोगों को सक्रिय कर देने को पर्याप्त थी!

क्वार्टर गार्ड के तीन सिख सदस्यों की गवाही के बाद कि, क्वार्टर गार्ड के ऑफिसर-इन-कमांड जमादार ईश्वरी प्रसाद ने उनको मंगल पांडेय को गिरफ्तार नहीं करने का आदेश दिया था, मंगल पांडेय और ईश्वरी प्रसाद को मौत की सजा सुनाई गई थी.

प्रत्येक इतिहास के अध्याय में यह घटना इसी तरह दर्ज है ना? इस घटना ने हमारे लिए मंगल पांडेय को अमर बना दिया.सही है.लेकिन क्या संदेश इससे भी गहरा है? हां.सामूहिक आंदोलन की शक्ति का प्रयोग, स्वयं के विवेकाधिकार से किया जाएगा.

सच उतना ही सच है, जैसा यह पेश किया जाता है?

महाभारत में, एक प्रसंग है जब चिंतित द्रोणाचार्य युधिष्ठिर से पूछते हैं कि क्या कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान उनका बेटा अश्वत्थामा वास्तव में मर चुका है, युधिष्ठिर जवाब देते हैं, ‘अश्वत्थामा हता:, इति गजा” (इसका चलताऊ अनुवाद यह है: "अश्वत्थामा की हत्या हुई. यह एक हाथी था). अश्वत्थामा के बारे में हाथी वाला हिस्सा अस्पष्ट रूप से फुसफुसा कर बोला गया था, जिससे द्रोणाचार्य को लगा था कि उनका बेटा मारा गया है. और तब वह हताश, दुखी और शिथिल हो जाते हैं, और इसके परिणामस्वरूप उनको युद्ध में पराजित करना आसान हो जाता है.

1874: द न्यू यॉर्क हेराल्ड ने एक फ्रंट पेज स्टोरी छापी जिसमें कहा गया था कि सेंट्रल पार्क चिड़ियाघर के जानवर भाग निकले हैं, जिससे पूरे न्यूयार्क में अफरातफरी फैल गई. संपादकों ने स्टोरी के साथ ही दावा किया कि चिड़ियाघर के असुरक्षित हालात को उजागर करने के लिए यह सारी मनगढ़ंत स्टोरी है, लेकिन नीचे छोटे अक्षरों में कही गई यह बात अनदेखी ही रह गई.

स्कूलों को बंद कर दिया गया, न्यूयार्क पुलिस को तैनात कर दिया गया और खतरनाक जानवरों को मारने के लिए लोग बंदूकों से लैस होकर सड़कों पर निकल पड़े.

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2018: “ नासा के मुताबिक, दिल्ली में जल्द ही बहुत बड़ा भूकंप आने वाला है. रिएक्टर स्केल पर यह 9.1 या 9.2 हो सकता है.
इसकी तारीख अभी पक्की नहीं है, लेकिन यह 7 अप्रैल से 15 अप्रैल के बीच आ सकता है. इसमें लाखों लोगों के मारे जाने की आशंका है.’’  लापरवाही से लिखा गया और प्रत्येक अक्षर पर पूरा ध्यान देने की चेतावनी वाला यह वाट्सएप मैसेज एक सोमवार की सुहानी सुबह किसी ने मेरी बेचैन मां को फारवर्ड किया. यह सुबह-सुबह टपकने वाले ‘गुड मॉर्निंग’ मैसेज से भी पहले आ गया था. और इसकी प्रतिक्रिया कतई मजेदार नहीं थी. देश भर में छह फोन कॉल्स, और दस एसएमएस के बाद उन्हें इत्मिनान हुआ.

उनकी बेटी सुरक्षित थी. उनकी बेटी सुरक्षित रहेगी. यह एक फेक न्यूज थी. मुझे यकीन है कि मेरी मां अकेली नहीं थीं जो इसका शिकार हो गईं.
तीन बेतरतीब मीडियम.
तीन बेतरतीब संदर्भ.
झूठ के तीन बेतरतीब उदाहरण जो शातिराना नतीजों की शुरुआत करते हैं.
क्या होता है जब ऐसे उदाहरण नियमित घटना बन जाते हैं?

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हमारे वाट्सएप फॉरवर्ड मैसेज नई समस्या नहीं हैं

इतिहास आपको यकीन दिला देगा कि ट्रिगर पॉइंट  (तात्कालिक कारण) सबसे आसान प्रलोभन हैं. एक बार जब आप ट्रिगर पॉइंट को समझ लेंगे, तो आपको सिर्फ इतना करना होगा कि इसे एक निश्चित तरीके से पैकेज करना होगा. इसे ‘सच्चाई’  से कुछ और मिलता-जुलता बनाएं? और सच उतना ही सच है, जैसा इसे पैकेज के रूप में पेश किया जाता है.

देवियों और सज्जनों हमारे फारवर्ड किए जाने वाले वाट्सएप मैसेज, कोई नई समस्या नहीं हैं. इसके बीज युगों पहले बोए गए थे! हमारे पूर्वजों पर बला टाल देना अपेक्षाकृत आसान था. अच्छे और बुरे नतीजों के लिए वही जिम्मेदार हैं.

लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है.
लोग मारे जा रहे हैं.
लोग भीड़ के हाथों मारे जा रहे हैं.
लोगों का एक रात में सबकुछ खत्म हो जा रहा है.


इससे पहले कि नुकसान बहुत ज्यादा हो जाए, हमारे माहौल में ‘सच्चाई’ के विभिन्न संस्करणों के साथ फैल रहे जहर की फिर से समीक्षा करने की जरूरत है.

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