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गुलाम नबी आजाद: J&K के डोडा से सत्ता के केंद्र तक का शानदार सफर

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा में कार्यकाल पूरा होने जा रहा है।

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कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा में कार्यकाल पूरा होने जा रहा है, सदन में गुलाम नबी आजाद की कमी न केवल विपक्ष को बल्कि सत्ता पक्ष को भी खलेगी, क्योंकि गुलाम नबी आजाद की शख्सियत ही कुछ ऐसी है कि कांग्रेस के साथ-साथ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी उनके मुरीद हैं, मंगलवार को गुलाम नबी आजाद समेत 3 नेताओं का कार्यकाल पूरा होने पर प्रधानमंत्री मोदी ने विदाई भाषण दिया, जो कि सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना रहा.

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आमतौर पर नेता अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. लेकिन इस बार राजनीतिक गिले-शिकवे भूलकर गुलाम नबी आजाद और पीएम मोदी ने एक-दूसरे के प्रति अपना आभार जताया, इसकी वजह समझना हो तो आजाद का पूरा सियासी सफर देखना होगा.

गुलाम नबी आजाद का राजनीतिक सफर

जम्मू-कश्मीर के डोडा से तालुक रखने वाले गुलाम नबी आजाद ने एक कद्दावर कांग्रेस नेता के रूप में पार्टी में अपनी अलग पहचान बनाई. 40 साल से ज्यादा के राजनीतिक करियर में गुलाम नबी आजाद पार्टी और सरकार में कई अहम पदों पर रहें.

• 1973 में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में राजनीतिक सफर की शुरुआत की

• पार्टी में बढ़ी सक्रियता के बाद 1980 में सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे.

• 1982 में पार्टी ने गुलाम नबी आजाद को केंद्रीय मंत्री बनाया.

• 1990 से 2014 के बीच पार्टी और सरकार में कई अहम पदों पर रहे

• 2005 में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने गुलाम नबी आजाद

• 2014 में राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बने

कांग्रेस में कद्दावर अल्पसंख्यक चेहरा

कांग्रेस में दिवंगत नेता अहमद पटेल के बाद गुलाम नबी आजाद दूसरे सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे हैं. पार्टी में होने वाले हर छोटे-बड़े फैसलों में गुलाम नबी आजाद की सहभागिता होती है. कांग्रेस नेताओं के मुताबिक गुलाम नबी आजाद बेहद हार्ड वर्किंग नेता है जिन्होंने पार्टी और सरकार में हर तरह की जिम्मेदारियों को संभाला.

सदन में फिर होगी आजाद की वापसी ?

राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद की कमी पार्टी के साथ-साथ सत्ता पक्ष को खलेगी, लेकिन क्या सदन में उनकी फिर से वापसी हो पाएगी. इस बात को लेकर कांग्रेस के सामने चुनौती यह है कि वह गुलाम नबी आजाद को जल्द राज्यसभा नहीं भेज सकती है, क्योंकि मार्च में गुजरात की 2 सीटों पर चुनाव होने हैं, लेकिन उनमें बीजेपी की जीत तय दिख रही है. वहीं अप्रैल में केरल में राज्यसभा सीट के लिए चुनाव है, लेकिन केरल में कांग्रेस किसी बाहरी व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाती है. इसलिए गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा में वापसी को लेकर लंबा इंतजार करना पड़ सकता है.

संसद में गुलाम नबी आजाद की वापसी जब भी हो लेकिन पार्टी और राजनीतिक जीवन में उनकी सक्रियता पहले की तरह जारी रहेगी. हो सकता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस उन्हें पार्टी से जुड़ी बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकती है.

गुलाम नबी आजाद का विदाई भाषण

‘’दिल ना उम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है. लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है.‘’ इस शायरी के साथ गुलाम नबी आजाद ने अपने विदाई भाषण की शुरुआत की. गुलाम नबी आजाद ने कहा कि उनके 40 साल का राजनीतिक सफर बेहद दिलचस्प और शानदार रहा. पीएम मोदी के साथ अपने राजनीतिक अनुभव को साझा करते हुए गुलाम नबी आजाद ने कहा कि, सदन में हमारी हर मुद्दों पर तीखी बहस हुई, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इसे कभी व्यक्तिगत नहीं लिया. हम ने पर्सनल और पार्टी की जिम्मेदारियों को अलग रखा. हर त्यौहार चाहे वो ईद हो या दिवाली इस अवसर पर बधाई देने के लिए पीएम मोदी का फोन जरूर आता था. गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वे खुशकिस्मत है कि वे हिन्दुस्तानी मुसलमान हैं और बंटवारे के बाद पाकिस्तान नहीं गए.

विदाई भाषण में क्यों भावुक हुए मोदी

वहीं गुलाम नबी आजाद के साथ अपने अनुभव को साझा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भावुक हो गए. एक किस्से का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा कि 2007 में कश्मीर में हुए एक आतंकवादी हमले में गुजरात के 7 नागरिकों की मौत हो गई थी. इस बात की खबर देने के लिए जब गुलाम नबी आजाद ने उन्हें फोन किया, तो वे रोने लगे. यह बात कहते हुए प्रधानमंत्री भावुक हो गए और उन्होंने गुलाम नबी आजाद को सैल्यूट किया.

ये भी पढ़ें- संसद से गुलाम नबी आजाद की विदाई पर भावुक हुए PM मोदी

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