बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने मालदीव चुनावों को लेकर बड़ा बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि अगर आने वाले मालदीव चुनावों में गड़बड़ी होती है, तो भारत को मालदीव पर हमला कर देना चाहिए.
भारत सरकार ने खुद को सुब्रमण्यम स्वामी के बयान से अलग कर लिया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार का कहना है कि ‘ये स्वामी के निजी विचार हैं. भारत सरकार के नहीं.’
मालदीव में है राजनीतिक अस्थिरता
बता दें मालदीव में इस समय राजनीतिक हालात बेहद खराब बने हुए हैं. पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने चुनावों में गड़बड़ी की आशंका जताई है. स्वामी के साथ हुई मीटिंग में उन्होंने कहा था कि देश के वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन चुनावों में धांधली कर सकते हैं. नशीद को भारत समर्थक माना जाता है.
मालदीव में इस साल फरवरी से आपातकाल लगा हुआ है. यामीन ने कोर्ट के उस फैसले के बाद आपातकाल लगाया था जिसमें नसीद सहित अन्य कैदियों की रिहाई का आदेश दिया गया था. साथ ही दोबारा मुकदमा चलाने को भी कहा गया था.
... जब भारत ने बचाई थी मालदीव सरकार
1988 में अब्दुल्ला लुतीफी नाम के शख्स ने मालदीव में अब्दुल गयूम सरकार के तख्ता पलट की साजिश रच थी. इसमें उसका सहयोग श्रीलंका आधारित अलगाववादी संगठन पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम ने किया था.
नवंबर 1988 की शुरूआत में हथियारबंद लड़ाके वॉटरबोटों के जरिए राजधानी माले पहुंच गए. मालदीव फोर्स के साथ लड़ाई के बाद उन्होंने अहम सरकारी बिल्डिंगों, एयरपोर्ट, पोर्ट, कम्यूनिकेशन सेंटर पर कब्जा कर लिया. कई नेता उनके कब्जे में आ गए. प्रेसिडेंट गयूम लगातार भागते रहे. उन्होंने कई घरों में शरण ली. इस दौरान वे लगातार इंटरनेशनल कम्यूनिटी से मदद की गुहार लगाते रहे.
3 नवंबर को राजीव गांधी ने हिंदुस्तानी फौज को गयूम की मदद के लिए मालदीव भेजा. इसे ऑपरेशन कैक्टस का नाम दिया गया. 50 वीं पैराशूट बिग्रेड के करीब 1600 सैनिकों को राजधानी माले में एयरड्रॉप किया गया. हथियारबंद लड़ाकों और हिंदुस्तानी सैनिकों में हुई लड़ाई में लड़ाकों की हार हुई और फिर से गयूम की सरकार सत्ता में आ गई. दोनों देशों के रिश्ते भी इस ऑपरेशन से बेहतर हुए थे.
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