सरकार ने 13 प्वाइंट रोस्टर मामले पर बड़ा फैसला किया है. उसने इस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ अध्यादेश जारी कर दिया है. सरकार ने The Central Educational Institutions (Reservation in Teachers’ Cadre) Ordinance, 2019 अध्यादेश जारी करने का ऐलान किया. इसके मुताबिक अब आरक्षण के लिए डिपार्टमेंट नहीं बल्कि यूनिवर्सिटी या कॉलेज एक यूनिट माना जाएगा. पांच मार्च को 13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ देश भर में बंद का आयोजन किया गया था. इसके बाद शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस मामले में अध्यादेश लाने के संकेत दिए थे.
पिछले दिनों उच्च शैक्षणिक संस्थानों में विभाग/विषय के हिसाब से आरक्षण के खिलाफ काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी से 2017 में शुरू हुआ आंदोलन देशव्यापी बन गया था. सड़क से संसद तक इसकी गूंज सुनाई देने लगी थी. इस मुद्दे पर अप्रैल 2017 में इलाहाबाद हाई कोर्ट और 22 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से उच्च शिक्षा केंद्रों में अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण के जरिए प्रवेश का काफी रास्ता काफी हद तक अटक गया था.
कैसे बनी थी ये स्थिति?
यह स्थिति आखिर क्यों बनी थी ? दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अप्रैल 2017 में यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) की 2006 में जारी की गई गाइड लाइन के एक प्रावधान को खत्म कर दिया. इस प्रावधान के मुताबिक, हर विश्वविद्यालय/डीम्ड विश्वविद्यालय/संस्थान को एक इकाई मानकर वहां पर स्वीकृत कुल पदों के अनुपात में आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था थी.
यूजीसी ने यह गाइड लाइन भारत सरकार की आरक्षण नीति को उच्च शैक्षणिक संस्थानों में सख्ती से लागू करने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय के 2005 में दिए गए आदेश के पालन में जारी की थी.
उच्च शैक्षणिक संस्थानों में किसी भी एक विभाग में कुल स्वीकृत पदों की संख्या काफी कम होती है. ऐसे में रिजर्वेशन रोस्टर के नियम से (DOPT/OM No. 36012/2/96- Estt(Res) dated 02.07.1997.) अगर किसी एक विभाग में 14 से कम पद हैं तो वहां 13 प्वाइंट का L-Shape रोस्टर लागू किया जाता है. 14 से ज्यादा पद होने पर 200 प्वाइंट का रोस्टर रजिस्टर बनाया जाता है. 13 प्वाइंट रोस्टर के फॉर्मूले में चौथा, 8वां और 12वां पद ओबीसी को और 7वां पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होता है. इसमें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की कोई गुंजाइश नहीं रहती क्योंकि रोस्टर क्रम में उनका नंबर 14वां आता है.
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