सातवें वेतन आयोग ने सरकारी और प्राइवेट क्षेत्र की तनख्वाह की तुलना के लिए आईआईएम अहमदाबाद से एक स्टडी करवाई, जिसके नतीजे सामने आए हैं.
तकरीबन 40 तरह के पेशों को इस स्टडी में शामिल किया गया. इनमें फिजियोथेरेपिस्ट, शिक्षक, वैज्ञानिक, तकनीकी कर्मचारी, इंजीनियर, क्लर्क, सॉफ्टवेयर डेवलपर्स, माली और अन्य शामिल हैं.
स्टडी के मुताबिक, सरकारीऔर केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (पीएसयू) में एंट्री लेवल नौकरियों में निजी क्षेत्र की तुलना में अधिक तनख्वाह मिलती है.
यह स्थिति डी-ग्रेड की नौकरियों में अधिक है. उदाहरण के तौर पर एक ड्राइवर की तनख्वाह निजी क्षेत्र में 12,000 रुपये मासिक है, वहीं सरकारी क्षेत्र में यह आंकड़ा 25,000 है.
वहीं उच्च स्तर की नौकरियों में भी यही स्थिति काफी हद तक है. उदाहरण के तौर पर शुरुआत में एक एमबीबीएस डॉक्टर की कमाई सरकारी क्षेत्र में 80,500 है, वहीं प्राइवेट क्षेत्र में यह 50,000 रुपये है.
अनुभव मिटाता है सरकारी-प्राइवेट का फासला
स्टडी के मुताबिक, अनुभव बढ़ने के साथ प्राइवेट क्षेत्र में वेतन तेजी से बढ़ता जाता है. यह स्थिति स्पेशल स्किल वाले क्षेत्रों में अधिक है.
उदाहरण के तौर पर, सामान्य डॉक्टरों का सरकारी अस्पतालों में निजी अस्पतालों की तुलना में शुरू में वेतन अधिक होता है. लेकिन करियर के बीच में यह लगभग बराबरी पर पहुंच जाता है.
स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के मामले में भी यही हाल है, जहां अनुभव के साथ प्राइवेट क्षेत्र में वेतन काफी अधिक हो जाता है.
लेकिन कुछ स्किल वाले क्षेत्र ऐसे हैं, जहां अनुभव के बाद भी सरकारी क्षेत्रों में ही वेतन अधिक होता है. जैसे, स्टडी के अनुसार फिजियोथेरेपिस्ट तथा डाइटिशियन को सरकारी क्षेत्र में अधिक वेतन मिलता है. अनुभव के बाद भी सरकारी विभागों में उनका वेतन प्राइवेट क्षेत्र से अधिक रहता है.
उदाहरण के तौर पर, एक एमडी या एमएस डॉक्टर, जिसका अनुभव 15 साल से ज्यादा है, आज की तारीख मे निजी क्षेत्र में 3,70,000 रुपये महीने का कमाता है. वहीं सरकारी क्षेत्र में यह आंकड़ा सिर्फ 1,60,000 है.
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