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डॉक्टरों का दावा - नए मेडिकल बिल का खामियाजा मरीज भी भुगतेंगे

मेडिकल बिल से ‘घरवाले’ ही क्यों खफा, प्वाइंट्स में समझिए

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NMC बिल को केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री डॉ. हर्षवर्धन हेल्थ सेक्टर में बड़ा बदलाव लाने वाला बता रहे हैं. हर्षवर्धन का कहना है कि इस 'क्रांतिकारी कदम' से न केवल हेल्थ सिस्टम में सुधार होगा, बल्कि हेल्थ एजुकेशन को पारदर्शी भी बनाया जाएगा. देश में अब तक मेडिकल एजुकेशन, मेडिकल संस्थानों और डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन से जुड़े काम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की जिम्मेदारी थी, लेकिन बिल पास होने के बाद मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ले लेगा.

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अब ऐसे में सवाल ये है कि इतना 'क्रांतिकारी कदम' होने के बाद भी इस बिल का विरोध 'घरवाले' यानी डॉक्टर्स ही क्यों कर रहे हैं. द क्विंट ने इस बिल को लेकर कुछ डॉक्टरों और डॉक्टरों के संगठन से बातचीत की. NMC बिल के कई प्रावधानों को तो कुछ डॉक्टर हेल्थ सिस्टम को बर्बाद करने वाला बता रहे हैं. उनमें से एक है, कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर का प्रावधान.

'CHP से क्वॉलिटी नहीं सिर्फ क्वॉन्टिटी बढ़ेगी'

कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर्स (CHP) को सरकार मध्यम स्तर के डॉक्टर बता रही है. NMC के आने के बाद CHP लाइसेंस उन लोगों को मिल सकेगा, जिनका थोड़ा भी संबंध मॉडर्न मेडिसिन से होगा, उन लोगों को एलोपैथी की प्रैक्टिस का लाइसेंस मिल जाएगा. सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो ये लोग 'डॉक्टर' बन जाएंगे.

AIIMS के सर्जरी डिपार्टमेंट के डॉक्टर आदर्श प्रताप सिंह कहते हैं-

सरकार थोड़े समय की ट्रेनिंग देकर ही कुछ लोगों को एलोपैथी दवाएं लिखने का अधिकार देना चाहती है. जो भी MBBS डॉक्टर होता है वो 5-6 साल की पढ़ाई में शरीर के हर अंग और उसमें होने वाली गतिविधियों की पढ़ाई करता है. दवाओं की पढ़ाई करता है. तब जाकर दवा लिख पाता है या इलाज कर पाता है. लेकिन सरकार कुछ वक्त की ही ट्रेनिंग देकर लोगों को डॉक्टर बनाने की तैयारी में है. इससे सबसे बड़ा नुकसान मरीजों का होगा. सिर्फ ‘डॉक्टर’ कहे जाने वाले लोगों की क्वॉन्टिटी बढ़ेगी और हेल्थ सिस्टम की क्वॉलिटी गिर जाएगी.
डॉ आदर्श प्रताप सिंह, AIIMS

सरकार का तर्क है कि अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, चीन जैसे देशों ने भी CHP को अपनाया है.

मेडिकल बिल से ‘घरवाले’ ही क्यों खफा, प्वाइंट्स में समझिए

वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डॉक्टर सांतनु सेन का कहना है कि देश की ज्यादातर आबादी गांव में हैं. CHP आने के बाद इन्हीं ग्रामीण मरीजों पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ेगा.

CHP का लाइसेंस हासिल करने वाले लोग जनरल प्रैक्टिशनर की तरह काम करने लगेंगे, गांव में जागरूकता की कमी के कारण मरीज अंतर नहीं समझ सकेंगे.
डॉक्टर सांतनु सेन, प्रेसिडेंट, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन

AIIMS में हड्डी एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अरुण पांडेय NMC बिल को तो क्रांतिकारी बताते हैं लेकिन इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि CHP से ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं और लचर होंगी.

CHP का रोड मैप क्या है?

डॉक्टर आदर्श का कहना है कि CHP को लेकर बिल में कोई रोड मैप भी क्लियर नहीं है.

ये लोग कौन होंगे? मिनिमन एजुकेशन क्वॉलिफिकेशन क्या होगी? कौन-कौन सी दवा दे सकते हैं? पहले कितने मरीजों को देख चुके हैं?ये सब भी बातें साफ होनी चाहिए, जो अभी पूरी तरह साफ नहीं हैं. नहीं तो साफ है कि झोलाझाप डॉक्टरों को अंग्रेजी दवा लिखने का अधिकार दिया जा रहा है.
डॉ. आदर्श प्रताप सिंह, AIIMS

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की CHP को लेकर एक और चिंता है. एसोसिएशन का कहना है कि CHP के तहत आने वाले लोगों को योग्य डॉक्टरों द्वारा सुपरवाइज करने की अनुमति की बात भी बिल में हैं. .

इसका मतलब ये होगा कि आईसीयू, नियो नेटल आईसीयू, क्रिटिकल केयर सेंटर, इमरजेंसी, केजुएलिटीज, ऑपरेशन थियेटर, वार्ड जैसी जगहों पर CHP जा सकेंगे और इलाज कर सकेंगे, जो मरीजों के लिए खतरनाक है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन

NEXT पर क्या दिक्कत है?

सरकार ने कहा है कि इस बिल का मकसद देश में मेडिकल एजुकेशन के पैरामिटर्स को सही करना है. अब MBBS को पूरा करने के बाद आखिरी साल में एक कॉमन परीक्षा NEXT (नेशनल एग्जिट टेस्ट) देना होगा. ये परीक्षा पास करने पर स्टूडेंट्स को डिग्री के साथ इंटर्नशिप करने के बाद ही मेडिकल प्रैक्टिस का लाइसेंस मिलेगा.

अब तक NEET-PG के जरिए पीजी कोर्स में दाखिला मिलता था लेकिन NMC के बाद NEXT के जरिए ही दाखिला मिल सकेगा. कुछ डॉक्टरों का ये कहना है कि इससे एक ही एग्जाम को कुछ ज्यादा ही तवज्जो दी जा रही. जिससे मेडिकल में आने वाले छात्रों को दिक्कतें होंगी. साथ ही वो ये भी कहते हैं कि NEXT का एग्जाम तो थोप दिया गया है, लेकिन इसका भी हर पहलू पूरी तरह साफ नहीं है. एक बार थोप दिए जाने के बाद आपत्ति भी नहीं जता सकेंगे.

मेडिकल एजुकेशन महंगी होगी या सस्ती?

अब निजी मेडिकल कॉलेजों और डीम्ड यूनिवर्सिटीज की 50% सीटों को केंद्र सरकार रेगुलेट करेगी, जबकि बाकी 50% सीटों की फीस को कैपिंग के साथ रेगुलेट करने का अधिकार राज्य सरकार को होगा. इस पर आपत्ति ये है कि सरकार प्राइवेट कॉलेजों पर अंकुश कम रही है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के डॉक्टर राजन शर्मा कहते हैं कि इस बिल का आने वाले कल पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ेगा. उनका मानना है कि इस बिल के जरिए मेडिकल एजुकेशन का प्राइवेटाइजेशन किया जा रहा है, जिससे पिछड़े तबके के छात्रों के लिए मेडिकल सुविधा मुश्किल हो जाएगी.

एजुकेशन का प्राइवेटाइजेशन हो रहा है: IMA

506 मेडिकल कॉलेज में 68 हजार एमबीबीएस की सीटें हैं. 279 प्राइवेट कॉलेज में 36000 प्राइवेट सीटें हैं 32000 सरकारी हैं. अभी राज्य सरकारें फीस तय करती हैं और प्राइवेट संस्थानों में आर्थिक तौर पर कमजोर छात्रों के लिए 50 फीसदी सीटें हैं जो कि सरकारी कॉलेजों के रेट के बराबर हैं. यानी कि 18000 सीटें आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए हैं. NMC में इनके लिए सिर्फ गाइडलाइंस हैं न कि ये रेगुलेट करते हैं.
डॉ राजन शर्मा, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के ऑनरेरी सेक्रेटरी जनरल डॉ आर वी अशोकन का कहना है कि NMC बिल की चर्चा पब्लिक के बीच होनी चाहिए. लोगों को पता तो होना चाहिए कि आखिर कैसे मेडिकल एजुकेशन बदला जा रहा है.

ये एक राष्ट्रीय मुद्दा है क्योंकि इससे गरीब और मिडल क्लास की उम्मीदें दांव पर हैं.
डॉ आर वी अशोकन, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन

भ्रष्टाचार कम होगा?

NEXT और CHP में कमियां गिनाने के बावजूद AIIMS के डॉक्टर अरुण पांडेय कहते हैं कि NMC को अगर सबसे सलाह मशविरा करके लागू किया जाता है तो ये क्रांतिकारी बिल साबित हो सकता है.

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में भ्रष्टाचार ज्यादा था, कहीं न कहीं ये संस्था प्राइवेट सेक्टर के हाथ में थी. अब इसपर गवर्नमेंट का रेगुलेशन होगा तो चीजें बदलेंगी, बेहतर होंगी.

बता दें, कि अब नेशनल मेडिकल कमीशन में 25 मेंबर होंगे, जिन्हें सरकार चुनेगी. इससे पहले तक MCI में इलेक्शन के जरिए मेंबर चुने जाते थे.

मेडिकल बिल से ‘घरवाले’ ही क्यों खफा, प्वाइंट्स में समझिए

NMC बिल में यूजी-पीजी एजुकेशन, रेटिंग और रजिस्ट्रेशन के लिए चार अलग-अलग ऑटोनॉमस बोर्ड्स का भी प्रावधान है.

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