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UP पुलिस ने कहा-हाथरस केस में ‘रेप’ नहीं हुआ, लेकिन ये 8 सवाल हैं

क्या पुलिस ने पीड़ित परिवार से आगे जांच का अधिकार छीन लिया?

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हाथरस मामले में पुलिस जांच से कई सवाल उठ रहे हैं और खामियां भी सामने आई हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी प्रशांत कुमार ने 1 अक्टूबर को दावा किया कि 19 साल की दलित लड़की के साथ रेप नहीं हुआ था क्योंकि फॉरेंसिक रिपोर्ट ने लड़की के सैंपल में स्पर्म नहीं पाया है. पुलिस का ये दावा लड़की के मरने से पहले दिए गए बयान के खिलाफ है, जिसमें उसने रेप का दावा किया था और चार आरोपियों का नाम लिया था.

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लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस से कुछ सवाल हैं:

सवाल 1: क्या यूपी पुलिस रेप पर भारत के न्यायशास्र का खंडन कर रही है?

1. भारत का न्यायशास्त्र ये साफ कहता है कि स्वैब सैंपल में स्पर्म न होने से रेप का खंडन नहीं किया जा सकता है. इस संबंध में कई हाई कोर्ट के फैसले मौजूद हैं. 2012 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि सीमेन की मौजूदगी रेप साबित करने के लिए जरूरी नहीं है.

2. IPC के सेक्शन 375 के मुताबिक रेप की परिभाषा (जिसे क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट, 2013 के जरिए बदला गया था) में पीनो-वैजिनल पेनिट्रेशन के अलावा दूसरे कृत्यों को भी शामिल किया गया है. भारत के रेप कानूनों के मुताबिक, किसी भी हद तक किसी भी चीज या शरीर के हिस्से से योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में पेनिट्रेशन करना रेप माना जाएगा, और इसमें सिर्फ लिंग शामिल नहीं होगा. तो जब पुलिस ने पीड़िता का बयान दर्ज किया था, तो क्या उसने साफ तौर से पीनो-वैजिनल पेनिट्रेशन की बात कही थी? अगर नहीं, तो पुलिस कैसे सीमेन न होने की वजह से 'रेप नहीं होने' की बात कह रही है.

सवाल 2: क्या यूपी पुलिस देरी से किए गए मेडिकल टेस्ट से सही नतीजे पा सकती है?

यूपी पुलिस का निष्कर्ष जिस 'फाइनल टेस्ट' पर आधारित है, वो 25 सितंबर को हुआ था. मतलब कि पीड़िता के सबसे पहले रेप का दावा करने के तीन दिन बाद क्योंकि अलीगढ़ के अस्पताल में 22 सितंबर को उसका बयान दर्ज हुआ था. और ये अलीगढ़ वाला बयान असल घटना के 11 दिन बाद लिया गया था. रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन का कहना है कि सैंपल अपराध के 72-90 घंटों के अंदर ले लिए जाने चाहिए, जिससे कि स्पर्म का पता चल सके. वो भी तब जब पीड़िता ने पेशाब, मल त्याग न किया हो और वो नहाई न हो.

सवाल 3: पोस्टमार्टम रिपोर्ट का क्या, जिसमें 'वैजाइना में पुरानी ठीक हुई चोटों' का जिक्र है?

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट्स में पुरानी ठीक हुई चोटों का जिक्र हुआ है. हालांकि ये नहीं बताया गया कि चोटें कितनी पुरानी हैं. नाम न उजागर करने की शर्त पर एक गायनोकोलॉजिस्ट ने कहा कि छोटी चोटें 11 दिनों में ठीक हो सकती हैं.

सवाल 4: यूपी पुलिस ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य को ध्यान में क्यों नहीं रखा?

यूपी ADGP प्रशांत कुमार ने NDTV से कहा कि लड़की ने रेप की बात हफ्ते भर बाद कही, जिसके बाद रेप की धारा FIR में जोड़ी गई. लेकिन लड़की की मां का कहना है कि उन्होंने पुलिस को 14 सितंबर को बताया था कि उनकी लड़की खेत में मिली है, कपड़े नहीं हैं, वैजाइना से खून बह रहा है और शरीर पर कई चोट हैं. क्योंकि लड़की बार-बार बेहोश हो रही थी और मां पक्के तौर पर नहीं कह सकती थी कि उसका रेप हुआ है, इसलिए अपराध के दिन पुलिस से ये नहीं कहा गया था.

तो क्या पुलिस को लड़की की हालत समझकर और देखकर परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर रेप की FIR नहीं दर्ज करनी चाहिए थी.

सवाल 5: क्या पीड़िता के शव को जल्दबाजी में जलाने के पीछे कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की वैध चिंता थी?

यूपी पुलिस लगातार कह रही है कि लड़की का क्रियाक्रम 30 सितंबर की आधी रात में परिवार की मंजूरी से किया गया था क्योंकि पुलिस गांव में 'कानून-व्यवस्था की दिक्कत' से बचना चाहती थी. पुलिस का कहना है कि पीड़िता के दूर के रिश्तेदार अंतिम संस्कार के समय मौजूद थे, लेकिन वीडियो सबूत और परिवार के लोगों के बयान कुछ और ही कहते हैं.

यूपी के पूर्व DGP विक्रम सिंह ने क्विंट को बताया कि ऐसा पहले भी हुआ है कि पुलिस ने शव का अंतिम संस्कार खतरे का अंदेशा या कानून-व्यवस्था बिगड़ने के डर की वजह से किया हो. सिंह ने कहा कि पुलिस इसके लिए परिवार को भरोसे में लेती है.

सिंह ने कहा, "क्या पीड़िता का परिवार अपराधी था? उन्हें भरोसे में क्यों नहीं लिया गया? पुलिस परिवार को सुरक्षा दे सकती थी. परिवार को अंतिम संस्कार से दूर रखना गलत था."

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सवाल 6: क्या पुलिस ने पीड़ित परिवार से आगे जांच का अधिकार छीन लिया?

केरल के DGP रह चुके एनसी अस्थाना कहते हैं कि शव को रात में जला देना और वो भी पीड़ित परिवार को आखिरी बार दिखाए बिना, इससे पुलिस ने परिवार का दूसरा पोस्ट-मार्टम की मांग रखने का अधिकार छीन लिया.

सवाल 7: यूपी पुलिस ने क्राइम स्पॉट को सील क्यों नहीं किया था?

कथित अपराध 14 सितंबर को हुआ था. जब क्विंट 30 सितंबर को मौके पर पहुंचा तो देखा कि क्राइम स्पॉट सील नहीं किया गया है. पीड़ित के भाई ने कहा कि अपराध के पहले दिन से 2 अक्टूबर तक क्राइम स्पॉट पर कोई भी शख्स, पत्रकार या आरोपी का परिवार जा सकता था. पुलिस ने वहां कोई सीलिंग या बोर्ड नहीं लगाया था. SIT मौके पर 1 अक्टूबर को पहुंची.

सवाल 8: साफ लापरवाही या जानबूझकर गलतियां?

जांच और पुलिस के बयानों में कमियां और पुलिस पर ड्यूटी ठीक तरह से न करने के आरोपों को जब साथ में देखा जाएगा तो क्या ये सवाल नहीं उठेगा कि पुलिस ने काम लापरवाही से किया या वो केस को कमजोर करने के इरादे से काम कर रही थी?

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