झारखंड की राजनीति में एक सौम्य और साधारण चेहरा माने जाने वाले हेमंत को भले ही राजनीति विरासत में मिली है, लेकिन अपने पिता शिबू सोरेन की छांव से खुद को बाहर निकाल कर उन्होंने अपने संघर्ष के बल पर दोबारा राज्य की सत्ता हासिल की है. उन्होंने अपनी टीम को लेकर संघर्ष किया और जेएमएम को उस जगह पहुंचाया, जहां पहुंचना कठिन-सा लगने लगा था. विधानसभा चुनाव में जेएमएम सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
हेमंत ने राजनीति का ककहरा अपने पिता शिबू सोरेन से सीखा है और राजनीति में उनका आगमन बड़े भाई दुर्गा सोरेन के आकस्मिक निधन के बाद हुआ. लेकिन जब उन्होंने राजनीति में कदम रखा तो इस मजबूती के साथ कि आज वह दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बन पाए हैं. पारिवारिक और सामाजिक व्यक्ति की पहचान के साथ 2019 के विधानसभा चुनाव में हेमंत ने नई रणनीति बनाई और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रघुवर दास सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया.
हेमंत सोरेन ने शुरू किया था संघर्ष यात्रा
हेमंत ने अपने अभियान की शुरुआत सितंबर, 2018 से ही कर दी थी. लोकसभा चुनाव से पहले जो अभियान जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने शुरू किया था, उसे 'संघर्ष यात्रा' का नाम दिया था. इसके तहत वह राज्य के सभी 263 प्रखंडों में पहुंचे और वहां जाकर सभाएं की. उन्होंने कार्यकर्ताओं में जोश भरा और युवाओं को पार्टी से जोड़ा. इस दौरान झारखंड के लिए शहीद हुए आदिवासियों को उन्होंने सम्मानित भी किया. इसी दौरान उन्होंने अपनी एक 12 सदस्यीय टीम बनाई, जिसने बड़े पैमाने पर डिजिटल प्रचार अभियान चलाया.
लातेहार से जेएमएम के नवनिर्वाचित विधायक वैद्यनाथ राम कहते हैं, "हेमंत को प्रारंभ से ही सादगी पसंद है. वह वन-टू-वन लोगों से मिलते हैं और उनकी समस्याओं को सुनकर उनके समाधान की कोशिश करते हैं. इससे लोगों में विश्वास पैदा होता है."
जेएमएम के संगठन से जुड़े एक नेता का कहना हैं, "संघर्ष यात्रा की समाप्ति के बाद हेमंत 'बदलाव यात्रा' पर निकल गए और उन्होंने लोगों से सत्ता बदलने की अपील की. इस दौरान उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट रखा. पार्टी में 'वन मैन' की रणनीति के तहत सोरेन ने जमकर मेहनत की और सहयोगी दलों के साथ जुड़ाव बनाए रखा."
संथाल परगना से शुरू की थी बदलाव यात्रा
हेमंत सोरेन ने 'बदलाव यात्रा' की शुरुआत संथाल परगना के साहिबगंज से की थी और इसका समापन रांची में हुआ. इस यात्रा के दौरान उन्होंने पूरे झारखंड के सुदूर इलाकों का दौरान किया और लोगों की समस्याएं सुनीं और उसके समाधान का वादा किया. लोगों की समस्याओं, उनके समाधान के मुद्दों को उन्होंने घोषणा-पत्र में शामिल किया. इसका परिणाम यह हुआ कि संथाल परगना के आदिवासी बहुल सीटों तक सीमित मानी जाने वाली पार्टी राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में पहुंच गई. जेएमएम का जनाधार बढ़ा, और पहली बार लातेहार और गढ़वा विधानसभा में जेएमएम के उम्मीदवारों की जीत हुई.
सोरेन ने अपने अभियान को आधुनिक बनाने के लिए एक प्रोफेशनल टीम को सोशल मीडिया के लिए उतारा. जेएमएम के कार्यकर्ताओं को इसके लिए प्रशिक्षण दिलाया और सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया. दूसरी ओर, सुदूर क्षेत्रों में पहुंचने के लिए उन्होंने साइकिल को साधन बनाया, जिस पर सवार होकर कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव लोगों से मुलाकात की और जेएमएम का संदेश पहुंचाया.
हेमंत की इस कुशल रणनीति का परिणाम रहा कि बीजेपी का 'अबकी बार 65 पार' का नारा धरा का धरा रह गया और जेएमएम, आरजेडी और कांग्रेस गठबंधन बहुमत का आंकड़ा पार कर सत्ता पर काबिज हो गया.
अब हेमंत के सामने झारखंड के लोगों से किए वादे निभाने की चुनौती है. देखने वाली बात होगी कि हेमंत अपने वादों को निभाने को लेकर कितना खरा उतर पाते हैं.
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