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उत्तर प्रदेश में किस तरह बीजेपी के आगे फुस्स महागठबंधन का बम?

एसपी-बीएसपी का गठबंधन और कांग्रेस का ‘प्रियंका वार’ भी बीजेपी के तूफान को नहीं रोक सका

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एक बार फिर देश में मोदी लहर में सभी विपक्षी पार्टियां उड़ गईं. खासतौर पर हिंदी भाषी राज्यों में तो बीजेपी ने पाकी पार्टियों का सूपड़ा साफ कर दिया. 2014 के चुनाव में बीजेपी ने अपने दम पर ही बहुमत हासिल कर लिया था, लेकिन इस बार बीजेपी ने उस आंकड़ो को भी पार कर लिया.

पिछले चुनाव में बीजेपी की जीत का अगुवा बने उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 71 सीटें हासिल की थी. एक बार फिर बीजेपी ने यूपी में अपना दमखम दिखाकर शानदार जीत हासिल की है.

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बीजेपी की जीत इसलिए ज्यादा खास हो जाती है, क्योंकि राज्य में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने सबको हैरान करते हुए गठबंधन कर लिया था. माना जा रहा था कि ये गठबंधन बीजेपी को रोकने में कामयाब होगा.

इसके पीछे कारण था 2014 में दोनों पार्टियों का प्रदर्शन. 2014 में एसपी और बीएसपी का वोट शेयर मिलाकर बीजेपी के वोट शेयर के लगभग बराबर पहुंच रहा था. 42 सीटें इनमें से ऐसी थी, जिन पर इन दोनों पार्टियों का वोट शेयर मिलाकर बीजेपी से भी ज्यादा हो रहा था. ऐसे में माना जा रहा था कि बीजेपी 30 सीटों से कम पर रुक जाएगी.

लेकिन सात चरण के चुनावों के बाद गुरूवार को आए नतीजों ने सारी उम्मीदों और अटकलों को जमीन पर पटक दिया. बीजेपी ने करीब 62 सीटों पर जीत की ओर आगे बढ़ रही है.

एसपी-बीएसपी के गठबंधन के बाद दोनों पार्टियों ने ये मान लिया था कि जातिगत वोट उनके साथ ही होने वाला है, लेकिन जमीन पर हालात बदल गए. लेकिन बीजेपी के राष्ट्रवाद के मुद्दे ने हालात बदल दिए और यूपी की जातिवादी राजनीति का उस पर कोई असर नहीं पड़ा.

पिछले साल से ही बीजेपी लगातार कोशिश कर रही थी कि लोगों से जुड़ा जाए. 140 से ज्यादा छोटी-छोटी रैलियों के जरिए लोगों से पार्टी को कनेक्ट करने की कोशिश की जा रही थी. इसका नतीजा हुआ कि बीजेपी के साथ अति दलित, अति पिछड़ा और फॉरवर्ड जातियां आ गई.

इसके अलावा प्रियंका गांधी की एंट्री को लेकर जो संभावनाएं जताई जा रही थीं, उसका भी कोई फायदा कांग्रेस को नहीं पहुंच पाया. उनकी रैलियों और रोड़ शो में भीड़ हुई, लेकिन वो वोट में नहीं बदल पाया.

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