वैक्सीन शरीर की नेचुरल इम्युनिटी बढ़ाते हुए पैथोजन से लड़ने में मदद करती है. इसके लिए वैक्सीन के जरिए शरीर में पैथोजन की जानकारी डाली जाती है. पैथोजन की वजह से बिना बीमारी के शरीर प्रतिक्रिया देता है. इससे आगे होने वाले इसी पैथोजन के हमले से बॉडी इम्यून हो जाती है.
वैक्सीन बनाने के कई तरीके होते हैं और वैज्ञानिकों को वैक्सीन बनाने के लिए असल में पैथोजन की जरूरत होती है. वैक्सीन डिजाइन करने और इंसानों पर इस्तेमाल के लिए सुरक्षित करने में 10-15 साल लग जाते हैं. इसलिए COVID -19 वैक्सीन का 18 महीने की टाइमलाइन इस लिहाज से अच्छी है. वैक्सीन बनाने के दो कॉमन तरीके हैं - पैथोजन की क्षमता कम करके (Attenuated) और पैथोजन को निष्क्रिय करके (Inactivated).
पैथोजन की क्षमता कम करके (Attenuated) बनाई गई वैक्सीन में वायरस या बैक्टीरिया का कमजोर स्ट्रेन इस्तेमाल किया जाता है. मीसल्स और टीबी की वैक्सीन ऐसे ही बनाई जाती है.
पैथोजन को निष्क्रिय करके (Inactivated) बनाई गई वैक्सीन के लिए मरे हुए पैथोजन का जेनेटिक मेक-अप स्टडी किया जाता है. पैथोजन के एक्टिव प्रोटीन की पहचान होती है और फिर उस प्रोटीन को बड़ी संख्या में रेप्लिकेट किया जाता है. इस तरह तैयार होने वाली वैक्सीन की कई अंतराल पर मल्टीप्ल डोज लेनी पड़ती है. पोलियो और रेबीज की वैक्सीन इसका उदाहरण है.
दुनियाभर में कई नए और आधुनिक तकनीकों से वैक्सीन बनाने के तरीकों को ढूंढा जा रहा है. इन तकनीकों में न्युक्लियोटाइड आधारित वैक्सीन कम समय में बन जाती है. इस वैक्सीन में पैथोजन का DNA/RNA रेप्लिकेट किया जाता है और शरीर इससे वही पैथोजन तैयार करता है. जीका वायरस वैक्सीन ऐसे ही बनी है.
COVID-19 वैक्सीन पर तेजी से काम चल रहा है. इसके लिए चीन के वैज्ञानिक भी कुछ हद तक जिम्मेदार हैं. उन्होंने COVID-19 बीमारी करने वाले वायरस SARS-CoV2 का जेनेटिक सीक्वेंस जनवरी में शेयर किया है. वैक्सीन की होड़ में सबसे आगे अमेरिकी बायोटेक फर्म Moderna है, जिसने National Institute of Allergies and Infections (USA) के साथ मिलकर वैक्सीन डिजाइन से ह्यूमन टेस्टिंग तक जाने में सिर्फ 42 दिन लिए. ये रिकॉर्ड-ब्रेकिंग स्पीड है.
वैक्सीन बनाने की जल्दी के बीच एक बात काफी जरूरी है- क्लीनिकल ट्रायल. वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल बहुत सावधानी से किए जाने होते हैं. इसका कारण ये है कि मार्केट में जाने से पहले वैक्सीन का प्रभाव और सेफ्टी सुनिश्चित किया जा सके.
वैक्सीन डिजाइन से इस्तेमाल के लिए तैयार होने तक ह्यूमन ट्रायल की तीन स्टेज होती हैं. हर स्टेज में वैक्सीन का प्रभाव और सेफ्टी मापी जाती है. पहली स्टेज में वैक्सीन को स्वस्थ लोगों के छोटे समूह पर टेस्ट किया जाता है. वैज्ञानिक इस दौरान अलग-अलग डोज के लिए सेफ्टी और इम्युनिटी रेस्पॉन्स देखते हैं. सामान्य तौर पर ये स्टेज 1-2 साल लेती है. COVID-19 मामले में ये लगभग 3 महीने लेगी.
ह्यूमन ट्रायल के सेकंड स्टेज में वैक्सीन को बड़े समूह पर इस्तेमाल किया जाता है. इसे करने का तरीका होता है- बेतरतीब, डबल-ब्लाइंड, प्लेसबो कंट्रोल्ड. इस दौरान वैज्ञानिक सही डोज और प्रस्तावित वैक्सीन शेड्यूल देखते हैं. ये स्टेज 2-3 साल लेती है. लेकिन COVID-19 केस में करीब 8 महीने लगेंगे.
वैक्सीन ट्रायल की तीसरी स्टेज लगभग दूसरी स्टेज के जैसे ही है. फर्क होता है समूह के साइज का. इस स्टेज में और भी बड़ा समूह लिया जाता है.
एक बार वैक्सीन ट्रायल की तीन स्टेज पार कर लेती है तो उसे रेगुलेटरी समीक्षा से गुजरना होता है. इसमें एक सरकारी बॉडी वैक्सीन को मंजूरी देती है.
अगर COVID-19 वैक्सीन अगले 12-18 महीने में तैयार हो जाती है, तो कोरोना वायरस का दोबारा संक्रमण रोका जा सकता है.
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