दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार का अॉड-ईवन फॉर्मूला बुरी तरह फ्लॉप रहा है. यह बात आईआईटी खड़गपुर की एक स्टडी में सामने आई है. ये स्टडी खुद दिल्ली सरकार की तरफ से करवाई गई थी.
दिल्ली सरकार ने 1 से 15 जनवरी और 15 से 30 अप्रैल के बीच अॉड-ईवन फॉर्मूला लागू करवाया था.
कार व ट्रक से निकलने वाले धुंए से होने वाला प्रदूषण, कुल प्रदूषण का बहुत ही छोटा हिस्सा होता है. इसलिए केवल इस प्रकार के प्रदूषण पर रोक लगने से कोई ठोस परिणाम निकलकर सामने नहीं आ पाया.
ठंड के दिनों में कुल प्रदूषण का केवल 25% ही कार और ट्रकों से निकलने वाले धुंए से होता है. वहीं गर्मियों में ये आंकड़ा 10% से भी कम हो जाता है.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की रिपोर्ट में भी इसी तरह की बात निकलकर सामने आई थी. लेकिन आम आदमी पार्टी सरकार ने ने उन आंकड़ों को मानने से इनकार कर दिया था.
सबसे ज्यादा प्रदूषण सड़कों की धूल से
आईआईटी की स्टडी के अनुसार, गाड़ियों से निकलने वाले धुएं के अलावा कोयले के धुएं, रोड की धूल, नॉन एलपीजी रसोई गैसों और तंदूरों की वजह से दिल्ली की आबोहवा खराब है. वहीं पावर प्लांट से निकलने वाली नाइट्रोजन अॉक्साइड की वजह से ये स्थिति और बदतर हो जाती है.
सड़को की धूल से होने वाला प्रदूषण कुल प्रदूषण का 40% है. वहीं कुल सल्फर अॉक्साइड के प्रदूषण में पॉवर प्लांट से निकलने वाली सल्फर अॉक्साइड की मात्रा 90% तक है.
इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक, अॉड-ईवन के दूसरे फेज के शुरुआती 15 दिनों में प्रदूषण 23% बढ़ गया था.
पंजाब में जलने वाले बायोमास से दिल्ली में प्रदूषण
रिपोर्ट में पंजाब और हरियाणा के खेतों में बड़े पैमाने पर फसलों की खूंटी जलाए जाने का जिक्र है. वहां जलाए जाने वाले बायोमास से बड़े पैमाने पर दिल्ली की हवा खराब होती है. इस तरह केजरीवाल सरकार का एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट फेल होता नजर आ रहा है.
'इंडिया स्पेंड' की रिपोर्ट में बताया गया है कि अलग-अलग तरह के प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए कुछ नए तरीके अपनाए जा सकते हैं. जैसे रेस्टारेंट्स में इलेक्ट्रॉनिक तंदूर का प्रचलन बढ़ाया जाए, निर्माणाधीन इमारतों को ढककर रखा जाए, रसोई में पूरी तरह एलपीजी का इस्तेमाल किया जाए. साथ ही गाड़ियों में प्रदूषण से संबंधित सभी नियमों का पालन कर भी एक हद तक वायु प्रदूषण पर लगाम लगाई जा सकती है.
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