भारत ने चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) से कथित लिंक वाले चीनी निवेशों और कंपनियों की पहचान शुरू कर दी है. न्यूज एजेंसी आईएएनएस ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत की कई परियोजनाएं ऐसी कंपनियों द्वारा चलाई जा रही हैं या उनसे महत्वपूर्ण रूप से जुड़ी हुई हैं, जिनके पीएलए से 'लिंक' हैं. रिपोर्ट में सरकार से जुड़े सूत्रों के हवाले से बताया है कि इस तरह की एक शीर्ष परियोजना कर्नाटक में चल रही है.
भारत और चीन के बीच बड़ा संयुक्त उद्यम मानी जाने वाली शिंडिया स्टील्स लिमिटेड ने हाल ही में कर्नाटक के कोप्पल जिले में होसपेट के पास 0.8 एमटीपीए लौह अयस्क पैलेट सुविधा का संचालन शुरू कर दिया है, जिसकी लागत 250 करोड़ रुपये से थोड़ी ज्यादा है.
हालांकि इसकी मुख्य निवेशक शिनशिंग कैथे इंटरनेशनल ग्रुप कॉ. लिमिटेड (चीन) है. इसकी वेबसाइट के मुताबिक, यह पीएलए के जनरल लॉजिस्टिक्स डिपार्टमेंट के पूर्व सहायक उद्यमों और संस्थानों और उत्पादन विभाग से अलग होकर पुननिर्मित और पुनर्गठित है.
होसपेट परियोजना को जो कंपनी संचालित करती है, उसकी निगरानी सरकारी स्वामित्व वाली एसेट्स सुपरविजन एंड एडमिनिस्ट्रेशन कमिशन ऑफ द स्टेट काउंसिल इन चाइना (एसएएसएसी) करती है.
आंध्र प्रदेश में एक दूसरी परियोजना है, जिसे लेकर भी मौजूदा परिदृश्य में सुरक्षा के मुद्दे खड़े हुए हैं. चाइना इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी ग्रुप कॉरपोरेशन (सीईटीसी) ने आंध्र प्रदेश के श्री सिटी में 2018 में 200 मेगावाट की पीवी विनिर्माण सुविधा में लाखों डॉलर के निवेश की घोषणा की थी.
सीईटीसी चीन की प्रमुख सैन्य इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माता है और यह हिकविजन सीसीटीवी कैमरे भी बनाती है. इसे चीन के सर्विलांस जार के रूप में जाना जाता है, जिसने कथित तौर पर शिनजियांग के 1.1 करोड़ मुस्लिम उइगरों की फेसियल रिकग्निशन के जरिए पहचान की और एक राज्य प्रायोजित दमन को अंजाम दिया.
भारत 2017 के उस कानून के खतरे की फिर से पड़ताल कर रहा है, जिसे चीन की विधायिका ने पारित किया था. इसे एक नए इंटेलिजेंस कानून के रूप में जाना जाता है, जो संदिग्धों पर नजर रखने, परिसरों पर छापे मारने, वाहनों और उपकरणों को जब्त करने के नए अधिकार देता है. कानून के अनुच्छेद 7 में कहा गया है, "कोई भी संगठन या नागरिक कानून के अनुरूप स्टेट इंटेलिजेंस के साथ मदद, सहायता और सहयोग करेगा."
(इनपुट्स: IANS)
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