भारत का सैन्य बजट दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा सैन्य बजट है. दूसरी ओर भारत दुनिया का सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाला देश है. इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक 2012 से 2016 के बीच भारत ने दुनिया के करीब 13 फीसदी हथियार खरीदे हैं.
लेकिन 2017-18 में हथियारों की खरीद (कैपिटल इंवेस्टमेंट) में जितने फंड की जरूरत थी, उतना पैसा सेना को नहीं मिला. 2017-18 में सेना को हथियार और गोला बारूद खरीदने (कैपिटल इंवेस्टमेंट) 1,21,930 करोड़ की जरूरत थी. लेकिन इसके जवाब में सेना को बस 86,340 करोड़ रूपये ही मिले.
आपको बता दें सैन्य बजट में रेवेन्यू (सैलरी, ट्रांसपोर्टेशन, स्टोर खर्च के लिए), कैपिटल इंवेस्टमेंट ( सैनिक हथियार, गोला बारूद) और पेंशन के लिए पैसा शामिल होता है.
कैपिटल इंवेस्टमेंट में हुई कटौती का खुलासा पार्लियामेंट्री स्टेंडिंग कमेटी ऑन डिफेंस की एक रिपोर्ट में हुआ.
हालांकि, कुल सैन्य बजट में साल दर साल काफी बढ़ोत्तरी हुई है. 2012-13 में जहां सैन्य बजट 2,30,642 करोड़ हुआ करता था, वहीं 2017-2018 में यह बढ़कर 3,59,854 करोड़ पहुंच गया है. लेकिन सैन्य साजो-सामान की जरूरतों को ये अभी भी पूरा करने की स्थिति में नहीं हैं.
क्य़ों भारत को कैपिटल इंवेस्टमेंट की ज्यादा जरूरत है.
भारत की सीमा पर सुरक्षा की स्थिति बेहद नाजुक है. 2017 में पाकिस्तान सीमा पर 860 सीजफायर उल्लंघन के केस हुए. वहीं 2018 के शुरूआती 21 दिनों में अभी तक 124 बार सीजफायर उल्लंघन हो चुका है.
वहीं आतंकवाद की समस्या भी काफी गंभीर है. 2017 में अकेले जम्मू कश्मीर में ही आतंकी हिंसा में 267 लोगों की मौत हुई. वहीं चीन की ओर से डोकलाम, ओबोर प्रोजेक्ट के जरिए अलग-अलग मोर्चों पर चुनौती दी जाती रही है.
ऐसे में जरूरी है कि भारतीय सेना को उसकी जरूरत की चीजें सही टाइम पर मिलें. लेकिन कम होते कैपिटल इंवेस्टमेंट से इनकी आपूर्ति मुश्किल में पड़ती है.
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