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अयोध्या मंदिर भूमिपूजन और 5 अगस्त को कैसे देख रहे ये 7 स्तंभकार

राम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम के बाद अलग-अलग स्तंभकार इस मुद्दे की समीक्षा कर रहे हैं.

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5 अगस्त... इस मायने में ऐतिहासिक रहा कि इस दिन अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल अहम अतिथियों के रूप में शामिल हुए. कार्यक्रम के बाद भाषण भी दिए गए. इस कार्यक्रम के बाद अलग-अलग स्तंभकार इस मुद्दे की समीक्षा कर रहे हैं.

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संवैधानिक पदों पर मौजूद कई सारे लोगों के इस कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर कई विशेषज्ञ देश की धर्मनिरपेक्षता को लेकर सवाल उठा रहे हैं. कईयों का मानना है कि ये वर्षों तक चले विवाद का निपटारा है. कुछ ने महात्मा गांधी से लेकर स्वामी विवेकानंद को याद किया.

आज विवेकानंद जिंदा होते, तो काफी दुखी होते: कौशिक बसु

दिग्गज अर्थशास्त्री और देश के चीफ इकनॉमिक एडवाइजर रह चुके कौशिक बसु ने ट्वीट करके विवेकानंद को याद किया-

राम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम के बाद अलग-अलग स्तंभकार इस मुद्दे की समीक्षा कर रहे हैं.
“प्यार में धर्म बसता है, किसी कार्यक्रम में नहीं. अगर अधर्म करने वाले लोग ऐसी जगह रहेंगे जहां सैकड़ों मंदिर हैं, तो तीर्थ उस जगह से खत्म हो जाएगा.”
कौशिक बसु, दिग्गज अर्थशास्त्री

कौशिक ने लिखा कि अगर आज विवेकानंद जिंदा होते, तो काफी दुखी होतेे."

भारत में धर्मनिरपेक्षता का अंत: योगेंद्र यादव

स्वराज पार्टी के अध्यक्ष और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने का मानना है कि इस घटना के बाद देश का धर्मनिरपेक्ष चरित्र खत्म हो चुका है.

राम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम के बाद अलग-अलग स्तंभकार इस मुद्दे की समीक्षा कर रहे हैं.
भविष्य में इतिहासकार 5 अगस्त को उस दिन के रूप में याद रखेंगे, जब भारत में धर्मनिरपेक्षता की मौत हुई थी. अयोध्या में हुआ ये कार्यक्रम धार्मिक या पवित्र अनुष्ठान नहीं है, ये राजनीतिक है. ये कार्यक्रम कई तरह की ताकतों के साथ आने को दिखाता है. राज्य, सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी, बहुसंख्यक समुदाय, मॉर्डन मीडिया और धार्मिक अथॉरिटी की ताकत.
योगेंद्र यादव, अध्यक्ष, स्वराज पार्टी
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सम्मिलित भारत का सपना टूट गया: हर्ष मंदर

लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता हर्ष मंदार ने स्क्रॉल में लिखा कि क्या सम्मिलित भारत का सपना टूट गया है और क्या इसे टाला नहीं जा सकता था?

हिंदू महासभा और RSS जैसे संगठनों के समर्थक लंबे समय से हिंदू राष्ट्र की लड़ाई लड़ते आए हैं. इस राष्ट्र में मुस्लिम और ईसाई दूसरे दर्जे के नागरिक होंगे. जिस जगह बाबरी मस्जिद गिराई गई थी, वहां भव्य राम मंदिर का निर्माण इस सोच का ताकतवर प्रतीक है.
हर्ष मंदर
राम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम के बाद अलग-अलग स्तंभकार इस मुद्दे की समीक्षा कर रहे हैं.

हालांकि, हर्ष मंदार इसके लिए सिर्फ हिंदुत्व राजनीति को ही जिम्मेदार नहीं ठहराते. उन्होंने लिखा, "देश इस जगह नहीं पहुंचता अगर राजनीतिक विपक्ष और खासकर कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम की विरासत का बचाव किया होता."

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राजनीतिक ताकत के जरिए हिंदू धर्म का उपनिवेशन: प्रताप भानु मेहता

विचारक प्रताप भानु मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा कि राम आदर्श और करुणा के प्रतीक हैं, लेकिन ये मंदिर राजनीतिक ताकत के जरिए हिंदू धर्म का उपनिवेशन करता है. मेहता ने लिखा, "लेकिन मैं जानता हूं कि राम मुझे इस मंदिर में नहीं मिलेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि जो बनाया जा रहा है, वो एक हिंसात्मक और सामूहिक अहंकार की इमारत है."

राम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम के बाद अलग-अलग स्तंभकार इस मुद्दे की समीक्षा कर रहे हैं.
राम, आप जानते हैं कि ये मंदिर आतंकवाद जैसी कुछ चीज पर आधारित किया गया है, एक मस्जिद का गिरा दिया जाना. ये मंदिर धार्मिकता से नहीं बना है, बल्कि सदियों पहले हुई एक घटना के बदले से बन रहा है. इन्होंने राम के नाम को प्रतिशोध का पर्यायवाची बना दिया है.
प्रताप भानु मेहता
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एक लंबे विवाद का अंत हुआ: सुधींद्र कुलकर्णी

अटल बिहारी वाजपेयी और लालृकष्ण आडवाणी की करीबी रहे सुधींद्र कुलकर्णी राम मंदिर भूमि पूजन के कार्यक्रम को एक लंबे विवाद के अंत के रूप में देखते हैं.

गांधी जी के लिए रामराज्य का मतलब था, असली लोकतंत्र जहां राज्य में अन्याय, हिंसा, नफरत नहीं होगी. ये वो राम राज्य नहीं है जिसकी आज देश में चर्चा हो रही है. मेरे लिए राम काफी प्रिय हैं. बतौर नागरिक मैं खुश हूं कि एक लंबा विवाद खत्म हो गया है. हालांकि, ये फैसला कोर्ट से आया है लेकिन अच्छा होता कि दोनों समुदायों के सदस्य आपस में मिलकर ये समझौता करके ये फैसला करते. लेकिन इस पूरे मुद्दे का राजनीतिकरण और साम्प्रदायिकरण हुआ, जिसकी वजह से हजारों लोगों की जानें गईं. लेकिन अब इस सब का अंत हुआ, इसलिए मैं कल के कार्यक्रम का स्वागत करता हूं.
सुधींद्र कुलकर्णी, स्तंभकार
राम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम के बाद अलग-अलग स्तंभकार इस मुद्दे की समीक्षा कर रहे हैं.
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हमने कभी सत्य को नहीं स्वीकारा: यशवंत देशमुख

यशवंत देशमुख राम मंदिर भूमिपूजन के मुद्दे को अयोध्या तक सीमित नहीं देखते वो इसे बड़े संदर्भ में देखने के लिए कहते हैं. उनका मानना है कि लोगों के मन में कई सालों पहले कुछ गलत होने की भावना थी.

जो बेसिक मुद्दा है वो अयोध्या का सिर्फ नहीं है. कई लोग मानते हैं कि भारत का जन्म 70 साल पहले हुआ, कुछ लोग मानते हैं कि भारत का जन्म 500 साल पहले हुआ, कुछ लोग भारत को उससे भी पुराना मानते हैं. कई लोग मानते हैं कि भारत को लंबे वक्त तक आक्रमणकारियों का सामना करना पड़ा. हमने सब कुछ किया है कि लेकिन साफ शब्दों में नहीं बताया कि सैंकड़ों साल पहले कुछ गलत हुआ था. सत्य को कभी स्वीकार नहीं किया गया.
यशवंत देशमुख, डायरेक्टर, सी वोटर
राम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम के बाद अलग-अलग स्तंभकार इस मुद्दे की समीक्षा कर रहे हैं.
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हिंदुओं के लिए बड़ा दिन: स्वप्न दासगुप्ता

राज्यसभा सांसद स्वप्न दासगुप्ता ने लिखा है कि ये हिंदुओं के लिए एक बड़ा दिन है, जिसका महत्व लोगों ने समझा है.

अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षों के साथ समझौते की कोशिशें काफी मुश्किल भरी रहीं और जब 2004 में बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई तो ये कोशिशें अचानक बंद हो गईं. इसके बाद अहम चुनौती ये थी कि सुप्रीम कोर्ट में मामले की तेजी से सुनवाई हो और फैसला सुनाया जाए. जो भूमिपूजन का कार्यक्रम 5 अगस्त को हुआ है ये हिंदू विजय का बड़ा दिन है जिसका व्यापक महत्व लोगों ने समझा है.
स्वप्न दासगुप्ता
राम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम के बाद अलग-अलग स्तंभकार इस मुद्दे की समीक्षा कर रहे हैं.

कुल मिलाकर अलग-अलग बुद्धिजीवी राम मंदिर भूमि पूजन को अलग-अलग नजरिए से देख रहे हैं. लेकिन ज्यादातर एक मूल बात की तरफ ध्यान दिला रहे हैं कि भारत की विविधिता, धर्मनिरपेक्षता पर किसी भी तरह की चोट नहीं आने देनी चाहिए.

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