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हरियाणा: INLD का क्या कल, क्या आज? चौटाला परिवार क्यों टूटा?

हरियाणा में कई जगहों से हजारों कार्यकर्ता इनेलो का साथ छोड़कर दुष्यंत चौटाला का हाथ थाम चुके हैं. 

Published
भारत
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हरियाणा की इनेलो(INLD) आजकल अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. 17 नवंबर 2018 को पार्टी के दो बड़े नेता और भाई अजय चौटाला और अभय चौटाला ने एक दूसरे से अपना रास्ता अलग कर लिया. बड़े भाई ने पार्टी ये कहकर छोड़ दी कि, “ इनेलो और चश्मा(पार्टी चिह्न) मेरे अजीज बिल्लू (अभय चौटाला) को गिफ्ट करता हूं. मैं नई पार्टी बनाऊंगा, जिसका नया झंडा होगा और नया डंडा होगा”. अजय ने घोषणा करते हुए कहा कि जींद में आगामी 9 दिसंबर को वो प्रदेश स्तरीय रैली करेंगे और वहां नई पार्टी की घोषणा करेंगे.

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लेकिन ये नौबत आई क्यों कि किसी वक्त हरियाणा का सबसे मजूबत दल रहा इनेलो आज हाशिये पर है? पार्टी में दो फाड़ हो गई और कार्यकर्ता को पता नहीं कि वो छोटे भाई के घर जाए या बड़े भाई के लिए नया ऑफिस ढूंढे.

ऐसे शुरू हुई जंग

हरियाणा में हुए शिक्षक भर्ती घोटाले में पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला को 10 साल की सजा हुई. 2013 से बड़े बेटे अजय चौटाला भी अपने पिता के साथ जेल की सलाखों के पीछे हैं. जब ओमप्रकाश चौटाला राजनीति में पूरी तरह सक्रिय थे तो तब से ही परिवार में एक तरह की सहमति थी कि बड़े भाई अजय चौटाला केंद्र की राजनीति करेंगे और छोटे भाई अभय चौटाला प्रदेश संभालेंगे.अभय चौटाला फिलहाल पार्टी विधायक हैं और हरियाणा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी.

इस बीच अजय के जेल में जाने के बाद उनके बड़े बेटे दुष्यंत चौटाला राजनीति में सक्रिय हुए और 2014 में लोकसभा चुनाव भी जीते है. युवा दुष्यंत का पार्टी में कद बढ़ रहा था और नए कार्यकर्ता उन्हें ही पार्टी के नए मुखिया और सीएम कैंडिडेट के रूप में देखने लगे. ये बात अभय चौटाला को खटकने लगी और परिवार में फूट के बीज पड़ने लगे.

बीते अक्टूबर में हरियाणा के ही गोहाना में दिवंगत चौधरी देवीलाल के 105वें जन्मदिवस पर इनेलो की सम्मान दिवस रैली हुई थी. इसमें दुष्यंत ट्रैक्टर यात्रा के साथ मंच पर पहुंचे तो उनके समर्थकों ने भावी सीएम के नारे लगाने शुरू कर दिए. तभी दूसरे गेट से उनके चाचा अभय चौटाला मंच पर पहुंचे तो उनके खिलाफ हूटिंग की गई. दुष्यंत से लेकर अन्य सभी वक्ताओं के भाषण तक दुष्यंत भावी सीएम के नारे लगते रहे. अभय ने भाषण में दुष्यंत का नाम नहीं लिया. वे जब तक बोले, तब तक दुष्यंत समर्थक हूटिंग करते रहे. इस दौरान परोल पर रिहा हुए ओमप्रकाश चौटाला भी मौजूद थे. उन्होंने मंच से ही अपनी नाराजगी जताई.

हरियाणा में कई जगहों से हजारों कार्यकर्ता इनेलो का साथ छोड़कर दुष्यंत चौटाला का हाथ थाम चुके हैं. 

इसके बाद ओमप्रकाश चौटाला ने अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए अजय के बेटे दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला को पार्टी से निष्कासित कर दिया. 12 नवंबर को अजय चौटाला ने एक पत्र जारी कर इनेलो के प्रदेश कार्यकारिणी के पदाधिकारियों, सदस्यों और विधायकों को पत्र भेज कर 17 नवंबर को जींद में पहुंचने के लिए आदेश जारी किए थे. इस पत्र पर इनेलो ने कहा था कि अजय चौटाला को बैठक बुलाने का कोई अधिकार नहीं है. बैठक या तो इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला बुला सकते हैं या फिर प्रदेशाध्यक्ष अशोक अरोड़ा को यह अधिकार है.

आपको बता दें कि हरियाणा विधानसभा में इनेलो के कुल 18 विधायक हैं. अभय चौटाला सदन में पार्टी के नेता हैं. नवंबर में हरियाणा इनेलो अध्यक्ष अशोक अरोड़ा ने बताया था कि सभी विधायक छोटे भाई अभय चौटाला के साथ हैं.

जहां दुष्यंत वहां हम

दुष्यंत चौटाला का पार्टी पर अच्छा खासा होल्ड है. वो युवा हैं, पढ़े-लिखे हैं और जाट समुदाय में खासे लोकप्रिय हैं. ऐसे में अभय का यूं इनेलो को टेकओवर करना पार्टी कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आ रहा है. 26 नवंबर को कैथल में करीब 30 हजार कार्यकर्ताओं ने इनेलो छोड़ दी और कहा कि जहां दुष्यंत चौटाला रहेंगे वहीं वो रहेंगे. इसके बाद मेवात के 957 पदाधिकारियों ने इनेलो से एक साथ इस्तीफा दिया और नारनौल में 1200 पदाधिकारियों ने पार्टी छोड़ दी.

ऐसे में इनेलो पार्टी की हालत दिन पर दिन कमजोर होती जा रही है और अगर बड़े भाई अजय चौटाला और उनके बेटे दुष्यंत 7 दिसंबर को नई पार्टी का ऐलान करते भी हैं तो उन्हें कोई खास फायदा हो इस बात की उम्मीद कम है क्योंकि वोट तो उनका भी कटेगा.

कांग्रेस और बीजेपी को बड़ा फायदा

इनेलो के यूं दो फाड़ होने से इलाके की कांग्रेस और बीजेपी दोनों को बड़ा फायदा होगा. इनेलो का प्रदेश के जाट वोट पर खासा दबदबा है. अब ऐसे में जाट समुदाय दो फाड़ हो सकता है और कांग्रेस पार्टी भी प्रदेश में बड़ा जाट वोट पाती आई है ऐसे में इनेलो से जो भी शहरी और ग्रामीण जाट छिटकेगा वो कांग्रेस के पाले में जा सकता है. वहीं जाटों का वोट बंटने से बीजेपी को लगता है कि गैर-जाटों के सहारे एक बार फिर विधानसभा और लोकसभा चुनावों में जीत संभव है.

इस बीच मायावती की बीएसपी भी राज्य में अच्छे वोट पाती रही है. 2019 लोकसभा चुनावों के लिए मायावती ने प्रदेश में इनेलो के साथ गठबंधन किया था लेकिन अब यूं पार्टी के टूट जाने के बाद मायावती का अगला कदम क्या होगा ये देखना दिलचस्प है.

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