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प्राइमरी स्कूल के टीचर ने जीता 7 करोड़ ₹,जानिए कौन हैं ‘डिसले सर’

रणजीत को लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा देने के साथ क्यूआर कोड बेस्ड टेक्सट बुक की क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है.

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नाम- रणजीतसिंह डिसले, काम- बच्चों को पढ़ाना, ईनाम- 7 करोड़ रुपए. जी हां, महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पारितेवादी गांव के एक जिला परिषद प्राइमरी स्कूल के टीचर रणजीत सिंह डिसले को इस साल का ग्लोबल टीचर अवार्ड मिला है. यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय हैं. लंदन में वार्की फाउंडेशन की ओर से यह पुरस्कार दिया गया है. हालांकि डिसले ने अवॉर्ड की राशी का 50 फीसदी हिस्सा मतलब 10 लाख डॉलर का आधा बाकी 9 उप-विजेताओं के साथ बांटने का फैसला किया है.

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अवॉर्ड जीतने पर डिसले ने कहा,

“टीचर बदलाव लाने वाले लोगों में से होते हैं जो चॉक और चुनौतियों को मिलाकर अपने स्टूडेंट की जिंदगी बदलते हैं. इसलिए मैं यह कहते हुए हुए खुश हूं कि मैं अवॉर्ड राशि का आधा हिस्सा अपने साथी प्रतिभागियों को दूंगा. मेरा मानना है कि साथ मिलकर हम दुनिया को बदल सकते हैं क्योंकि साझा करने की चीज बढ़ रही हैं.’’

क्यों मिला रणजीत डिसले को ये अवॉर्ड?

दरअसल, रणजीत को लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा देने के साथ-साथ क्यूआर कोड बेस्ड टेक्सट बुक की क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है. वो भी एक ऐसे गांव में बदलाव की रौशनी जलाई है जहां कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती थी. इस अवॉर्ड के लिए डिस्ले के अलावा 12,000 और शिक्षकों के भी नाम थे. यही नहीं डिसले 83 देशों में ऑनलाइन विज्ञान पढ़ाते हैं और एक अंतरराष्ट्रीय परियोजना चलाते हैं जिसमें संघर्ष क्षेत्र के युवा शिक्षा के लिए साथ जुड़ सकें.

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कैसे पढ़ाते हैं डिसले?

दरअसल, रणजीत डिसले इनोवेटिव स्टाइल में पढ़ाने वाले टीचर हैं. डिस्ले ने क्लास 4 तक के बच्चों के लिए कोर्स बुक को क्यूआर कोडेट बनाया.

मतलब किताब में मौजूद चैप्टर का क्यू आर कोड बनाया है. सारे क्यूआर कोड को किताब पर छापा गया. जैसे कि किताब में दी गई कविताएं या कहानियों का वीडियो भी तैयार किया गया. फिर जब बच्चे किताब पर लगे क्यूआर कोड को स्कैन करते तो उस चैप्टर का वीडियो या ऑडियो स्टूडेंट मोबाइल, लैपटॉप या टैब पर आसानी से देख सकते हैं, सुन सकते हैं और पढ़ सकते.

इस तरह की टेकनोलॉजी की मदद बच्चों को स्कूल की ओर खींच लाई. साथ ही अच्छे अंक लाने वाले बच्चों की संख्या भी बढ़ गई.

डिसले की इन्ही कोशिशों के दम पर 2016 में इनके स्कूल को जिले के सर्वश्रेष्ठ स्कूल से सम्मानित किया गया था. यही नहीं डिसले की इस कामयाबी का जिक्र माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ (सत्य नडेला) ने अपनी पुस्तक हिट रिफ्रेश में भी की है.

केंद्र सरकार ने रणजीत सिंह को 2016 में इनोवेटिव रिसर्चर ऑफ द ईयर का अवॉर्ड भी दिया था. साथ ही उन्होंने 2018 में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के इनोवेटर ऑफ द ईयर का पुरस्कार भी जीता.
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कैसे शुरू हुई कहानी?

दरअसल, इंजीनियरिंग का सपना देख रहे डिसले के पिता ने उन्हें टीचर ट्रेनिंग का रास्ता सुझाया. इसी ट्रेनिंग के दौरान डिसले को लगा कि टीचर ही जिंदगी बदल सकता है बच्चों की. लेकिन जब डिस्ले 2009 में सोलापुर के पारितवादी के जिला परिषद प्राथमिक विद्यालय पहुंचे थे तब वहां स्कूल के बिल्डिंग की हालत जर्जर थी. और स्कूल कम जानवरों के रहने की जगह है. फिर धीरे-धीरे उन्होंने चीजें बदलना शुरू किया और कोशिश की कि बच्चियों को स्कूल तक लाया जाए, जब वो स्कूल आएंगी तो उनकी जल्दी शादी की बात भी नहीं होगी. इसके लिए उन्होंने बच्चों के उनके स्थानीय भाषाओं में किताबें उपलब्ध कराने का सोचा.

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