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इंफोसिस: सिक्का के इस्तीफे से कंपनी को कितना नुकसान, जानिए हर बात

इंफोसिस 1981 में सिर्फ 10 हजार रुपए की पूंजी से बनी. 1993 में लिस्टिंग के बाद से कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा

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भारत
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10 हजार रुपए से 2.20 लाख करोड़ रुपए का सफर करने वाली देश की शीर्ष आईटी कंपनी इंफोसिस के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ विशाल सिक्का ने शुक्रवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. सिक्का के इस्तीफे के बाद कंपनी के फाउंडर्स और बोर्ड के बीच चल रही उठापटक एक बार फिर सामने आ गई.

सिक्का के इस्तीफे के बाद कंपनी ने बोर्ड का बयान और इस्तीफे का खत सार्वजनिक कर दिया. इंफोसिस बोर्ड ने जो बयान जारी किया है, उसमें सिक्का के इस्तीफे का जिम्मेदार को-फाउंडर नारायणमूर्ति को बताया है. इसमें कहा गया है कि एन. आर. नारायण मूर्ति लगातार कंपनी और बोर्ड के खिलाफ कैंपेन चला रहे थे.

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जाहिर है कि कंपनी को इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा. फिलहाल इस्तीफे के तुरंत बाद कंपनी को जो खामियाजा उठाना पड़ा है, वो है:

  • शुक्रवार को कंपनी का शेयर करीब 10 फीसदी गिरकर 923.10 रुपये पर बंद हुआ.
  • कंपनी का शेयर शुक्रवार को 1,017.90 पर खुला और 9.60 % गिरकर 923.10 रुपये पर बंद हुआ
  • कारोबार के दौरान ये 52 हफ्ते के सबसे निचले स्तर 884.40 रुपये तक गिर गया था
  • कंपनी के शेयर का मार्केट वैल्युएशन शुक्रवार को 22,519 करोड़ रुपये घट गया.
  • सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही सूचकांक में इन्फोसिस का शेयर शुक्रवार को सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला रहा.

इस्तीफे पर इंफोसिस बोर्ड ने क्या कहा?

सिक्का साल 2014 के अगस्त में इंफोसिस से जुड़े थे. फिलहाल, इंफोसिस ने सिक्का का इस्तीफा स्वीकार कर, नए CEO की नियुक्ति तक सिक्का को कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट पद की जिम्मेदारी सौंपी है. इंफोसिस के बोर्ड ने अपने बयान में कहा है:

  • मूर्ति के लगातार हमले, सिक्का के इस्तीफे का प्रमुख कारण है, जबकि उन्हें बोर्ड का मजबूत समर्थन हासिल था.
  • नारायणमूर्ति ने सिक्का के कामकाज के तरीके और उनकी निष्ठा पर सवाल खड़ा करते हुए लेटर लिखा था, जो मीडिया में सुर्खियों में रहा.
  • मूर्ति के लेटर में फैक्चुअल गल्तियां, अफवाहें और बातचीत के संदर्भ के बाहर निकाले गए बयान शामिल थे.
  • बोर्ड ने पिछले 1 साल के दौरान फाउंडर के साथ बातचीत कर मुद्दे को सुलझाना चाहा लेकिन बातचीत सफल नहीं हुई
  • मूर्ति कंपनी को नुकसान पहुंचा रहे थे.
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क्यों नाराज हैं मूर्ति और दूसरे फाउंडर ?

इंफोसिस की बुनियाद रखने वाले मूर्ति और उनके साथियों को लगता है कि कंपनी अपने सिद्धांतों से भटक रही है. उनका मानना है कि इंफोसिस को चलाने में सिर्फ मुनाफा एकमात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिए.



इंफोसिस 1981 में सिर्फ 10 हजार रुपए की पूंजी से बनी. 1993 में लिस्टिंग के बाद से कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा
(इंफोग्राफिक्स: द क्विंट)

उनके मुताबिक हाई स्टैंडर्ड और वैल्यू सिस्टम की वजह से कंपनी ने यह मुकाम हासिल किया है. लेकिन अब उनके उन्हीं सिद्धांतों की अनदेखी हो रही है. इंफोसिस के फाउंडर्स नारायण मूर्ति, क्रिस गोपालकृष्णन, नंदन नीलेकणि, के दिनेश और एस डी शिबुलाल के पास मिलाकर करीब 13% हिस्सेदारी है.

विशाल सिक्का और नारायण मूर्ति के बीच इसी साल फरवरी में कॉरपोरेट गवर्नेंस के मामले में भी अच्छी खासी तनातनी हुई थी. शीर्ष अधिकारियों का लग्जरी रहन सहन, बिजनेस क्लास की यात्राएं, ऊंची सैलरी. व्यक्तिगत यात्रा के लिए भी विशाल सिक्का का विशेष विमान का इस्तेमाल करना भी उन्हें खटका

मूर्ति को लगता है कि कॉरपोरेट गवर्नेंस के पहलू में इंफोसिस कमजोर हो रही है. आईटी सेक्टर में चुनौतियां बढ़ रही हैं और मूर्ति के मुताबिक इनसे निपटने के लिए इंफोसिस मैनेजमेंट कुछ नया नहीं कर पा रहा है.

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कंपनी का अबतक का सफर



इंफोसिस 1981 में सिर्फ 10 हजार रुपए की पूंजी से बनी. 1993 में लिस्टिंग के बाद से कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा

इंफोसिस 1981 में सिर्फ 10 हजार रुपए की पूंजी से बनी. 1993 में लिस्टिंग के बाद से कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. मूर्ति ने अपने साथ काम करने वालों को भी दिल खोलकर बांटा.

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