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करुणानिधि को कलैनार क्यों कहते हैं? उनकी जिंदगी से जुड़ी खास बातें

साहित्य, फिल्मों से राजनीति तक बुलंदियों पर रहने वाले करुणानिधि के बारे में खास बातें

Published
भारत
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दक्षिण भारत की कम से कम 50 फिल्मों की कहानियां और डायलॉग लिखने वाले करुणानिधि ने अपने पहचान एक राजनेता के तौर पर बनाई. उनके अंदर कला और राजनीति का ऐसा बेजोड़ मिश्रण था कि जो उन्हें दूसरे नेताओं से अलग बनाता था. यही कारण हैं कि उन्हें थलैवर यानी 'जननेता' और कलैनार यानी 'महान कलाकार' जैसे संबोधनों से पहचाना जाता था.

साल 1938 में हिंदी विरोधी प्रदर्शनों के साथ ही करुणानिधि ने राजनीति की शुरुआत की. तब वो सिर्फ 14 साल के थे. बाद में ई वी रामसामी ‘पेरियार' और डीएमके चीफ सी एन अन्नादुरई की विचारधारा से बेहद प्रभावित करुणानिधि द्रविड़ आंदोलन के सबसे भरोसेमंद चेहरा बन गए.

इस आंदोलन का मकसद दबे कुचले वर्ग और महिलाओं को समान अधिकार दिलाना था, साथ ही ये आंदोलन ब्राह्मणवाद पर भी चोट करता था.

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करुणानिधि 1957 से 6 दशक तक लगातार विधायक रहे. जो भी चुनाव लड़े, हर में जीत हासिल की.

फरवरी 1969 में अन्नादुरई के निधन के बाद वी आर नेदुनचेझिएन को मात देकर करुणानिधि पहली बार मुख्यमंत्री बने. उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में एम जी रामचंद्रन ने अहम भूमिका निभाई थी.

करुणानिधि 27 जुलाई, 1969 को डीएमके के अध्यक्ष बने थे. ऐसे में वो भारतीय राजनीति में किसी भी पार्टी के पहले ऐसे अध्यक्ष रहे जिन्होंने इस पद पर 50 साल गुजारे.

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करुणानिधि साल 1969, 1971, 1989, 1996 और 2006 में कुल 5 बार तमिलनाडु के सीएम बने.

राजनीति में न तो स्थाई दोस्त होते हैं और न ही दुश्मन, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए करुणानिधि ने कई बार कांग्रेस को समर्थन दिया. केंद्र की यूपीए सरकार में डीएमके के अनेक मंत्री रह चुके हैं.

इसके अलावा उन्होंने बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को भी समर्थन दिया और अटल बिहारी वाजपेई कैबिनेट में भी उनके कई मंत्री थे.

राजनीति से अलग करुणानिधि ने अपनी पहली फिल्म राजकुमारी से ही लोकप्रियता हासिल की. उनके द्वारा लिखी गई पटकथाओं में राजकुमारी, अबिमन्यु, मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलावरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार, नाम, मनोहरा शामिल हैं.

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