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करुणानिधि तमिल राजनीति ही नहीं, सिनेमा में भी ‘लीड रोल’ में रहे

करुधानिधि ने अपने फिल्म करियर में करीब 76 फिल्मों में स्क्रीनप्ले राइटिंग की.

भारत
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94 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहने वाले तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की जिंदगी का सफर भी खासा दिलचस्प रहा है. एक सफर जो सिनेमा से शुरू हुआ और राजनीति की रपटीली राहों पर मुड़ गया. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत तमिल फिल्म इंडस्ट्री से की थी. उन्होंने तमिल सिनेमा को शिवाजी गणेशन और एस एस राजेंद्रन जैसे कलाकार दिए. एम जी रामचंद्रन जैसे उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी कभी सिनेमा जगत में उनके खास दोस्तों में से थे. अगर करुणानिधि न होते तो शायद वो भी तमिल सिनेमा में जबरदस्त मुकाम न बना पाते. करुधानिधि ने अपने फिल्मी करियर में करीब 76 फिल्मों का स्क्रीनप्ले लिखा.

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हालांकि उनके लेखन में द्रविड़ आंदोलन की विचारधारा रहती थी, जिसका परम्परावादी हिंदुओं ने कई बार विरोध भी किया. जबकि उनकी ज्यादातर फिल्में सामाजिक मुद्दों पर होती थी. आइए उनके फिल्मी करियर पर एक नजर डालते हैं.

फिल्म 'राजकुमारी' से हुई शुरुआत

एम करुणानिधि ने पहली बार ज्यूपिटर पिक्चर्स के लिए स्क्रीनप्ले लिखना शुरू किया. पहली फिल्म थी 'राजकुमारी'(1947) और दूसरी 'अभिमन्यु' (1948). दोनों ही फिल्मों में एम जी रामचंद्रन लीड रोल में थे. और यहीं से एमजीआर और करुणानिधि की दोस्ती शुरू हो गई.

करुधानिधि ने अपने फिल्म करियर में करीब 76 फिल्मों में स्क्रीनप्ले राइटिंग की.
गहन चर्चा करते करणानिधि और एमजीआर

विवादों में रही करुणानिधि की ये फिल्म

1952 में आई फिल्म 'पराशक्ति' साउथ के सिनेमा में दो चीजें लेकर आई. पहला, फिल्म के जरिए सिनेमा में राजनीतिक विचारधारा का प्रचार प्रसार हुआ. दूसरा, इस फिल्म से तमिल में एंटरटेनमेंट की दुनिया में डायलॉग्स का दौर शुरू हुआ. इस फिल्म की स्टोरी और स्क्रीनप्ले दोनों ही करुणानिधि ने लिखे थे.

हालांकि ये फिल्म अपने समय की सबसे विवादित फिल्म थी. फिल्म में अन्नादुरई और पेरियार की विचारधारा को खुल कर दिखाया गया. ‘पराशक्ति’ ब्राह्मणवाद, हिंदू रीतिरिवाज, मंदिर में पूजा जैसी चीजों के खिलाफ थी. और समाज की बुराइयों के खिलाफ हथियारों का समर्थन किया गया था. फिल्म में एक ऐसा सीन भी था जिसमें एक पंडित एक महिला का रेप करता है.

कांग्रेस पार्टी के विरोध और बैन की मांग के बावजूद तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री सी राजगोपालचारी ने इसे रिलीज करने की इजाजत दे दी थी.

'पराशक्ति' के दो साल बाद ही करुणानिधि शिवाजी गणेशन स्टारर 'मनोहरा' लेकर आए. ये फिल्म शेक्सपियर की हेमलेट पर आधारित थी. ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कामयाब रही.

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महीनों तक थियेटरों में लगतीं करुणानिधि की फिल्में

'मनोहरा' के साथ ही उनकी 'मलाईकल्लन' (1954) भी आई, जो उस समय चेन्नई और उसके आसपास के इलाकों के 4 महीने थियेटर में लगी रही थी. इस फिल्म को राष्ट्रपति मेडल भी मिला था. इसके बाद 'मलाईकल्लन' तेलुगु, मल्यालम, कन्नड़ और हिंदी में भी बनी थी. हिंदी में ये फिल्म 'आजाद' नाम से बनी जिसमें दिलीप कुमार ने लीड रोल किया था.

इसके बाद तो करुणानिधि आगे बढ़ते गए. मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलवरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार जैसी करीब 76 फिल्मों के लिए स्क्रीनप्ले राइटिंग की. इस बीच वो राजनीति में भी सक्रिय हो गए. 1957 में करुणानिधि पहली बार तमिलनाडु विधानसभा के विधायक बने. हालांकि राजनीति में आने के बाद उनके फिल्मी दुनिया के दोस्त एमजीआर राजनीति में उनके चिर प्रतिद्वंद्वी बन गए. और फिर धीरे धीरे फिल्म इंडस्ट्री छोड़ करुणानिधि ने राजनीति में ही अपनी जड़ें जमा लीं.

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