इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) ने गुरुवार शाम 7 बजे अपना आठवां रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट लॉन्च किया. लेकिन ISRO के चेयरमैन एस किरण कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स में बताया कि ये लॉन्च फेल हो गया है. लॉन्च के बाद हीट शील्ड रॉकेट से अलग हो जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसरो ने पहली बार प्राइवेट कंपनियों की मदद से बने अपने किसी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने की कोशिश की थी.
इस सैटेलाइट का नाम आईआरएनएसएस-1 एच था, जिसको बनाने में 6 प्राइवेट कंपनियों के ग्रुप का 25% योगदान रहा. 1,425 किलोग्राम वजन के इस सैटेलाइट को श्रीहरिकोटा रॉकेट केंद्र से पीएसएलवी-सी 39 रॉकेट की मदद से छोड़ा गया. इसको बनाने में 1,420 करोड़ रुपये की लागत आई.
क्यों पड़ी इसकी जरूरत?
आईआरएनएसएस-1 एच का प्रक्षेपण आईआरएनएसएस-1 ए की जगह किया जा रहा था, क्योंकि आईआरएनएसएस-1 ए की रूबीडियम परमाणु घड़ियां खराब हो रही हैं और सटीक डेटा देने के लिए परमाणु घड़ियां जरूरी होती हैं.
अगर लॉन्च होता कामयाब तो मिलता ये फायदा
इसरो के मुताबिक, नाविक नाम का ये सैटेलाइट मछुआरों को मछली पकड़ने के लिए संभावित क्षेत्र में पहुंचने में मददगार साबित होता. इससे मछुआरों को खराब मौसम, ऊंची लहरों और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा के पास पहुंच पहुंचने से पहले सावधान होने का संदेश मिल जाता. यह सेवा स्मार्टफोन पर एक सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन के जरिए उपलब्ध होने वाली थी.
भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है, जिसे भारत ने अमेरिका के जीपीएस की तर्ज पर विकसित किया है.
फरवरी में इसरो ने बनाया था वर्ल्ड रिकॉर्ड, एक साथ लॉन्च किए थे 104 सैटेलाइट
(इनपुट IANS से)
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