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ड्रोन बन रहे डरावने आतंकी हथियार-एक से एक खतरनाक मॉडल, दाम भी कम

Jammu Drone Attack सस्ता, सेफ,कारगर-समझिए क्यों आतंकियों का हथियार बनता जा रहा ड्रोन

Published
भारत
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रविवार की सुबह जम्मू एयरफोर्स स्टेशन(Jammu Airforce station) के टेक्निकल इलाके में दो कम तीव्रता वाले विस्फोट हुए. जम्मू-कश्मीर के डीजीपी ने इसे आतंकी हमला बताया है.IED विस्फोटक की डिलीवरी करने के लिए ड्रोन(Drone) के इस्तेमाल की आशंका जताई जा रही है. अगर ड्रोन से हमले की खबर सच साबित होती है तो भारत में ऐसा पहली बार होगा जब किसी हाई सिक्योरिटी वाले इलाके में ड्रोन से हमला किया गया हो. ड्रोन तकनीक में होती प्रगति और 'मानव रहित' इसकी प्रकृति सुरक्षा एजेंसियों और देश के आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर मसला बन सकती है.

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ड्रोन हमला आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती कैसे?

  • वैश्विक स्तर पर पिछले अधिकांश आतंकवादी हमलों के लिए ऐसे हथियारों और सामग्रियों का उपयोग किया जाता रहा है जिसे प्राप्त करने के लिए आतंकियों को किसी सहायक देश या अंतरराष्ट्रीय ब्लैक मार्केट की जरूरत पड़ती थी, विशेषकर टारगेट तक आतंकी को पहुंचाने के लिए. लेकिन ड्रोन तकनीक के संदर्भ में आतंकी समूह को यह सहूलियत है कि ड्रोन को वह लीगली खुले बाजार में या घर बैठे ऑनलाइन आर्डर करके खरीद सकते हैं. बाजार में आसानी से इतने उच्च तकनीक के ड्रोन उपलब्ध हैं कि IED विस्फोटकों को टारगेट तक पहुंचाया जा सके. अगर ड्रोन से पिज़्ज़ा की डिलीवरी हो सकती है तो IED की भी.

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अब तक आतंकी समूहों को अपने हमलों को अंजाम देने के लिए व्यक्तियों की आवश्यकता होती थी. कई समूह आमतौर पर इस उम्मीद के साथ हमला करते हैं कि हमले के दौरान उनके सदस्य या तो पकड़े जाएंगे या खुद को मार लेंगे. लेकिन ड्रोन का प्रयोग किसी व्यक्ति या छोटे समूह को आत्म-बलिदान के बिना कई हमले करने की सहूलियत देता है.

ड्रोन डिटेक्शन में कोई ठोस विजुअल,रडार, इंफ्रारेड या आवाज नहीं होती. ऐसे हमलों के लिए किसी इंफ्रास्ट्रक्चर या लॉन्च पैड की न्यूनतम या शून्य जरूरत होती है. इसके खिलाफ पारंपरिक बीट पेट्रोलिंग भी रक्षाहीन है. ड्रोन देखे जाने की स्थिति में OODA लूप (ऑब्जर्वर ओरिएंटेड एक्ट लूप) बहुत छोटा होता है और इसलिए उस पर पारंपरिक तरीकों से कार्यवाही मुश्किल है. आतंकियों को ड्रोन लॉन्च करने के लिए किसी सुरक्षा एजेंसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती.

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आतंकियों के लिए ड्रोन हमले की सबसे बड़ी खासियत उसके परिचालन की कम लागत का होना है. 1995 ओकलाहोमा,अमेरिका विस्फोट की लागत आज के मूल्य में लगभग $8582 की थी, 9/11 अटैक की लागत 4-5 लाख डॉलर की थी और भारत में 2008 में हुए मुंबई हमले की लागत 1.5 लाख डॉलर थी.

लेकिन ड्रोन हमले के लिए थोड़े विस्फोटक और एक ऑफ-द-शेल्फ ड्रोन की जरूरत होती है,जिसकी लागत $1000 से $2000 के बीच है(उच्च तकनीक ड्रोन की). यहां तक की अंडरवाटर ड्रोन की कीमत भी मात्र $1000 से $4000 के बीच है. बाजार में उपलब्ध ₹1000 तक के ड्रोन से छोटा विस्फोट कराया जा सकता है, अगर टारगेट पर फ्यूल और विस्फोटक मौजूद हों तो इतने कम लागत में भी बड़ा विस्फोट किया जा सकता है.

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ड्रोन तकनीक में प्रगति: चुनौती पहले से अधिक

  • मॉडर्न ड्रोन के शुरुआती मॉडल महंगे,रेडियो कंट्रोल्ड और गैसोलीन से चलने वाले थे. लेकिन हाई एनर्जी बैटरी तथा अत्यधिक दक्ष इलेक्ट्रिक मोटर के साथ वजन तथा आकार में कमी ने ड्रोन को पहले से ज्यादा दक्ष कर दिया है. आज छोटे ड्रोन (2 फीट)में भी 8 इंजन हैं, वो 227 किलो तक पेलोड उठा सकते हैं, उनकी गति 129 किलोमीटर प्रति घंटे तक की हो सकती है और उन्हें 16 किलोमीटर रेंज में रिमोट कंट्रोल से उड़ाया जा सकता हैं.

  • अब तेज स्पीड सिर्फ बड़े ड्रोन में नहीं है बल्कि छोटे एरियल ड्रोन भी 3-5 मिनट की फ्लाइट में 129 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड पकड़ सकते हैं. इसके अलावा ड्रोन के साथ विजुअल गॉगल्स की तकनीक यूजर्स को ड्रोन से 'फर्स्ट पर्सन व्यू' की सुविधा उपलब्ध कराती है. इस तरह ड्रोन की मारक क्षमता पहले से कहीं अधिक हो गई है.

  • इसके अलावा ड्रोन के शौकीनों और कंपनियों ने ऐसे ड्रोन को भी डेवलप किया है जिनको एक से अधिक रूपों में प्रयोग किया जा सकता है. कई ड्रोन आज जमीन पर चलने के साथ उड़ भी सकते हैं. वो अंडरवाटर आगे बढ़ कर फिर से फ्लाइट मोड में भी आ सकते हैं.

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  • ड्रोन की मूवमेंट तकनीकी में भी पहले से कहीं ज्यादा प्रगति देखने को मिली है. वो जानवरों के मूवमेंट की नकल करने में सक्षम है और बायोमिमिकरी(प्रकृति की नकल) तकनीकी में भी. इस तरह ड्रोन जमीन,पानी,हवा में बिना पता चले आगे बढ़ सकते हैं. इसके साथ ड्रोन के पावर सोर्स में तकनीकी प्रगति से वो तेज हवा में भी काफी ऊंचा और देर तक उड़ सकते हैं.

  • आज ड्रोन को 2.4-5 GHz रेडियो फ्रिक्वेंसी में उड़ाना संभव है. पहले से कहीं अच्छा कंट्रोल है. अब कई मॉडल को जमीन से 457 मीटर ऊपर तक उड़ाया जा सकता है.आज ड्रोन का ऑप्टिकल सेंसर 4K रेजोल्यूशन में लाइव वीडियो भेजने में सक्षम है. इसमें इंफ्रारेड और नाइट विजन की भी सुविधा उपलब्ध है. ऑप्टिकल सेंसर बढ़ने का मतलब है कि अब 30 गुना तक जूम करना संभव.

  • अब एक साथ कई ड्रोनों(Swarms) को उड़ाया जा सकता है.2018 में सीरिया में मौजूद रूसी मिलिट्री बेस पर 13 फिक्स्ड विंग ड्रोन की मदद से 50 किलोमीटर दूर से हमला किया गया था.

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क्या हो सकती है हमारी जवाबी रणनीति

पूर्व नौसेना टेस्ट पायलट कैप्टन केपी संजीव कुमार के क्विंट के लिखे एक लेख के मुताबिक ड्रोन हमलों के प्रति संवेदनशीलता की जांच के लिए सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों (VP) और महत्वपूर्ण पॉइंट्स(VP) के एक गंभीर ऑडिट और इसके लिए आवश्यक डिफेंस मैकेनिज्म तैयार करने की आवश्यकता है.

GPS आधारित ड्रोन में एक अंतर्निहित सॉफ्टवेयर सीमा मौजूद है,जिसे जियोफेनसिंग कहते हैं.यानी GPS आधारित ड्रोन को प्रतिबंधित क्षेत्र में जाने से सॉफ्टवेयर ही रोकता है .लेकिन जियोफेंसिंग डेटाबेस को मैनेज करने की जिम्मेदारी ड्रोन बनाने वाली कंपनियों की है. इसलिए वो सिर्फ चुनिंदा मिलिट्री बेस को ही शामिल करते हैं .इसके अलावा ऑनबोर्ड GPS एंटीना के चारों ओर एलुमिनियम फ्वॉयल लपेट देने से जियोफेंसिंग प्रभावी नहीं रहता. सुरक्षा एजेंसियों को इसके लिए रणनीति तैयार करने की जरूरत है.

रेडियो फ्रीक्वेंसी(RF) जैमिंग के क्षेत्र में और सुधार की जरूरत है. मौजूदा तकनीक की मदद से ड्रोन कंट्रोल को तो बाधित किया जा सकता है लेकिन इसके साथ है RF जैमिंग सिक्योरिटी सिस्टम, वाईफाई नेटवर्क,GPS के नेविगेशन को भी प्रभावित करता है.
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मिनिस्ट्री ऑफ सिविल एविएशन द्वारा ड्रोन से संबंधित लॉ एंड रेगुलेशन, 2021 में भी बिना वैध लाइसेंस के ड्रोन उड़ाने के लिए मात्र 25 हजार,नो ऑपरेशन जोन में उड़ाने के लिए मात्र 50 हजार, जबकि थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के बिना उड़ाने के लिए 10 हजार का जुर्माना है.जम्मू हमले के बाद इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है.

कैप्टन केपी संजीव कुमार के अनुसार हमारे UAV स्कवाड्रनों में विषय के पर्याप्त विशेषज्ञ मौजूद हैं जो ऐसी चेतावनी दे रहे थे. उन्हें गंभीरता से लेने का समय आ गया है.
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अब तक के बड़े ड्रोन हमले

  • सितंबर 2019 में यमन के विद्रोहियों द्वारा सऊदी अरब के दो प्रमुख तेल शोधन संयंत्र पर 10 ड्रोन के साथ अटैक किया गया था. हाल ही में जून 2021 में भी सऊदी की राजधानी रियाद के अंदर एक और तेल संयत्र पर ड्रोन हमला हुआ.

  • जनवरी 2018 में 13 होममेड ड्रोन से सीरिया में मौजूद रूसी मिलिट्री बेस पर हमला किया गया.

  • अगस्त 2018 में दो GPS आधारित ड्रोन की मदद से वेनेजुएला के राष्ट्रपति मादुरो को विस्फोट मे उड़ाने की कोशिश की गई.हालांकि प्रयास असफल रहा.

  • 2014 से ही इस्लामिक स्टेट इराक और सीरिया में अपने मिलिट्री ऑपरेशन में कमर्शियल ऑफ-द-सेल्फ और होममेड ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है.

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