वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
11 जनवरी 2020 को आतंक का रेड जोन कहे जाने वाले साउथ कश्मीर में जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर चार आदमियों को ले जा रही एक प्राइवेट गाड़ी को रोका गया. जगह थी कुलगाम के मीर बाजार का पुलिस चेक प्वांइट. गाड़ी में सवार दो लोग हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी थे- स्वयंभू जिला कमांडर नवीद बाबा और अल्ताफ. तीसरा था इरफान. पेशे से वकील लेकिन पुलिस के मुताबिक आतंकी समूहों का ओवरग्राउंड वर्कर और, चौथा इंसान था जम्मू-कश्मीर पुलिस का डिप्टी सुपरिटेंडेंट देविंदर सिंह.
पुलिस के मुताबिक, देविंदर आतंकवादियों को राज्य से बाहर निकलने में मदद कर रहा था, क्योंकि बनिहाल पार कर लेने के बाद जम्मू तक कोई नहीं रोकता और जम्मू की सरहद पार करने के बाद राज्य के बाहर निकलना आसान था. 26 जनवरी से महज 2 हफ्ते पहले हुई इस गिरफ्तारी ने कश्मीर से दिल्ली तक हड़कंप मचा दिया.
देविंदर की गिरफ्तारी और आतंकियों की तर्ज पर उनसे पूछताछ का दावा रूटीन कार्रवाई है. लेकिन इस गिरफ्तारी से कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं जिनकी आंच पुलिस महकमे से निकलकर सिस्टम के गलियारों तक पहुंचती दिखती है.
देविंदर की गिरफ्तारी से उठे सवाल
कुछ अहम सवाल कांग्रेस पार्टी ने उठाए हैं. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पूछा है-
- देविंदर सिंह कौन है?
- 2001 संसद हमले में उसकी क्या भूमिका थी?
- पुलवामा हमले में उसका क्या रोल था, जहां वह तैनात था?
- क्या वह खुद अपनी कार में हिजबुल आतंकियों को ले जा रहा था या वो मात्र एक मोहरा है, और मुख्य साजिशकर्ता या कोई है ?
- क्या ये एक बड़ी साजिश का हिस्सा है?
दरअसल, संसद पर हुए देश के सबसे बड़े आतंकी हमले में सजा-ए-मौत पाने वाले आतंकी अफजल गुरू ने साल 2013 में एक चिट्ठी लिखी थी. उसके मुताबिक देविंदर सिंह नाम के अफसर ने उसे संसद हमले के आरोपी आतंकी की मदद करने को कहा था. उस वक्त सिंह पर लगे आरोपों को साबित करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं मिले थे.
पुलवामा हमला कनेक्शन!
आमतौर पर इतने बड़े मामले में शक के दायरे में आने के बाद संवेदनशील नियुक्ति नहीं मिलती लेकिन देविंदर का लंबे समय तक पुलिस में बने रहना, अहम नियुक्तियां पाना, आतंक-निरोधी मुहिम का हिस्सा बने रहना, क्या बड़े सवाल खड़े नहीं करता?
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस के आरोप के बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा है कि 40 जवानों की जान लेने वाले पुलवामा हमले से दो महीने पहले देविंदर का वहां से तबादला हो गया था. यानी दो महीने पहले तक ही सही लेकिन वो वहां तैनात था वो भी डीएसपी जैसे पद पर.
जानकारों का ये भी कहना है कि कई बार पुलिस और जांच एजेंसियों के लोग आतंकवादी गुटों और अडरवर्ल्ड के अंदर घुसने के लिए वहां अपने सोर्स बनाते हैं. उनकी छोटी-मोटी मदद करते हैं, विश्वास जीतने के लिए उन्हें अपना दोस्त बनाते हैं. इस एक्सरसाइज का मकसद भविष्य में गोपनीय जानकारी हासिल करना होता है.
जैसे मुंबई पुलिस के एनकाउंटर किंग कहे जाने वाले दया नायक, प्रदीप शर्मा और विजय सालसकर जैसे अफसर जिनपर अंडरवर्ल्ड से रिश्तों के आरोप भी लगे और उन्होंने खूब अडरवर्ल्ड गुर्गों के एनकाउंटर भी किए.
फॉर्मेलिटी नहीं सॉलिड कार्रवाई
तो क्या देविंदर सिंह इस तरह के किसी ऑपरेशन में थे? ये कहना अभी जल्दबाजी होगी. वैसे पुलिस का दावा है कि देविंदर के साथ आतंकी जैसा बर्ताव ही किया जा रहा है.
इस बात से प्रभावित मत होइएगा कि देविंदर से पूछताछ में स्थानीय पुलिस के अलावा खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनलिसिस विंग यानी रॉ, सीआईडी और इनवेस्टीगेशन ब्यूरो यानी आईबी के लोग शामिल हैं. आंतक ये जुड़े मामले या वीआईपी सिक्योरिटी में होने वाली छोटी से छोटी घटना में भी ये तमाम बड़ी एजेंसियां पूछताछ करती हैं और वो पूछताछ कागजी कार्रवाई से ज्यादा कुछ नहीं होती. लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि इस मामले में सिर्फ फॉर्मेलिटी नहीं बल्कि सॉलिड कार्रवाई होगी. क्योंकि डीसीपी देविंदर की गिरफ्तार से ये साबित होता है कि अभी खतरा टला नहीं है, बल्कि अगर ऐसे लोग सिस्टम में हैं तो ये गिरफ्तारी बड़े खतरे का सुराग है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)