जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के पुंछ (Poonch) जिले के सुरनकोट में पीर पंजाल पहाड़ों के बीच ऊंचे बाफलियाज और टोपा पीर गांवों में तनाव जारी है. इंटरनेट शटडाउन बुधवार, 27 दिसंबर तक जारी रहा. वहीं पिछले शुक्रवार, 22 दिसंबर को सेना की हिरासत में लिए गए तीन ग्रामीणों की मौत के बाद मीडिया के क्षेत्र में प्रवेश करने पर रोक लगा दी गई है.
ग्रामीणों को 21 दिसंबर को धत्यार मोड़ वन क्षेत्र के पास 48 राष्ट्रीय राइफल्स (RR) पर हुए आतंकवादी हमले के संबंध में पूछताछ के लिए बुलाया गया था.
सोशल मीडिया पर, पिछले हफ्ते ग्रामीणों को हिरासत में टॉर्चर करने के कथित वीडियो सामने आए, जिसमें सुरक्षा बलों के सदस्यों को बंदियों को निर्वस्त्र करते, उन पर डंडे बरसाते और घावों पर लाल मिर्च पाउडर डालते हुए दिखाया गया है. मृतक ग्रामीणों की पहचान मोहम्मद शौकत (26), सफीर हुसैन (45) और शब्बीर अहमद (30) के रूप में की गई है.
इस घटना के बाद से पूरे क्षेत्र के लोगों में काफी गुस्सा है और सेना की कथित ज्यादती की पिछली घटनाओं की यादें फिर से ताजा हो गई हैं.
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस संबंध में एक एफआईआर दर्ज की है और सेना ने ब्रिगेडियर स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में नागरिकों की मौत की जांच के लिए अपनी आंतरिक जांच शुरू की है. एफआईआर कॉपी में लिखा है, “आईपीसी [भारतीय दंड संहिता] की धारा 302 के तहत एक कॉग्निजेबल (संज्ञेय) अपराध बनता है. इस सूचना पर तत्काल मामला दर्ज कर लिया गया है."
मारे गए नागरिकों को उनके घरों से उठाया गया था
तीनों मृतकों के परिवारों ने कहा कि शुक्रवार, 22 दिसंबर को सुबह करीब 9.30 बजे सेना उनके घरों पर आई थी.
सफीर हुसैन के भाई और एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता नूर अहमद ने कहा कि, "उन्होंने मेरे भाई से अपना फोन सौंपने को कहा और उसे अपने साथ चलने का निर्देश दिया. वे उसे आर्मी कैंप ले गए, जो हमारे घर से लगभग एक किलोमीटर दूर है."
शाम को जम्मू-कश्मीर पुलिस अधिकारियों ने परिवार को सूचित किया कि सफीर अब नहीं रहे. अहमद (53) खुद सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में हेड कांस्टेबल हैं और राजस्थान में तैनात हैं.
नूर अहमद ने कहा कि, “यहां लोग गुस्से में हैं. यहां पहले कभी ऐसा कुछ नहीं हुआ. तब भी नहीं जब 1997 से 2004 के बीच उग्रवाद अपने चरम पर था. ग्रामीण आम तौर पर सेना के समर्थक रहे हैं."
हिरासत में मारे गए तीनों नागरिक एक दूसरे के रिश्तेदार थे.
टोपा पीर में लगभग 50 घर हैं जो चारों तरफ से घने जंगलों से घिरे हुए हैं. इस छोटे से गांव के ज्यादातर निवासी या तो भारतीय सेना में कुली के रूप में काम कर रहे हैं या आजीविका के लिए बकरियां चरा रहे हैं.
पिछले हफ्ते हिरासत में मारे गए एक अन्य नागरिक मोहम्मद शौकत को जब सेना ने उठाया तो वह अपने घर पर था.
शौकत के चाचा मोहम्मद सिद्दीकी ने कहा कि "शौकत को हिरासत में लिए जाने के बाद, उनकी गर्भवती पत्नी फातिमा बेगम दो किलोमीटर दूर कैंप तक गाड़ी के पीछे-पीछे दौड़ती रही. “वह पूरे समय रो रही थी. कैंप उसके पिता के घर के करीब है. उसने अपने पूरे परिवार को विरोध करने के लिए बुलाया था. वे पूरी घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं.”
सिद्दीकी ने कहा कि शौकत अपनी जीविका के लिए बकरियां चराता था और खेती से भी जुड़ा काम करता था. उनके दो भाई और एक बहन हैं. उन्होंने कहा कि यह पहली बार है कि सेना ने ग्रामीणों के खिलाफ इस तरह का अभियान चलाया है.
उन्होंने यह भी दावा किया कि डर के कारण लोग विरोध नहीं कर पा रहे हैं.
“48 राष्ट्रीय राइफल्स से पहले 16 और 37 आरआर इकाइयां भी यहां तैनात थीं. हमने कभी भी इस तरह के मामले का का सामना नहीं किया. हमारा समुदाय सचमुच गुस्से में हैं. आतंक की यह भावना कभी दूर नहीं होगी. हम अपने मृत ग्रामीणों के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं.”
लोगों के आने-जाने, यात्रा करने पर रोक
द क्विंट ने पीड़ितों के गांव बफलियाज मस्तंदरा के सरपंच (ग्राम प्रधान) से बात की. वह मारे गए नागरिकों में से कम से कम दो की पहचान करने में सक्षम थे. सरपंच महमूद अहमद ने कहा, "वीडियो में काले कपड़े पहने हुए व्यक्ति सफीर है और जिसने लाल पहना है वह शौकत है."
उन्होंने कहा कि ग्रामीणों पर पुलिस ने यहां से वहां (यात्रा) जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और इसलिए कोई मृतकों के परिवारों से भी नहीं मिल पाया.
उन्होंने कहा कि, “किसी को अनुमति नहीं दी जा रही है. ग्रामीण यात्रा भी नहीं कर सकते. मैं सरपंच होने के नाते भी दौरा नहीं कर पा रहा हूं. मेरा घर उनके घरों से 7 किलोमीटर की दूरी पर है लेकिन फिर भी मैं उस इलाके में नहीं जा सकता."
21 दिसंबर को, आतंकवादियों ने पुंछ में डेरा की गली इलाके के पास सेना के दो वाहनों पर घात लगाकर हमला किया, जिसमें पांच सैनिक मारे गए. राजौरी-पुंछ क्षेत्र में यह सबसे घातक हमलों में से एक था, जहां पिछले दो सालों में आतंकवाद फिर से बढ़ रहा है. इस साल जम्मू-कश्मीर में हुई 34 सुरक्षाकर्मियों की हत्याओं में से 20 अकेले इन दो जिलों में हुईं, जिनमें 50 प्रतिशत से अधिक मौतें हुईं हैं.
ये दोनों जिले चट्टानों और एक ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाके में हैं. यहां मुख्य रूप से गुज्जर और बकरवाल की खानाबदोश जनजातियां निवास करती हैं, जिनकी जीविका का मुख्य साधन पशुपालन है.
यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि सुरक्षा बलों ने ग्रामीणों को बफलियाज के पास 48 आरआर कैंप में बुलाने का फैसला क्यों किया. हालांकि, सरपंच महमूद अहमद ने द क्विंट को बताया कि सेना भेड़ और बकरियों के झुंड के कारण सड़क पर बनी बाधा से हैरान थी, जिसके कारण 21 दिसंबर को पास में चलाए जा रहे तलाशी अभियान से लौटते समय उनके वाहन आगे नहीं बढ़ सके थे.
द क्विंट स्वतंत्र रूप से इस दावे की पुष्टि नहीं कर पाया है.
अहमद ने कहा, "इन जंगलों में और इसके आसपास कई गांव हैं." "सेना पर हमला बाफलियाज बी में हुआ था. वहां बाफलियाज ए के साथ-साथ बाफलियाज मस्तंदरा भी है, जहां पीड़ित रहते थे."
हिरासत में कुल दस लोगों को ले गए थे
ग्रामीणों ने बताया कि सेना ने कुल दस लोगों को हिरासत में लिया है. सबसे पहले शौकत, सफीर, रियाज अहमद और लाल हुसैन को हिरासत में लिया गया था.
सिद्दीकी ने बताया कि, “फिर वे दूसरी बार आये और 6 और को ले गए. आक्रोश के बाद लाल हुसैन को छोड़ दिया गया. उनकी उम्र 70 साल से अधिक है. बाकी बंदियों को पीट-पीटकर घायल कर दिया गया और अस्पताल में भर्ती कराया गया."
जब सेना ने दौरा किया तो मृतक शब्बीर अहमद के पिता वली मुहम्मद (60) भी घर पर थे. उन्होंने शब्बीर से पूछा कि उसने पिछली रात उनके फोन कॉल का जवाब क्यों नहीं दिया.
सेना के लिए कुली का काम करने वाले मुहम्मद ने दावा किया, “उन्होंने मेरे बेटे से रियाज अहमद का घर बताने को भी कहा. फिर वे सफीर के पास गए और वही सवाल पूछा. उन्होंने सफीर से काफी अपशब्द कहे जिसने भी जवाब में कुछ अपशब्द कहे थे. फिर मेरे चचेरे भाई लाल हुसैन समेत उन चारों को हिरासत में ले लिया गया."
"लाल हुसैन की रिहाई के बाद, उसने पूरी घटना बताई और हमें बताया कि टॉर्चर के कारण 3 ग्रामीणों की मौत हो गई थी."
मुहम्मद ने कहा कि शब्बीर भेड़ें पालता था और गांव में उसकी एक छोटी किराने की दुकान थी. मुहम्मद ने बताया कि, “सेना ने जानबूझकर उन्हें मार डाला. शब्बीर का एक 6 साल का बच्चा है. हमें नहीं पता कि उनका परिवार अब क्या करेगा."
ग्रामीणों ने कहा कि गांव में प्रतिबंध लगा रहता है. सिद्दीकी ने कहा, “थानामंडी से बाफलियाज तक किसी भी कार को आने-जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है.” उन्होंने आगे कहा कि, "सब कुछ बंद हो गया है. लोग संवेदना व्यक्त करने के लिए हमारे पास नहीं आ पा रहे हैं. जब भी हमें किराने का सामान खरीदना होता है - हम स्थानीय पुलिस और संबंधित अधिकारियों से हमारी मदद करने का अनुरोध करते हैं.”
(शाकिर मीर एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह @shakirmir पर ट्वीट करते हैं. यहां व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. क्विंट हिंदी न तो उसका समर्थन करता है और न ही उसके लिए जिम्मेदार है.)
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