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जम्मू-कश्मीर: आदिवासियों के घरों पर चला बुलडोजर, गम में मनेगी ईद

जम्मू कश्मीर प्राधिकरण द्वारा आदिवासियों का घर गिराए जाने के बाद वो धरने पर बैठ गए.

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जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के सैफ अली का घर 11 जनवरी को बुलडोजर द्वारा तोड़ दिया गया, जिसके बाद 80 वर्षीय आदिवासी अब बेघर हैं. पिछले चार महीनों से खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं. सैफ अली का परिवार रूपनगर के पड़ोस में एक दर्जन से अधिक गुर्जर और बकरवाल परिवारों में से है, जिनके घरों को अतिक्रमण घोषित किए जाने के बाद जम्मू विकास प्राधिकरण (JDA) ने बुलडोजर से गिरा दिया.

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इसके बाद से आदिवासी परिवार धरने पर बैठे हैं और अब यह आदिवासियों के लिए एक गमगीन ईद है. उनके घरों के विध्वंस के बाद पहला बड़ा त्योहार आया है.

सैफ अली ने कहा कि हम यहां 1947 से पहले से रह रहे हैं और 1978 से हमारे पास रेवेन्यू रिकॉर्ड है. हमारे अलावा किसी को भी निशाना नहीं बनाया गया.

जिस जमीन पर आदिवासियों ने अपने घर बनाए थे, वह असल में राज्य की जमीन है. जम्मू-कश्मीर रोशनी एक्ट के तहत, सैफ अली ने 2008 में भूमि के नियमितीकरण के लिए सरकार को 6.75 लाख रूपए का भुगतान भी किया है. NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक सैफ अली ने कहा कि,

जब मैंने उन्हें खजाने की रसीदों सहित दस्तावेज दिखाने की कोशिश की, तो उन्होंने उन्हें देखने से इनकार कर दिया. पुलिस ने इसके बजाय मुझे थाने में तब तक हिरासत में रखा जब तक कि विध्वंस नहीं हो गया.
सैफ अली

दिल्ली और मध्य प्रदेश में हाल ही में विध्वंस अभियान से पहले जम्मू में आवासीय घरों को गिराने के लिए यह पहला बड़ा अभियान था. जम्मू विकास प्राधिकरण का कहना है कि अतिक्रमणकारियों के खिलाफ विध्वंस अभियान चलाया गया था. इसके अलावा जेडीए यह भी मानता है कि आदिवासी लंबे समय से वहां रह रहे थे.

जम्मू विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पंकज मगोत्रा ​​ने कहा

हमने अवैध घरों को ध्वस्त कर दिया लेकिन हमने आदिवासियों को जमीन से नहीं हटाया है. हम एक सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं.

'1947 में भी ऐसा नहीं हुआ'

बंटवारे के दर्द को देख चुके सैफ अली के भाई अब्दुल अजीज का कहना है कि उन्हें 1947 में इस तरह के बेदखली का सामना भी नहीं करना पड़ा था. घर को ध्वस्त किए जाने के बाद उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की.

अब्दुल अजीज ने कहा कि 1947 में भी हमने ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया था. हम खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं, हमारी कोई नहीं सुनता.

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बुल्डोजर चलने के बाद बेघर हो चुके बकरवाल कहते हैं कि यह न केवल उनके परिवार और बच्चे हैं, बल्कि उनके पालूत जानवर भी विध्वंस अभियान के बाद बुरी तरह पीड़ित हैं.

आदिवासियों के वकील का कहना है कि जेसीबी का चुनिंदा जगहों पर इस्तेमाल किया गया था. जहां पर पॉलिटिसियन और पॉवरफुल लोगों के घर बने हैं, वहां पर कुछ नहीं किया गया.

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के एडवोकेट शेख शकील ने कहा

यह सब विशेष वर्ग के साथ किया जा रहा है, यह सब सेलेक्टिव है. उन्हें शत्रुतापूर्ण भेदभाव के लिए चुना गया है क्योंकि वे गरीब हैं.

इनपुट- NDTV

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