केंद्र सरकार कश्मीर की समस्या हल करने में लगी हुई है, लेकिन अलगाववादी इसे सुलझाना नहीं चाहते. अलगाववादी नेताओं ने शांति बहाली के लिए सरकार की तरफ से नियुक्त मध्यस्थों से किसी भी तरह की बातचीत से इनकार किया है.
वार्ताकार की नियुक्ति को उन्होंने नई दिल्ली की ओर से 'एक नई रणनीति' बताया है. शीर्ष अलगाववादी नेताओं का समूह ‘ज्वाइंट रेजिस्टेंस लीडरशीप’ ने हाल ही में नियुक्त वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा के साथ किसी भी प्रकार की बातचीत से इनकार किया है. जेआरएल नेता सैयद अली गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और मोहम्मद यासीन मलिक ने साझा बयान जारी कर यह जानकारी दी.
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अलगाववादी नेताओं ने कहा-
इस वार्ता प्रक्रिया का हिस्सा बनना किसी भी कश्मीरी के लिए एक बेवजह की पहल होगी. केंद्र सरकार आजादी से प्यार करने वाले कश्मीरियों की चाहतों को कुचलने की कोशिशों में नाकाम रहने पर बातचीत करने की नई रणनीति अपना रही है.
सिद्धांतों के साथ समझौते को तैयार नहीं
अलगाववादी नेताओं ने साफ-साफ कहा है कि वो अपने सिद्धांतों के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं करेंगे. नेताओं का ने कहा कि हम हमेशा उपयोगी बातचीत को बढ़ावा और समर्थन देते हैं. लेकिन भारत सरकार लगातार इस बुनियादी बात और जमीनी हकीकत को नकारती रही है.
जम्मू-कश्मीर के लिए स्वायत्तता की मांग कर रहे कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के बयान पर भी इन लोगों ने प्रतिक्रिया दी. अलगाववादियों ने कहा, "राज्य में स्वायत्तता बहाल करने के फैसले पर उनके अपने नेताओं की मांग को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया. जबकि उनके अपने संविधान में इसकी गारंटी दी गई है."
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सीरिया से तुलना पर जताया ऐतराज
अलगाववादियों ने जम्मू-कश्मीर मामले में नियुक्त वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा के जम्मू -कश्मीर को 'सीरिया बनने से रोकने' के बयान की कड़े शब्दों में निंदा की है. अलगाववादियों ने कहा, "कश्मीर के 70 साल पुराने राजनीतिक और मानवीय मुद्दे की सीरिया में युद्ध और सत्ता संघर्ष से तुलना करना एक प्रोपेगेंडा है. दोनों स्थितियों में कोई समानता नहीं है."
(इनपुट-IANS से)
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