5 अक्टूबर 2019 को देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था, "मैं मानता हूं कि जम्मू-कश्मीर में लंबे रक्तपात का अंत आर्टिकल 370 समाप्त होने से होगा."
अब कश्मीर (Kashmir) से आर्टिकल 370 (Article 370) समाप्त हुए दो साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन रक्तपात अब भी जारी है. बल्कि हाल के दिनों में बढ़ गया है. 90 के दशक की याद आ रही है. पिछले दो महीनों में करीब 40 आम लोगों को मार दिया गया. इसी अक्टूबर के महीने में पुंछ में आतंकियों के खिलाफ चल रहे सर्च ऑपरेशन में 9 जवान शहीद हो गए. आखिर क्यों?
कश्मीर में लोगों के बसने से लेकर कश्मीरी पंडितों की वापसी के सपने दिखाए गए लेकिन जब वहां से लोग पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. दो वक्त की रोटी के लिए अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर गए लोग कश्मीर से कफन में लिपट कर आ रहे हैं. तो हम पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?
5 अगस्त 2019 को नरेंद्र मोदी सरकार ने कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली आर्टिकल 370 और 35-ए को निरस्त कर दिया. इसके अलावा एक और फैसला हुआ, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बनाया गया. ये सब हुए दो साल बीत चुके हैं.
अब सवाल है कि क्या कश्मीर में 'नॉर्मल्सी' आ गई? जवाब है नहीं.. इंटरनेट बंद, लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए राजनीतिक दल के नेता नजरबंद. विकास और शांति के नाम पर हर तरह की दुहाई दी गई, लेकिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.
बाहरी लोगों को बनाया जा रहा निशाना
जम्मू कश्मीर पुलिस की मानें तो इस साल 7 अक्टूबर तक 28 आम लोगों की हत्या हुई है. जिसमें से 21 मुसलमान, 7 गैर-मुसलमान थे. जिनमें दो हिंदू बाहरी और पांच स्थानीय हिंदू और सिख शामिल थे. लेकिन अब ये आकंड़े और बढ़ गए हैं.
17 अक्टूबर को आतंकवादियों ने कश्मीर के कुलगाम जिले के वानपोह में तीन गैर-स्थानीय मजदूरों को गोली मार दी. उनमें से बिहार के रहने वाले राजा रेशी देव और जोगिंदर रेशी देव की मौके पर ही मौत हो गई. यही नहीं ठीक एक दिन पहले 16 अक्टूबर 2021 को बिहार के ही रहने वाले गोलगप्पा विक्रेता अरबिंद कुमार साह की हत्या कर दी गई. 16 अक्टूबर को ही कश्मीर के पुलवामा में उत्तर प्रदेश के एक रहने वाले सगीर अहमद की गोली मारकर हत्या कर दी गई. 5 अक्टूबर को श्रीनगर के मशहूर दवा कारोबारी माखन लाल बिंदरू की गोली मारकर हत्या कर दी गई. 2 अक्टूबर को श्रीनगर के चट्टाबल में रहने वाले माजिद अहमद गोदरी की गोली मारकर हत्या कर दी गई. एक टैक्सी चालक मोहम्मद शफी लोन, टीचर दीपक चंद और सुपिंदर कौर... लिस्ट काफी लंबी है.
लेकिन अब मीडिया चुप है.. कोई नहीं पूछ रहा कि क्यों अब तक लाशें गिर रही हैं? क्यों सब ठीक नहीं हुआ? कहां कमी है? कौन जिम्मेदार है? कैसे में सब ठीक होगा? सिर्फ अक्टूबर ही नहीं और भी आंकड़े देखिए. साल 2020 में 37 आम लोग मारे गए, 2019 में 39 नागरिक मारे गए. 2019 अगस्त से स्थितियां बेहतर हुईं क्या? ये समझना तो देखिए कि उससे पहले के सालों में क्या हालात थे. साल 2018 में 38 आम लोग मारे गए थे, वहीं 2017 में 40 और 2016 में 15 लोग मारे गए थे.
मतलब आर्टिकल 370 से पहले भी वही हाल और अब भी कुछ नहीं बदला.
जवानों की शहादत
अब आते हैं देश के जवानों पर. जिनके नाम पर चुनावों में वोट मांगे जाते हैं. साल 2019 के 14 फरवरी को 40 जवान शहीद हुए थे.. लेकिन जवाबदेही तय नहीं हुई. अब आते हैं आर्टिकल 370 के हटने के बाद.
संसद के पिछले मानसून सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में सरकार ने राज्यसभा में बताया कि, आर्टिकल 370 हटने के बाद अगस्त 2021 तक 59 आम लोगों की हत्याएं आतंकियों ने की हैं. 2019 में 78 जवानों की शहादत भी आतंकी हमलों में हुई. 2020 में 46 जवान शहीद हुए.
हां, ये सच है कि साल 2020 में जम्मू और कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं, घुसपैठ और नागरिक हत्याओं में कमी देखी गई थी. जम्मू-कश्मीर में मई 2018 से जून 2021 के, बीच कम से कम 630 आतंकवादी मारे गए हैं. साल 2020 में 225 आतंकवादी मारे गए हैं. लेकिन हर एक जवान की जान कीमती है.
आर्टिकल 370 हटने के बाद कितने बाहरी लोगों ने खरीदी जमीन
अब आते हैं कश्मीर में जमीन खरीदने से लेकर लोगों के बसने को लेकर किए वादे पर. गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में जानकारी दी कि आर्टिकल 370 के हटने के दो साल बाद देश के दूसरे राज्यों से सिर्फ दो लोगों ने जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदी है. सिर्फ दो?
राज्य सभा में नित्यानंद राय ने अगस्त 2021 में एक सवाल के जवाब में बताया था कि आर्टिकल 370 हटने के बाद अब तक कुल 9 कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में उनकी प्रॉपर्टी वापस दिलाई गई है. जो 90 के दशक में हिंसा के बाद वहां से पलायन कर गये थे. साथ ही आर्टिकल 370 हटने के बाद से 520 कश्मीरी प्रवासी प्रधानमंत्री विकास पैकेज-2015 के तहत नौकरी करने के लिए घाटी लौट आए हैं.
लेकिन सवाल लौटने से ज्यादा सुरक्षा का है. बिहार से लेकर यूपी, राजस्थान और देश के बाकी राज्यों के लोग काम की तलाश में कश्मीर जाते हैं, वो इन हत्याओं के बीच कश्मीर से वापस लौटने को मजबूर हैं. उनकी मौत के बाद मुआवजे देकर सरकारें पल्ला नहीं झाड़ सकती हैं. कश्मीरी पंडितों पर 90 के दशक में जो जुल्म हुआ उसे भुलाया नहीं जा सकता लेकिन उस दर्द की दवा तो ढूंढ़नी होगी.. बंदूक के साए में शहर नहीं बसते, डायलॉग करना होगा. आर्टिकल 370 हटने के बाद भी क्यों नहीं हत्याएं रुक रही हैं? क्यों आम लोग निशाना बन रहे हैं? कहां चूक हो रही है? क्यों इंटेलिजेंस फेल हो रही है? मीडिया मैनेजमेंट से कश्मीर में नॉर्मल्सी दिखाने से सब ठीक नहीं हो जाएगा. और अगर इतनी मौतों के बाद भी सिर्फ भाषण होगा तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?
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