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जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति नहीं राज्यपाल शासन क्यों लगता है?

देश में दूसरे राज्यों में सरकारें गिरती हैं तो राष्ट्रपति शासन लगता है लेकिन कश्मीर में राज्यपाल शासन क्यों?

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जम्मू-कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी के रास्ते अलग हो चुके हैं. सरकार गिर चुकी है. सीएम महबूबा मुफ्ती ने इस्तीफा दे दिया है. बीजेपी ने राज्य में राज्यपाल शासन लगाने की मांग की थी. जिसके बाद बुधवार को राष्ट्रपति ने राज्यपाल शासन की इजाजत दे दी है. मतलब अब जम्मू-कश्मीर में महबूबा का नहीं बल्कि राज्यपाल का शासन शुरू हो चुका है.

लेकिन आपके दिमाग में ये सवाल आ रहा होगा कि देश में दूसरे राज्यों में सरकारें गिरती हैं तो राष्ट्रपति शासन लगता है, लेकिन कश्मीर में राज्यपाल शासन क्यों?

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इस सवाल के जवाब के पीछे छुपा है जम्मू कश्मीर का अलग संविधान.

दरअसल, जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्शन 92 के मुताबिक, राज्य में सरकार के गिरने, सरकार के अल्पमत में जाने और सरकार बनाने का दावा ना पेश कर पाने या किसी भी पार्टी के पास बहुमत ना होने पर राज्यपाल शासन लागू होता है. लेकिन ये फैसला राष्ट्रपति की इजाजत के बाद ही हो सकता है. मतलब भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी से 6 महीने के लिए राज्यपाल शासन लगाया जा सकता है.

लेकिन अगर छह महीने के अंदर राज्य में सामान्य स्थिति बहाल नहीं हो पाती है तो राष्ट्रपति के इजाजत से राज्यपाल शासन की मियाद को बढ़ाया जा सकता है.

बाकि राज्यों में अलग नियम

वहीं देश के दूसरे राज्यों में अगर सरकार विफल रहती है, सरकार गिर जाती है, कोई भी पार्टी सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत नहीं जुटा पाती है, तो एेसे हालत में भारतीय संविधान की धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है.

लेकिन भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता है और यह देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जिसके पास अलग संविधान और नियम हैं. इसी को देखते हुए जम्मू और कश्मीर में राष्ट्रपति नहीं बल्कि राज्यपाल का शासन लागू होता है.

राज्यपाल एनएन वोहरा के हाथ में बागडोर

सरकार गिरने के बाद जम्मू कश्मीर की बागडोर राज्‍यपाल एनएन वोहरा के हाथों में हैं. वोहरा को जून 2008 में राज्यपाल नियुक्त किया गया था और उन्हें 2013 में फिर से राज्यपाल का कार्यभार सौंपा गया था. लेकिन पिछले 10 सालों से जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने रहे वोहरा का अब टर्म खत्म होने वाला है.

मीडिया रिपोर्ट की माने तो एनएन वोहरा को तीन महीने का एक्सटेंशन मिल सकता है. क्योंकि राजयपाल वोहरा अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष हैं. और ऐसे में अमरनाथ यात्रा के शुरू होने से पहले उन्हें हटाने से मुश्किलें बढ़ जाएंगी. इसलिए माना जा रहा है कि यात्रा समाप्त होने तक वोहरा ही राज्यपाल बने रहेंगे.

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