जम्मू-कश्मीर में मार्च, 2015 में पीडीपी-बीजेपी के बीच हुए 'बेमेल गठबंधन' वाली सरकार आखिरकार गिर गई. बीजेपी ने महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी से गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया है. जब से राज्य में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार बनी थी, सेना, पत्थरबाजों-आतंकियों और नीतियों के मोर्चे पर दोनों पार्टियों के मतभेद खुलकर सामने आ रहे थे. लेकिन गठबंधन तोड़ने का फैसला बीजेपी ने 40 महीने बाद लिया. इस अचानक लिए गए फैसले के पीछे क्या वजह हैं और आगे क्या होगा, आइए जानते हैं.
1. सीजफायर पर बीजेपी, पीडीपी के अलग-अलग राग
बीजेपी के गठबंधन से अलग होने का सबसे बड़ा कारण है घाटी में सीजफायर पर दोनों पार्टियों का अलग-अलग राग. सीजफायर के दौरान ही राइजिंग कश्मीर के एडिटर शुजात बुखारी और सेना के जवान औरंगजेब की आतंकियों ने हत्या कर दी थी. इन दो हत्याओं के बाद 17 जून को केंद्र सरकार ने एकतरफा संघर्ष-विराम को विस्तार नहीं देने का फैसला किया था. फैसले के तुरंत बाद ही पीडीपी ने इस पर नाराजगी जता दी. अब बीजेपी ऐसे गठबंधन में रहकर आने वाले चुनाव के लिए अपनी 'आतंक विरोधी' इमेज खराब नहीं करना चाहती थी.
2. कठुआ गैंगरेप और ध्रुवीकरण का सीधा फायदा
कठुआ में 8 साल की मासूम बच्ची के साथ हुए गैंगरेप और हत्या मामले में देशभर में बीजेपी की किरकिरी हुई थी. इसे मामले को हिंदू बनाम मुस्लिम में भी तब्दील करने की कोशिश की गई. इसके बाद राज्य में बीजेपी के दो मंत्रियों को इस्तीफा तक देना पड़ा था. इस मुद्दे को लेकर बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ता जम्मू में ध्रुवीकरण को हवा देते रहे. अब पीडीपी के साथ गठबंधन जारी रखकर जम्मू में बीजेपी अपना ग्राउंड नहीं खोना चाहती है, वह भी ऐसे वक्त में, जब 2019 का चुनाव सिर पर है.
3. आतंकियों, पत्थरबाजों पर पीडीपी का नरम रवैया
"हमें अगर दलदल से कोई बाहर निकाल सकता है, तो वो मोदी हैं", करीब 1 साल पहले महबूबा मुफ्ती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये बात कही थी. लेकिन पीएम मोदी और उनकी टीम का जम्मू-कश्मीर में काम करने का तरीका, महबूबा मुफ्ती को भा नहीं रहा था. सेना ने जब भी पत्थरबाजों के लिए सख्त रवैया अपनाया, महबूबा मुफ्ती ने उन्हें 'भटके हुए युवा' करार दिया. साथ ही ऑपरेशन ऑलआउट के दौरान भी महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार का साथ नहीं दिया. अब बीजेपी के केंद्रीय महामंत्री राम माधव का कहना है कि राज्य सरकार में पार्टी हिस्सा थी, लेकिन कमान पीडीपी के हाथ में ही थी.
अब अगर कमान राज्यपाल के हाथ में आती है, तो पूरी बीजेपी के पास पूरी छूट होगी. आतंकियों से निपटने के लिए वो खुले तौर पर कार्रवाई कर पाएगी. आतंकियों के सफाए के आंकड़े भी बीजेपी के दावे को मजबूत करते नजर आएंगे.
4. 2019 चुनाव सामने है
बीजेपी ने गठबंधन से अलग हटकर 'बेमेल समझौते' का बोझ अपने ऊपर से उतार दिया है. विपक्ष लगातार इस मुद्दे पर पार्टी को निशाना बनाता रहा है. 2019 तक अगर ये गठबंधन बरकरार रहता, तो विपक्ष के हाथ में हथियार होता कि किस तरह बीजेपी सिर्फ सरकार बनाने के लिए किसी भी विचारधारा की पार्टी से समझौता कर लेती है. अब बीजेपी ये खुलकर कह सकती है कि आतंकियों के खात्मे के मामले में वो किसी से समझौता नहीं कर सकती.
5. जम्मू-कश्मीर में अब आगे क्या?
बीजेपी और एनसी ने जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू करने की मांग की है. राज्य में विधानसभा सीटों का गणित इस तरह है:
- पीडीपी- 28
- बीजेपी- 25
- नेशनल कॉन्फ्रेंस- 15
- कांग्रेस- 12
- अन्य- 9
- कुल- 89
राज्य में सरकार बनाने के लिए 44 सीटों की जरूरत होती है. महबूबा मुफ्ती की पीडीपी और उमर अब्दुल्ला की एनसी धुर विरोधी पार्टियां हैं. ऐसे में दोनों का साथ आना तकरीबन नामुमकिन था.
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