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अब जावेद अख्तर का तर्क, ‘बुर्का’ और ‘घूंघट’ दोनों को हटाया जाए

बुर्के को लेकर भी बहस है, ईरान कट्टर मुस्लिम देश है, लेकिन वहां महिलाएं चेहरा नहीं ढकती: अख्तर

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भारत
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मुस्लिम महिलाओं के बुर्के को लेकर चल रही बहस के बीच मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने गुरुवार को बुर्का और घूंघट को एक जैसा बताते हुए दोनों को हटाने की पैरवी की है. अख्तर से शिवसेना के मुख पत्र सामना में बुर्के पर प्रतिबंध लगाए जाने का जिक्र किए जाने से संबधित सवाल पूछा, जिस पर उन्होंने कहा, "मेरे घर में सभी महिलाएं कामकाजी रही हैं, मां भोपाल के हमीदिया कॉलेज में पढ़ाती थीं, घर में कभी बुर्का देखा नहीं, इसलिए बुर्के के मामले में मेरी जानकारी कम है."

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उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "बुर्के को लेकर भी बहस है, ईरान कट्टर मुस्लिम देश है, लेकिन वहां महिलाएं चेहरा नहीं ढकती. श्रीलंका में जो कानून आया, उसमें भी है कि औरतें चेहरा नहीं ढक सकती. आप चाहे जो पहनें मगर चेहरा कवर नहीं होना चाहिए, आपका चेहरा खुला होना चाहिए. यहां भी अगर ऐसा कानून लाना चाहते हैं और यह किसी की राय है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इससे पहले कि राजस्थान में चुनाव का आखिरी चरण हो जाए उससे पहले इस केंद्र सरकार को ऐलान करना होगा कि राजस्थान में भी कोई महिला घूंघट नहीं लगा सकती."

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जावेद अख्तर ने कहा, "चेहरे बुर्के से कवर होंगे या घूंघट से, यह एक बात है. अगर बुर्के और घूंघट हट जाएं तो मुझे खुशी होगी."

प्रज्ञा सबूत, हार मान चुकी हैं बीजेपी: अख्तर

बीजेपी की तरफ से भोपाल से साध्वी प्रज्ञा को चुनाव लड़ाए जाने पर चर्चा करते हुए जावेद अख्तर ने कहा, "मुझे लगता है कि बीजेपी ने प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से उम्मीदवार बनाकर अपनी हार मान ली है. बीजेपी ने यह मान लिया है कि अब अपने को अच्छा दिखाने का ड्रामा नहीं करना चाहिए और असल मुद्दे पर आ जाना चाहिए, वही चुनाव में काम आएगा. अभी तक जो पर्दा ओढ़ा गया था, उसे हटा दिया गया है. बीजेपी को अगर जरा सा भी जीतने का विश्वास होता तो वह प्रज्ञा ठाकुर को टिकट नहीं देते. उन्हें भी प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाने में तकलीफ हुई होगी, मगर मजबूरीवश उन्हें ऐसा करना पड़ा होगा.’’

उन्होंने कहा, "आजादी के बाद यह चुनाव सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है और मेरा भोपाल से रिश्ता है, इसलिए मेरा यह कत्र्तव्य बनता था कि भोपाल के लोगों से बात करने यहां आऊं." जावेद अख्तर ने इसके साथ ही राजनेताओं के भाषा के गिरते स्तर पर चिंता जताई.

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