झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) मेन एग्जाम पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है. मंगलवार, 25 जनवरी को झारखंड हाईकोर्ट में जेपीएससी परीक्षा से जुड़े केस पर सुनवाई हुई. इस दौरान आयोग ने स्वीकार किया कि पिछले दिनों हुए प्रीलिम्स एग्जाम के रिजल्ट में आरक्षण नियमों का पालन नहीं हो पाया. इस वजह से आयोग इसकी समीक्षा करते हुए नये सिरे से रिजल्ट जारी करेगा.
प्रीलिम्स के रिजल्ट को लेकर हुआ था विवाद
जेपीएससी के द्वारा सातवीं से दसवीं सिविल सर्विस की संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा पिछले साल सितंबर में ली गयी थी. इस एग्जाम में आरक्षण से संबंधित विवाद को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिस पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है.
प्रीलिम्स एग्जाम के 42 दिनों के बाद रिजल्ट जारी किया गया था, जिसके बाद से ही विद्यार्थियों के द्वारा परीक्षा में गड़बड़ी होने का आरोप लगाया गया.
252 पदों के लिए चार लाख से ज्यादा उम्मीदवार प्रिलिम्स एग्जाम में शामिल हुए थे. जारी किए गए रिजल्ट में कुल 4293 उम्मीदवार पास किए गए हैं.
परीक्षा में हुई गड़बड़ी को लेकर विद्यार्थियों ने विरोध प्रदर्शन किया और इसके अलावा राज्य की विपक्षी पार्टी बीजेपी द्वारा सदन में हंगामा किया गया था. ये भी सवाल उठाया गया था कि कम मार्क्स पाने वाले छात्र पास और ज्यादा मार्क्स स्कोर करने वाले छात्र फैल कैसे हो गए.
प्रिलिम्स एग्जाम में हुए विवाद को लेकर झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने आयोग के चेयरमैन अमिताभ चौधरी को राजभवन तलब किया और विवाद से जुड़े सभी बिन्दुओं पर जानकारी मांगी. राज्यपाल से मिलने के बाद अमिताभ चौधरी ने कहा कि इस मुद्दे पर जो भी बात हुई है, उसके बारे में वो मीडिया को नहीं बता सकते.
इसके बाद रिजल्ट को रद्द करने की मांग के साथ सीबीआई जांच की भी मांग उठाई गई थी. इस दौरान आरोप लगाया गया था कि रांची के लोहरदगा, साहिबगंज और लातेहार सेंटर पर एक ही कमरे में क्रम से बैठे कई छात्रों को पास किया गया था. इसके अलावा कटऑफ नहीं जारी करने पर भी सवाल उठाए गए थे.
आयोग ने इस पर जवाब देते हुए कहा था कि क्रम से बैठे विद्यार्थियों की ओएमआर सीट न मिलने की वजह से देर न हो इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्हें एग्जाम में पास कर दिया गया.
28 जनवरी से होनी थी मेन परीक्षा
प्रीलिम्स एग्जाम को रद्द करने की मांग को लेकर अभ्यर्थियों ने कई बार विरोध प्रदर्शन किया था, लेकिन उनकी तमाम आपत्तियों को दरकिनार करते हुए आयोग ने आगामी 28 जनवरी से मुख्य परीक्षा लेने का टाइम टेबल जारी किया गया था.
कमीशन के द्वार जारी किए गए नोटिफिकेशन के मुताबिक मेन एग्जाम 28 जनवरी से 30 जनवरी तक होना था.
हमेशा होता रहा है विवाद
झारखंड लोक सेवा आयोग स्थापना के बाद से ही लगातार विवादों का हिस्सा बना रहा है. जेपीएससी की स्थापना हुए लगभग 20 साल हो चुके हैं और अब तक आयोग के द्वारा केवल 6 एग्जाम्स करवाए जा सके हैं. आयोग द्वारा करवाए गए इन सभी परीक्षाओं के रिजल्ट पर विवाद रहा है. सिविल सर्विस परीक्षाओं में हुए विवादों को लेकर सीबीआई द्वारा कई जांच भी चल रही हैं.
जेपीएससी कभी पैरवी करने वाले लोगों की नियुक्ति और कभी नियमों के खिलाफ नियुक्ति करने को लेकर भी सुर्खियों में रहा है.
सत्ता बदली लेकिन अभ्यर्थियों का नसीब नहीं
जेपीएससी की लगभग 16 परीक्षाएं सीबीआई जांच के दायरे में हैं. इनमें फर्स्ट, सेकेंड सिविल सर्विस, मार्केटिंग सुपरवाइजर, , प्राथमिक शिक्षक नियुक्ति, डॉक्टर, इंजीनियर, फार्मासिस्ट, लेक्चरर, झारखण्ड पात्रता परीक्षा, सहकारिता पदाधिकारी, विश्वविद्यालय में डिप्टी रजिस्ट्रार की नियुक्तियों के अलावा अन्य एग्जाम्स भी शामिल हैं.
इससे पहले क्या-क्या हुआ?
साल 2003 में पहली बार झारखण्ड लोक सेवा आयोग के द्वारा 64 पदों के लिए सिविल सर्विस एग्जाम का आयोजन किया गया. इसके बाद 172 पदों के लिए दूसरी सिविल सेवा परीक्षा ली गयी, जिसमें विवाद हुआ. इस दौरान कमीशन के पदाधिकारियों, राजनेताओं और शिक्षा माफियाओं के रिश्तेदारों के एप्वाइंटमेंट को लेकर भी आरोप लगाए गए. इसके अलावा आयोग पर पैसे का लेन-देन करके मार्क्स बढ़ाने के आरोप भी लगे थे.
आयोग के द्वारा तीसरी सिविल सेवा परीक्षा 242 पदों के लिए आयोजित की गयी, जिसमें रिजल्ट में धांधली को लेकर कुछ अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में केस दर्ज करवाया. हालांकि कोर्ट ने मामले को संज्ञान में नहीं लिया.
पहली, दूसरी और तीसरी सिविल सेवा परीक्षा के बाद हुई नियुक्तियों को लेकर 2009 में झारखंड लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष दिलीप प्रसाद पर फर्जी नियुक्तियों के मामले में केस दर्ज हुआ और गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया. लगभग 2 साल तक फरार रहने के बाद विजिलेंस कोर्ट ने कुर्की का आदेश जारी किया. उसके बाद 4 फरवरी 2011 को दिलीप प्रसाद ने विजिलेंस कोर्ट में सरेंडर किया और उन्हें 10 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया था.
इसके बाद झारखंड लोकसेवा आयोग द्वारा 219 पदों के लिए चौथे सिविल सर्विस एग्जाम का आयोजन किया गया. इसके प्रीलिम्स एग्जाम में कैंडीडेट्स को दिए गए मार्क्स को लेकर विवाद हुआ था और ये मामला हाईकोर्ट तक गया. कोर्ट ने रिजल्ट घोषित करने की अनुमति दे दी थी लेकिन मामला अभी कोर्ट में लंबित है.
आयोग के द्वारा 277 पदों के लिए पांचवीं सिविल सर्विसेज की प्रीलिम्स परीक्षा का आयोजन किया गया, जिसमें आरक्षण देने की मांग को लेकर विवाद खड़ा हुआ और ये मामला हाईकोर्ट पहुंचा. बाद में कोर्ट ने एग्जाम रिजल्ट जारी करने का आदेश दिया.
इसके बाद 326 पदों के लिए छठवीं सिविल सेवा परीक्षा में भी आरक्षण और क्वालिफाइंग मार्क्स को लेकर विवाद खड़ा हुआ. इस बार भी मामला कोर्ट तक पहुंचा और लगभग 11 महीने के बाद 7 जून 2021 को कोर्ट ने मेरिट लिस्ट रद्द कर दी. मौजूदा वक्त में ये केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.
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