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लोहरदगा में CAA के नाम पर दुकानों के साथ आपसी सौहार्द भी हुआ खाक

लोहरदगा हिंसा की कहानियों ने बताया कैसे एक दूसरे से दूर हो रहे लोग

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देश के कई शहरों की तरह झारखंड के लोहरदगा में भी नागरिकता कानून का असर दिखा. सीएए के समर्थन में आयोजित एक रैली के बाद फैला बवाल इतना बढ़ा कि उसने 28 साल से फल-फूल रहे सांप्रदायिक सौहार्द को पलभर में खत्म कर दिया. प्रदर्शन इतना उग्र हुआ कि मस्जिद से लेकर पावरगंज तक का इलाका धधक उठा था. चारों तरफ आग दिखाई दे रही थी.

इस हिंसा के दौरान एक ऐसा शख्स भी था जिसकी कुछ ही दिनों बाद मौत हो गई. नीरज प्रजापति नाम के इस शख्स की मौत कैसे हुई ये अभी भी एक गुत्थी बना हुआ है. परिवार कुछ और कहानी बता रहा है और पुलिस कुछ इसे सामान्य मौत करार दे रही है.

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23 जनवरी को अफरा-तफरी के इस माहौल में हर तरफ चीख पुकार के बीच प्रशासन हालात नियंत्रित करने की जद्दोजहद में लगा था. करीब 28 सालों बाद फिर से एक बार लोहरदगा को सांप्रदायिक आग का सामना करना पड़ रहा था. नागरिकता संशोधन विधेयक के समर्थन में VHP से लेकर बीजेपी समर्थकों के जुलूस के दौरान पत्थरबाजी की घटना देखते ही देखते भड़क उठी.

अचानक लोहरदगा के अलग-अलग हिस्सों में आगजनी, तोडफ़ोड़ और मारपीट की खबरें सामने आने लगीं. इस घटना में 35 से ज्यादा लोग घायल हुए. लेकिन जुलसू के दौरान हुई हिंसा में कथित तौर पर घायल नीरज राम प्रजापति की सोमवार 27 जनवरी को रांची के रिम्स में मौत हो गई. रिम्स के ट्रामा सेंटर में उनका इलाज चल रहा था. घायल होने के बाद उन्हें रांची के ऑर्किड अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यहां 2 दिन के इलाज के बाद ब्रेन हेमरेज के इलाज के लिए उन्हें रिम्स में भर्ती कर दिया गया.

लोहरदगा हिंसा की कहानियों ने बताया कैसे एक दूसरे से दूर हो रहे लोग
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मौत पर सस्पेंस

नीरज की मौत तो हो गई, लेकिन उसकी मौत का क्या कारण था इस पर अभी तक सस्पेंस बना हुआ है. नीरज के चचेरे भाई संजय प्रजापति ने बताया कि "हड़बड़ी में हमने चोट नहीं देखी, हालत काफी खराब थे. सब तरफ अफरातफरी का माहौल था. उन्होंने बताया,

“नीरज की उम्र लगभग 28 साल थी. नीरज मूर्ति बनाता था. उसी से घर चलता था. घर में उसकी पत्नी, बेटा, मां, पिता और एक भाई हैं. अब नीरज का घर कैसे चलेगा ये बहुत बड़ा मसला है.”
लोहरदगा हिंसा की कहानियों ने बताया कैसे एक दूसरे से दूर हो रहे लोग
मृतक नीरज अपने परिवार के साथ 
(फोटो: मोहम्मद सरताज आलम)

वहीं इसी सवाल का जवाब मृतक नीरज के भांजे मनु ने देते हुए कहा कि "डॉक्टर ने कहा है कि चोट सिर में थी. पोस्टमार्टम में भी आया है कि चोट लगी थी." उसने बताया कि "ग्यारह बजे रैली थी इसलिए वो साढ़े दस बजे रैली के लिए स्टेडियम की तरफ निकल गए. हिंसा के बाद 3 बजे के आस-पास वो सब हड़बड़ी में घर पहुंचे. नीरज की हालत खराब थी, घर वाले ही नॉर्मल ट्रीटमेंट कर रहे थे, तेल लगा रहे थे, फिर ब्लड प्रेशर चेक कराया तो समझ में आया कि BP बहुत हाई है. फिर डॉक्टर के पास ले गए. इसके बाद रांची ले गए. वहां ऑर्किड अस्पताल में भर्ती किया गया.

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नहीं मिली पोस्टमार्टम रिपोर्ट

इलाज के दौरान मौत के बाद जब परिजनों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट मांगी गई तो उन्हें टाल दिया गया. मृतक नीरज के भांजे मनु ने बताया " उन लोगों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं दी."

लेकिन आईजी पुलिस नवीन कुमार का कुछ और ही कहना है. उनका कहना है कि नीरज प्रजापति की मेडिकल रिपोर्ट पब्लिक कर दी गई है. QUINT ने जब नीरज की मौत का असली कारण पूछा तो उन्होंने कहा,

“नीरज प्रजापति का इलाज तीन जगह हुआ, जहां उनके परिजन खुद लेकर गए. कोई प्रशासन का व्यक्ति या पुलिस का कोई आदमी साथ नहीं था. अगर घायल होते तो सदर अस्पताल आते, थाने को बताते, या जिस डॉक्टर को बताएंगे कि हमको किसी ने मारा है तो डॉक्टर भी मेडिकल लीगल केस बनाएंगे. तीनों जगह उन्होंने सीवियर हेडेक की शिकायत की है. सिर में कहीं एक्सटर्नल इंजरी के कोई संकेत नहीं हैं. ये पोस्टमार्टम से भी कन्फर्म हो गया है.”
नवीन कुमार, आईजी पुलिस 

उन्होंने आगे बताया कि "23 तारीख को प्रजापति ने शाम को घर के पास जिस डॉक्टर से BP चेक करवाया था उसकी रिपोर्ट में ब्लड प्रेशर 230/130 पाया गया. उस डॉक्टर ने अस्पताल जाने की सलाह दी थी."

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पलभर में कैसे बदल गया लोहरदगा का माहौल

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इस पूरी घटना में सबसे अहम बात ये रही कि इसने एक साथ हंसी-खुशी रह रहे हिंदू-मुस्लिमों के बीच दरार पैदा कर दी. नागरिकता कानून से फैली इस आग में लोहरदगा में जहां मुस्लिमों की दो दर्जन दुकानें जलने की खबर आई तो वहीं एक दर्जन दुकानें दूसरे समुदाय की भी जलीं. नुकसान की बात करते हुए एक दुकानदार तनवीर ने बताया, "दोनों समुदाय का नुकसान हुआ. हमारा अधिक नुकसान हुआ. हम सभी एक दूसरे पर निर्भर होकर व्यापर करते थे. किसी ने बताया कि मनीष की दुकान भी जलकर राख हो गई है. उनसे भी जरूर बात कीजिएगा.

वहीं इस घटना में अपनी दुकान खो बैठे जमील अख्तर बताते हैं, "सुबह रोज की तरह अलका सिनेमा के बगल में स्थित अपनी दुकान पहुंचे, हमने दुकान खोली और साफ सफाई करवाने लगे. 11बजे के आस-पास हमें हालत ठीक नहीं लगे, आस-पास की दुकानें बंद होने लगीं. स्थिति को भांप कर हम भी जैसे तैसे दुकान बंद कर घर वापस आ गए. दोपहर ढाई बजे हमारी दूकान के मालिक शशि कुमार चौधरी की कॉल आई तो वो कहने लगे कि आपकी दुकान में लूटपाट के बाद आग लगा दी गई है.

हिंदू दुकान के मालिक से अच्छे रिश्तों को लेकर जमील अख्तर ने बताया,

“8 साल से दुकान थी, ये दुकान शशि चैधरी की थी. उनका समर्थन हमेशा रहा. कस्टमर पूरा लोहरदगा टाउन था. हर किसी से रिश्ते अच्छे थे. जो भी हुआ वह वह बुरे सपने की तरह था. देखते-देखते अच्छे भले हालात हिन्दू बनाम मुस्लिम हो गए.”
लोहरदगा हिंसा की कहानियों ने बताया कैसे एक दूसरे से दूर हो रहे लोग
अचानक बिगड़ गया सांप्रदायिक सौहार्द
(फोटो: मोहम्मद सरताज आलम)

लोगों के मन में पैदा हुआ शक

वहीं कैसे अब धीरे-धीरे लोगों के दिलों में सांप्रदायिक जहर घुलना शुरू हो चुका है, इसका भी एक उदाहरण लोहरदगा में देखने को मिला.

अलका सिनेमा के मालिक शशि चौधरी के मन में अब ये बात घर कर चुकी है कि वो अगर वो एक मुस्लिम को दुकान किराए पर नहीं देते तो उनके कॉम्पलैक्स में आग लगती ही नहीं. चौधरी ने कहा, इसका दोषी मुझे नहीं पता कौन है. क्योंकि मैंने किसी को देखा नहीं तो कैसे कहूं कि ये सब किसने किया. लेकिन दूसरे समुदाय के दुकानदार को दुकान देने से ये सब हुआ. अगर हमारा दुकानदार हिन्दू होता तो शायद ये वारदात हमारी बिल्डिंग में नहीं होती. जब पूछा गया कि आपके ताल्लुकात दुकानदार के साथ कैसे थे, तो कहने लगे कि ताल्लुकात तो बहुत बढ़िया हैं लेकिन इंशोरेंस कंपनी से फायदे के लिए आजकल लोग बहुत कुछ करते हैं.

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