लगता है भूख से मौतें झारखंड का पीछा नहीं छोड़ने जा रही हैं. रघबुर दास की बीजेपी सरकार में झारखंड में भूख से 23 मौतें हुई थीं. हेमंत सोरेन की सरकार के शासन में भी भूख से मौत ने सिर उठाना शुरू कर दिया है. दो दिन पहले राज्य के बोकारो जिले में भूख से एक 42 साल के शख्स भूखल घासी की की मौत हो गई. और हमेशा की तरह प्रशासन इसे भूख से हुई मौत मानने को तैयार नहीं है. प्रशासन का कहना है कि भूखल की मौत लंबी बीमारी से हुई है.
भूख से हुई मौतों को नकारा क्यों जाता है?
2017 में झारखंड में संतोषी की मौत भूख से हुई. मरने के वक्त पर वह भात-भात कह रही थी.यह झारखंड में भूख से होने वाली पहली चर्चित मौत थी, जिसे अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां मिली. इसके बाद रघुबर दास ने ऐलान किया कि राज्य में भूख से किसी की मौत नहीं होने दी जाएगी. इसके बावजूद राज्य में भूख से 23 मौतें हो गईं. हालांकि इन मौतों को किसी ने किसी बहाने से भूख से हुई मौत मानने से इनकार किया जाता रहा.
भूखल घासी की मौत के मामले में भी बोकारो के कमिश्नर मुकेश कुमार ने कहा कि वह एनीमिया के शिकार थे और डॉक्टरों की निगरानी में थे. आश्चर्य है कि इसके बावजूद भूखल की मौत हो गई. सीएम हेमंत सोरेन ने मामले को गंभीरता से लिया है. उनके ट्वीट से जिला प्रशासन हरकत में आया और भूखल के घर अधिकारी पहुंचे.
हेमंत सोरेन की सरकार के लिए बड़ी चुनौती?
अब सवाल ये है कि हेमंत सोरेन झारखंड में हुई जिन मौतों पर रघुबर सरकार को घेरती ररहे थे, वह अब क्या करेंगे? क्या वह सुनिश्चित कर पाएंगे कि झारखंड में भूख से एक भी मौत न हो. एक सच यह भी है झारखंड में अब तक भूख से जिन लोगों की मौत हुई है वे आदिवासी और वंचित समुदाय के हैं. दरअसल राज्य में पिछले छह-सात से लगातार आदिवासी हाशिये पर खिसकते रहे हैं. उनकी जीविका के साधनों पर चोट पड़ी है. आदिवासियों का इस वजह से राज्य से पलायन भी हुआ है. राज्य में औद्योगीकरण रुका है और खेती की तरक्की धीमी पड़ी है. इससे आदिवासियों के लिए जीविका और मुश्किल हो गई है.
बहरहाल, हेमंत सोरेन सरकार को इस बात का पूरा ध्यान रखना होगा कि आदिवासी और वंचित समुदायों के लिए रोजगार गारंटी स्कीम चलाएं और उन तक अनाज पहुंचाना सुनिश्चित करें. तभी झारखंड भूख से होने वाली मौत की वजह होने वाली बदनामी रोक पाएगा.
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