सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार, 16 जनवरी को उत्तराखंड के जोशीमठ संकट (Joshimath Crisis) को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के लिए अदालत के हस्तक्षेप की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. इसकी बजाय CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की 3 सदस्यीय बेंच ने याचिकाकर्ता स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती से अपनी याचिका के साथ उत्तराखंड हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को कहा है. बेंच ने कहा कि इस मुद्दे पर पहले से ही उत्तराखंड हाई कोर्ट विचार कर रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हम नहीं चाहते कि इन सुनवाई का उपयोग केवल सोशल मीडिया पर साउंड बाइट के लिए किया जाए". याचिकाकर्ता ने बेंच के सामने तर्क दिया था कि बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के कारण भूमि धंस रही है और और प्रभावित लोगों को तत्काल वित्तीय सहायता और मुआवजे की मांग की थी.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की याचिका में कहा गया है, "मानव जीवन और उनके पारिस्थितिकी तंत्र की कीमत पर किसी भी विकास की आवश्यकता नहीं है. अगर ऐसा कुछ भी होता है, तो यह राज्य और केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि इसे तुरंत युद्ध स्तर पर रोका जाए."
दरार वाले घरों की संख्या बढ़कर 826 हुई
बता दें कि आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, जोशीमठ में दरार वाले घरों की संख्या अब बढ़कर 826 हो गई है, जिनमें से 165 'असुरक्षित क्षेत्र' में हैं. अब तक, 798 लोगों को अस्थायी राहत केंद्रों में शिफ्ट किया गया है.
अंतरिम सहायता के रूप में प्रभावित परिवारों के बीच ₹2.49 करोड़ की राशि बांटी गई है. उन्हें कंबल, भोजन, दैनिक उपयोग की किट, हीटर, ब्लोअर और राशन भी उपलब्ध कराए गए हैं.
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