कन्नड़ की वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की मंगलवार को अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी. गौरी लोकप्रिय कन्नड़ टेबलॉयड 'लंकेश पत्रिका' की संपादक थीं. उन्हें राइट विंग पार्टियों के खिलाफ लड़ने वाली शख्सियत के तौर पर जाना जाता था.
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट के मुताबिक, साल 2016 में पूरी दुनिया में 93 पत्रकारों की हत्या कर दी गई. वहीं पिछले साल भारत में पांच पत्रकारों की हत्या कर दी गई. पत्रकारों और मीडिया से जुड़े लोगों की हत्या के मामले में भारत दुनिया में आठवें नंबर पर है.
ग्लोबल एडवोकेसी ग्रुप का रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने भारत को "पत्रकारों के लिए एशिया का सबसे खतरनाक देश" बताया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि पत्रकारों की हत्या के मामले में भारत पाकिस्तान और अफगानिस्तान, दोनों से भी आगे है.
साल 2015 की शुरुआत से संगठित अपराध को कवर करने के लिए पत्रकारों और ऐसे अपराध में नेताओं के जुड़े होने से अपराध में बढ़ोतरी हुई है.आरएसएफ रिपोर्ट
घोटालों की जांच से लेकर राजनेताओं के आपराधिक संबंधों को उजागर करना या सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने जैसे मामलों के लिए पत्रकारों को टारगेट किया जा रहा है.
पिछले कुछ सालों में ऐसे ही चार पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया गया.
राजदेव रंजन, पत्रकार
- 13 मई 2016 को कर दी गई हत्या
- बीट- भ्रष्टाचार, राजनीति, क्राइम
- जगह- सीवान, बिहार
उन्हें पिछले साल सीवान जिले के स्टेशन रोड के पास एक बाजार में गोली मार दी गई थी, जब वो रात 9 बजे अपने ऑफिस से घर लौट रहे थे.
राजदेव रंजन हिंदी अखबार हिंदुस्तान सीवान के ब्यूरो चीफ थे. राजदेव ने आरजेडी सांसद शहाबुद्दीन के खिलाफ बहुत मजबूती से रिपोर्टिंग की थी. राजदेव लंबे समय से इलाके में कानून तोड़ने वालों के खिलाफ लिख रहे थे.
हत्या से ठीक एक महीने पहले राजदेव ने शहाबुद्दीन और उसके साथ जेल में आरजेडी के मंत्री अब्दुल गफूर की दावत को लेकर खबर बनाई थी. उस खबर के बाद बिहार में खलबली मच गई थी. ये खबर अखबार में राजदेव के नाम से ही पब्लिश हुई थी.
राजदेव के हत्या के बाद सीबीआई कोर्ट ने एक साल तक चली जांच की रिपोर्ट को देखते हुए शहाबुद्दीन को इस हत्या में अभियुक्त बनाया था.
नरेंद्र दाभोलकर
- 20 अगस्त 2013 को हुई थी हत्या
- बीट- कल्चर और राजनीति
- दो अज्ञात बंदूकधारी बाइक सवार ने सुबह मॉर्निंग वॉक पर निकले दाभोलकर की हत्या कर दी थी.
- जगह- पुणे, महाराष्ट्र
मराठी वीकली ‘साधना’ के एडिटर के तौर पर दाभोलकर ने लंबे समय तक काला जादू और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. उनकी हत्या के कुछ दिन पहले महाराष्ट्र राज्य सरकार ने विवादास्पद विरोधी अंधविश्वास विधेयक पेश किया था.
दिसंबर 2015 में, सीबीआई ने बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि उसने दो संदिग्धों के नामों की पहचान की है. लेकिन इन नामों को कोर्ट ने गोपनीय रखा था. साथ ही कट्टरपंथी हिंदू ग्रुप सनातन संस्था को सीबीआई ने 2016 में दाभोलकर की हत्या के संबंध में पूछताछ की थी.
जगेंद्र सिंह
- 8 जून 2015 में हुई थी हत्या
- बीट- राजनीति
- उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में जगेंद्र सिंह को जिंदा जला दिया गया था.
- जगह- शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश
जगेंद्र स्वतंत्र पत्रकार थे. मरने से कुछ ही देर पहले उन्होंने अपने बयान में पूर्व मंत्री राममूर्ति वर्मा पर आरोप लगया था कि वे उनके परिवार को डरा रहे हैं. वर्मा उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार में मंत्री थे.
जगेंद्र ने वर्मा के भूमाफिया से सौदों का पर्दाफाश किया था. साथ ही उन्होंने ये भी आरोप लगाया था कि वर्मा ने एक स्थानीय महिला का बलात्कार किया है.
आरोप है कि जगेंद्र सिंह ने फेसबुक पर उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ खबरें लिखी थीं.
उमेश राजपूत
- 23 जनवरी 2011 को हुई थी हत्या
- बीट- भ्रष्टाचार और ह्यूमन राइट्स
- उमेश की मौत दो बाइकसवार ने की थी.
- जगह- रायपुर, छत्तीसगढ़
हत्या से ठीक एक दिन पहले उमेश को एक चिट्ठी मिली थी, जिसमें उन्हें धमकी दी गई थी कि अगर उन्होंने न्यूज छापना बंद नहीं किया, तो उन्हें मार दिया जायेगा.
हालांकि पुलिस को उनकी हत्या के बाद धमकी भरा पत्र मिला था. उमेश भ्रष्टाचार और आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार पर लगातार लिख रहे थे. उमेश के हत्या के बाद हाईकोर्ट ने मामला सीबीआई को सौंप दिया था. सीबीआई ने घटना के पांच साल बाद दो संदिग्धों को हिरासत में लिया था.
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