भारत की जानी-मानी लेखक, एक्टिविस्ट और फेमिनिस्ट, कमला भसीन (Kamala Bhasin) का 25 सितंबर को निधन हो गया. जन आंदोलनों को आवाज देने वाली कमला ने दक्षिण एशियाई नारीवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.
उन्होंने महिलाओं के लिए 1970 से काम करना शुरू कर दिया था. लैंगिक भेदभाव, शिक्षा, मानव विकास और मीडिया पर उन्होंने खूब काम किया था. उन्होंने जेंडर इक्वालिटी, नारीवाद और पितृसत्ता के मुद्दों पर कई किताबें लिखी.
उनकी मशहूर कविताएं:
उमड़ती लड़कियां
हवाओं सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें बेहिचक चलने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं बेवजह रोका जाना
फूलों सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें महकने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं बेदर्दी से कुचला जाना
परिंदों सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें बेखौफ उड़ने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं उनके परों का काटा जाना
पहाड़ों सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें सिर उठा जीने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं सिर को झुका कर जीना
सूरज सी बन रही हैं लड़कियां
उन्हें चमकने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं पर्दों में ढका जाना
मुझे पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूं, मुझे पढ़ना है
एक पिता अपनी बेटी से कहता है-
पढ़ना है! पढ़ना है! तुम्हें क्यों पढ़ना है?
पढ़ने को बेटे काफी हैं, तुम्हें क्यों पढ़ना है?
बेटी पिता से कहती है-
जब पूछा ही है तो सुनो मुझे क्यों पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूं मुझे पढ़ना है
पढ़ने की मुझे मनाही है सो पढ़ना है
मुझे में भी तरुणाई है सो पढ़ना है
सपनों ने ली अंगड़ाई है सो पढ़ना है
कुछ करने की मन में आई है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूं मुझे पढ़ना है
मुझे दर-दर नहीं भटकना है सो पढ़ना है
मुझे अपने पांवों चलना है सो पढ़ना है
मुझे अपने डर से लड़ना है सो पढ़ना है
मुझे अपने आप ही गढ़ना है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूं मुझे पढ़ना है
कई जोर जुल्म से बचना है सो पढ़ना है
कई कानूनों को परखना है सो पढ़ना है
मुझे नए धर्मों को रचना है सो पढ़ना है
मुझे सब कुछ ही तो बदलना है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूं मुझे पढ़ना है
हर ज्ञानी से बतियाना है सो पढ़ना है
मीरा का गाना गाना है सो पढ़ना है
मुझे अपना राग बनाना है सो पढ़ना है
अनपढ़ का नहीं जमाना है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूं मुझे पढ़ना है
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