ADVERTISEMENTREMOVE AD

कर्नाटक सरकार ने लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया

इससे पहले कर्नाटक सरकार ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजा था

Published
भारत
2 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

कर्नाटक सरकार ने लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया है, केंद्र के फैसले का इंतजार किए बिना ही सिद्धारमैया सरकार ने ये कदम उठाया है. इससे पहले कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत और वीरशैव लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजा था.

कांग्रेस सरकार केे इस फैसले को लिंगायत समुदाय को अपनी ओर  खींचने की कोशिश माना जा रहा था, जो आमतौर पर बीजेपी के समर्थक माने जाते रहे हैं. कर्नाटक में करीब 17 परसेंट लिंगायत हैं और 100 विधानसभा सीटों पर इनकी मौजूदगी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कर्नाटक की राजनीति में क्या है अहमियत?

लिंगायत संप्रदाय कर्नाटक में संख्या बल के हिसाब से मजबूत और राजनीतिक के लिहाज से प्रभावशाली है. कर्नाटक के अलावा लिंगायत/वीरशैव की आस-पास के राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी अच्छी खासी आबादी है.

कर्नाटक में लिंगायतों की आबादी करीब 17 फीसदी है. ये राज्य की करीब 100 सीटों पर सीधा असर डालते हैं. यही वजह है कि 224 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा में 52 विधायक लिंगायत समुदाय से हैं.

लिंगायतों को कर्नाटक में बीजेपी का पारंपरिक वोट माना जाता है. दरअसल, बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से आते हैं. ऐसे में कांग्रेस की नजर लिंगायतों पर है.

0

क्या ये फैसला एक तीर से कई निशाने वाला है?

कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार का कहना है कि इस फैसले को चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि ये मांग कई दशकों से उठ रही थी.

हालांकि, कांग्रेस का दावा ठीक भी है. लेकिन सिद्धारमैया ने यह फैसला विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लेकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं. कर्नाटक में लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है. पिछले कई सालों से लिंगायत बीजेपी का वोटबैंक रहे हैं. ऐसे में सिद्धारमैया का ये फैसला लिंगायतों को कांग्रेस के पाले में ला सकता है.

दूसरा, राज्य सरकार ने लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता देने की सिफारिश केंद्र सरकार से की है. केंद्र में बीजेपी सरकार है, ऐसे में गेंद अब बीजेपी के पाले में है. अगर, केंद्र राज्य सरकार के फैसले को मंजूरी देता है तो भी सिद्धारमैया सरकार की जीत है और अगर इसमें रोड़ा अटका तो भी कांग्रेस ने तो लिंगायतों को रिझाने के लिए पासा फेंक ही दिया है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×