कर्नाटक (Karnataka) के स्कूल और कॉलेजों में उठे हिजाब (Hijab Row) और शॉल विवाद को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka Highcourt) ने आज करीब शाम 4:30 तक सुनवाई की. इस मामले की सुनवाई कल 2:30 बजे तक के लिए टाल दी गई है. इस सुनवाई का लाइव प्रसारण किया गया था. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी और जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की तीन जजों की बेंच कर रही है.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मीडिया को कई बार नसीहत दी कि मामले की गंभीरता को समझें और इस मामले पर जिम्मेदारी से रिपोर्ट करें. इसके सिवा आज कोर्ट में क्या क्या मत्ववपूर्ण बातें हुई आइए आपको बताते हैं.
मीडिया को नसीहत
सुनवाई शुरू होते ही मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "हम मीडिया से अनुरोध कर सकते हैं, मीडिया से हमारा सबसे अनुरोध है कि हम अधिक जिम्मेदार बनें. आइए शांति लाने का प्रयास करें. हम सभी को एक जिम्मेदार नागरिक की तरह व्यवहार करना चाहिए. हम लाइव-स्ट्रीमिंग कर रहे हैं. मीडिया से हमारा एक ही अनुरोध है कि अधिक जिम्मेदार बनें. आप चौथे स्तंभ हैं"
वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने सरकारी आदेश के खिलाफ की जिरह
वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने पांच फरवरी के सरकार के उस आदेश के खिलाफ प्रस्तुतियां दी जिसमें स्कूलों को छात्रों के हिजाब पहनने पर रोक लगाने को कहा गया है.
वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने अपना पक्ष रखते हुए मुख्य रूप से यह साबित करने की कोशिश की, कि इस सरकारी आदेश से संविधान के आर्टिकल 25 का उललंघन हो रहा है. उन्होंने कहा की पब्लिक ऑर्डर डिस्टर्ब होने का हवाला देकर सरकार फंडामेंटल राइट का उल्लंघन नहीं कर सकती है.
जिसपर चीफ जस्टिस ने देवदत्त कामत से आर्टिकल-25 और क्या सरकारी आदेश ने पब्लिक ऑर्डर डिस्टर्ब होने की बात कही है -इसे डिटेल में समझाने को कहा.
आर्टिकल 25 और आर्टिकल 13 पर चर्चा के बाद वकील देवदत्त कामत ने बेंच के समक्ष क़ुरान की आयतों का जिक्र करते हुए यह बताने की कोशिश की, कि इस्लाम में हिजाब पहनना इस्लाम फॉलो करने का एक जरुरी हिस्सा है. कामत ने क़ुरान के अध्याय 24 की आयत नंबर 31 को बयान किया. इस बीच हाई कोर्ट के उस आदेश का भी जिक्र किया गया जब हाईकोर्ट ने AIPMT के एंट्रेंस के लिए छात्रों को हिजाब पहनने की अनुमति दी थी.
जिसके बाद देवदत्त कामत ने बारी बारी हाई कोर्ट के उन सभी आदेशों का उल्लेख किया जिन्हें सरकार ने अपनी याचिका में शामिल किया है. जस्टिस दीक्षित और अन्य बीच बीच में देवदत्त कामत से उनके सबमिशन पर स्पष्टीकरण मांगते रहे.
चीफ जस्टिस और जस्टिस दीक्षित की अहम टिप्पणियां
जस्टिस दीक्षित ने कहा कि सरकारी आदेश पब्लिक आर्डर के बारे में कुछ नहीं कहता है. आदेश का कहना है कि सीडीसी द्वारा यूनिफॉर्म तय की जानी है.
सीडीसी की कमिटी में एक MLA के होने पर जब देवदत्त कामत ने अप्पति जताई तो जस्टिस दीक्षित ने पूछा, "क्या आप सुप्रीम कोर्ट के किसी ऐसे फैसले का हवाला दे सकते हैं जो कहीं से भी कहता हो कि एक विधायक समिति का हिस्सा नहीं हो सकता है?"
'सरकारी आदेश में पब्लिक आर्डर बिगड़ने' के शामिल होने के देवदत्त कामत के इस दावे के बारे में जस्टिस दीक्षित ने कहा वह स्टैंड कहां है? पहले स्टैंड स्पष्ट किया जाए. तभी हम आपके तर्कों की सराहना कर सकते हैं.
जस्टिस दीक्षित ने कहा कि हमें यह भी लगता है कि अनुवाद (सरकारी आदेश का) सटीक नहीं है.
जस्टिस दीक्षित ने कहा कि "सरकारी आदेश की व्याख्या एक कानून की तरह नहीं की जा सकती है. हमें सामान्य ज्ञान का इस्तेमाल करना होगा. शब्दों का कोई स्थिर अर्थ नहीं होता. हमें कंपनी को शब्द रखते हुए देखना होगा."
कामत ने कहा कि "मैं न केवल सरकारी आदेश को चुनौती दे रहा हूं, बल्कि मुझे यूनिफॉर्म के एक ही रंग का हेडस्कार्फ़ पहनने की अनुमति देने के लिए एक सकारात्मक जनादेश की मांग कर रहा हूं."
आपस में चर्चा करने के बाद चीफ जस्टिस ने पूछा कि याचिकाकर्ता की ओर से और कौन बहस कर रहा है? जिसके बाद एक वकील ने इस मुद्दे पर मीडिया और सोशल मीडिया में टिप्पणियों को प्रतिबंधित करने के लिए एक आवेदन का उल्लेख किया क्योंकि अन्य राज्यों में चुनाव चल रहे हैं.
जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा कि "हमें चुनाव से कोई मतलब नहीं है. यदि यह अनुरोध चुनाव आयोग से आता है, तो हम विचार कर सकते हैं. हमने मीडिया से अपील की है. अगर आप सब कहें तो हम लाइव स्ट्रीमिंग बंद कर सकते हैं. वही हमारे हाथ में है. हम मीडिया को नहीं रोक सकते. जहां तक चुनाव की बात है, आप उन राज्यों के मतदाता नहीं हैं."
एडवोकेट मोहम्मद ताहिर ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के व्यक्तिगत विवरण प्रदर्शित किए जा रहे हैं. मैं मीडिया के खिलाफ निर्देश चाहता हूं. जिसके जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारे सामने कुछ भी नहीं रखा गया है. हम क्या कर सकते हैं ?
इसके बाद मामले की सुनवाई को कल दोपहर 2:30 बजे तक के लिए टाल दिया गया.
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